अरब देशों का कौन है दुश्मन?, कैसे पहचानेंगे आप?

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अरबों का असली दुश्मन कौन है? ईरान या इस्राईल? यह ऐसा सवाल है कि जिसे सुनकर अरब जगत में किसी को ख़ुशी नहीं होती। अधिकांश अरब विशेष रूप से फ़िलिस्तीनी, लेबनानी, सीरियाई, मिस्री और जॉर्डन के नागरिक इस्राईली अपराधों को झेल रहे हैं।

वास्तविकता यह है कि इस्राईल ने शुरू से ही अरबों में फूट डालने का प्रयास किया है, ताकि वह अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सके। 1948 में इस्राईल ने अपनी अवैध स्थापना साथ ही फ़िलिस्तीनियों के अलावा अपने पड़ोसियों पर व्यापक हमले शुरू कर दिए।

पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, अवैध अधिकृत इलाक़ों में अधिकांश फ़िलिस्तीनियों को उनके घरों से उजाड़ देने के बाद, इस्राईल ने 1956 में ग़ज्ज़ा और मिस्र पर पूर्ण आक्रमण सहित अपने पड़ोसियों के ख़िलाफ़ हमले शुरू कर दिए।

उसके बाद से इस्राईल सूडान, इराक़ और ट्यूनीशिया पर हमलों के अलावा मिस्र, जॉर्डन, सीरिया और लेबनान के ख़िलाफ़ कई युद्ध छेड़ चुका है। हमने यहां 1973 में लीबिया के एक यात्री विमान को मार गिराने की घटना का उल्लेख नहीं किया है।

इस्राईल ने यह समस्त अपराध, फ़िलिस्तीनियों की ज़मीन चोरी करने, उनके इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करने और भेदभावपूर्ण क़ानून पारित करने और उन पर तरह तरह के अत्याचार करने के साथ जारी रखे हैं। यही कारण है कि अरब तानाशाहों को छोड़कर अधिकांश अरब इस्राईलियों से नफ़रत करते हैं और उन्हें अपना असली दुश्मन समझते हैं।

इस्राईल की तुलना में ईरान ने किसी अरब देश पर हमला नहीं किया है, बल्कि इसके विपरीत इराक़ के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने 1980 में ईरान पर हमला किया था।

इस्राईल, अमरीका और अरब तानाशाहों के ईरान एवं शिया मुसलमानों के ख़िलाफ़ व्यापक दुष्प्रचार और साम्प्रदायिकता को हवा देकर मध्यपूर्व में फूट डालने की साज़िशों के बावजूद, अरब ईरान को अपना दुश्मन नहीं समझते हैं।

वर्तमान समय में ईरान के कई अरब देशों की सरकारों से बहुत अच्छे संबंध हैं, इनमें मुख्य रूप से इराक़, लेबनान, सीरिया और यमन का नाम लिया जा सकता है।