सच्चाई क्या है? क्या वास्तव में अमेरिका ईरान पर हमला करना चाहता है? या उसके अंदर ईरान पर हमले की क्षमता व साहस ही नहीं है?
इस्लामी क्रांति संरक्षक बल सिपाहे पासदारान ने गुरूवार 20 जून को अमेरिका के आधुनिकतम ड्रोन RQ-4 को मार गिराया। पहले तो अमेरिकी अधिकारियों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ईरान ने उनके आधुनितम ड्रोन को मार गिराया है परंतु फार्स की खाड़ी में मौजूद अमेरिकी सेना ने जब इस बात की पुष्टि की तब उन्हें विश्वास आया।
पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, ईरान ने जिस अदम्य साहस का परिचय दिया और अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया तो अमेरिका और उसकी हां में हां मिलाने वाले देशों व राजनेताओं ने अर्थपूर्ण चुप्पी साध ली।
उसके कुछ समय के पश्चात कुछ हल्कों में यह खबर आयी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ईरान पर हमले का आदेश दे दिया है पर उसके कुछ ही समय बाद यह भी खबर आयी कि अमेरिका अभी ईरान पर हमला नहीं करेगा। सच्चाई क्या है? क्या वास्तव में अमेरिका ईरान पर हमला करना चाहता है? या उसके अंदर ईरान पर हमले की क्षमता व साहस ही नहीं है?
जानकार हल्कों का मानना है कि उसके अंदर ईरान पर हमला करने का साहस ही नहीं है क्योंकि यह वही अमेरिका है जब और जहां से उसे खतरे का संदेह होता है तो वह हमला कर देता है या जहां उसे अपना हित साधना होता है तो किसी प्रमाण के बिना हमला कर देता है यहां तक सुरक्षा परिषद की अनुमति भी नहीं लेता। यहां तो बहुत बड़ा प्रमाण था कि ईरान ने अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया है।
यही नहीं रोचक बात तो यह है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात जैसे देश भी, जो उसकी दयादृष्टि के ऋणी हैं, यमन जैसे निर्धन देश पर हमला करने में सुरक्षा परिषद की अनुमति को आवश्यक नहीं समझते हैं और इस युद्ध को जारी हुए चार साल बीत चुके हैं परंतु राष्ट्रसंघ या सुरक्षा परिषद आज तक कुछ न कर पाये।
कितनी विचित्र बात है कि अमेरिकी ड्रोन को ईरान ने मार गिराया और अमेरिका कुछ न कर पाया तो इसकी मुख्य वजह यह है कि अमेरिका को ईरान की सैन्य शक्ति का अच्छी तरह अंदाज़ा है और वह यह भी जानता है कि अगर उसने ईरान पर हमला किया तो उसका अंजाम क्या होगा।
यही नहीं जिन देशों को ईरान से डराकर वह हथियार बेचता है वह भी उसकी खोखली ताकत की वास्तविकता से अवगत हो जायेगें और उसने पूरी दुनिया में जो धाक जमा रखी है वह भी मिट्टी में मिल जायेगी और जिन देशों को वह दुधारू गाय की उपमा देता है वे दूध देना भी बंद कर देंगे।
बहरहाल अमेरिका जो ईरान पर हमला नहीं कर रहा है तो यह उसकी मजबूरी है और अगर वह कर सकता होता तो बहुत पहले कर चुका होता और ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई के उस बयान को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका जो कुछ सकता था वह किया और जो नहीं किया तो वह नहीं कर सकता।