क्या दिल्ली के मुसलमानों का केजरीवाल सरकार से मोहभंग हो गया है?

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आजादी के बाद देश की राजनीति में अब तक मुस्लिम लीडरशिप नाकाम रही है! यह मेरा मानना है। इसकी वजह बहुत कम लीडर हुए जो संसद या विधानसभा पहुंचकर मुसलमानों की सही कयादत की हो.. चाहे वह मुस्लिम समाज की हक़ की बात हो या फिर दीगर कई मसाले, सभी क्षेत्रों में में लगभग नाकाम!

दिल्ली में MCD के चुनाव के जो परिणाम आये हैं वो चौकाने वाले जरुर है.. पांच वार्डों के चुनाव नतीजों में बीजेपी एक भी नहीं जीत पाई जबकि आम आदमी पार्टी को चार पर जीत हासिल हुई। एक सीट जिसपर कांग्रेस ने अपना परचम लहराया!

चौहान बांगर सीट पर कांग्रेस के चौधरी जुबैर अहमद की जीत हुई है और उन्हें 16203 वोट मिले हैं और उन्होंने आम आदमी पार्टी के मो इशरक खान को 5561 वोटों से हराया है।

सवाल इइस बात का है कि क्या यह सीट कांग्रेस के खाते में कैसे आई? माना जाता है कि यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है जहां आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ रहा है!

तो क्या अब मुस्लिमों का अरविंद केजरीवाल से मुंह भंग हो चुका है? कई अहम सवाल हैं।

कोरोना काल में जिस प्रकार दिल्ली निजामुद्दी मरकज़ और तबलीगी जमात को लेकर अफवाहें फैलाई गई और बदनाम किया गया, शायद मुसलमानों को यह बात नागवार गुजरी हो।

पुरे देश में तेज़ी से कोरोना फैलाने का इल्ज़ाम मरकज़ निजामुद्दीन और तबलीगी जमात के माथे थोपा गया!

इसमें कोई शक नहीं कि केजरीवाल सरकार का रवैया बिल्कुल गलत रहा। केजरीवाल के पार्ट औऔर सरकार में बैठे मुस्लिम नेताओं की जुबानें खामोश तमाशा देखती रही।

शायद यही वजह रही है जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र से केजरीवाल की पार्ट को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है।