क्या इज़राइल नेतन्याहू की मुठ्ठी में है?

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एलेक्स फ़िशमैन वैसे तो यदीऊत अहारोनोत नामक इस्राईली अख़बार के सुरक्षा और सामरिक मामलों के विशलेषक हैं लेकिन उन्हें इस्राईली सेना का अनौपचारिक प्रवक्ता भी माना जाता है।

 

पार्स टुडे पर छपी खबर के अनुसार, फ़िशमैन इस्राईली सैनिक कमान के क़रीबी लोगों में गिने जाते हैं इसलिए उनकी टिप्पणियों को इस्राईल के परिप्रेक्ष्य में गंभीरता से लिया जाता है।

 

फ़िशमैन ने हेब्रू भाषा के अख़बार यदीऊत अहोरोनोत में एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने लिखा कि इस्राईल के सैनिक और सिविलियन अधिकारियों के बयान सुनिए तो वह यही कहते दिखाई दे रहे हैं कि सीरिया में ईरान के ठिकाने कमज़ोर पड़ चुके हैं, इस्राईल दुनिया की आठवी सैनिक शक्ति बन चुका है, हमास संगठन के पास इस्राईल से समझौता करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है!

 

यह घमंड भरी बातें तो वर्ष 1973 के अरब युद्ध और 1982 के लेबनान युद्ध के बाद की थीं। यह बातें झूठ के अलावा कुछ नहीं हैं क्योंकि इस्राईल में किसी के भी पास इस बात के सुबूत नहीं हैं कि ईरान ने अपनी रणनीति में मामूली सा भी बदलाव किया है।

 

सुरक्षा मंत्री नफ़ताली बिनित पर तेज़ प्रहार करते हुए इस्राईली विशलेषक ने लिखा कि इस्राईल जनरल क़ासिम सुलैमानी के उत्तराधिकारी इसमाईल क़ाआनी पर गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहा है। यही ग़लती उसने सैयद हसन नसरुल्लाह के बारे में की थी जब उन्होंने हिज़्बुल्लाह के महासचिव के रूप में अपना काम शुरू किया था नतीजा यह निकला कि सैयद हसन नसरुल्लाह आज इस्राईल के लिए डरावने सपने में बदल चुके हैं।

 

फ़िशमैन के अनुसार जनरल क़ाआनी गहरा राजनैतिक प्रभाव भी रखते हैं जिसकी मदद से वह सैनिक क्षेत्रों में ज़्यादा बड़े क़दम उठा सकते हैं और मुहम्मद हेजाज़ी को ईरान ने जनरल क़ाआनी का उत्तराधारी बनाया है जो क़ुद्स फ़ोर्स की लेबनान शाखा के प्रमुख हैं और सटीक निशाने वाले मिसाइलों के हिज़्बुल्लाह के प्रोग्राम में उनकी प्रभावी भूमिका है।

 

अब तक इस्राईल भी स्वीकार करने लगा है कि इन मिसाइलों को रोकने की उसके पास कोई व्यवस्था नहीं है।

 

हमास की बात की जाए तो इस्राईली अधिकारी इस फ़िलिस्तीनी संगठन को कमज़ोर कहते हैं लेकिन जब मिसाइल हमलों की बात आ जाती है तो हमें तो यही नज़र आता है कि दबाव में हमास नहीं इस्राईल है।

 

सबसे बड़ा धोखा तो प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू दे रहे हैं। नेतनयाहू प्रशासन यह कहते नहीं थकता कि इस्राईल दुनिया की आठवीं बड़ी सैनिक शक्ति है। इसका आधार उस सर्वे रिपोर्ट को समझते हैं जिस पर किसी भी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता।

 

इस्राईल में एक सर्वे में तो इस्राईली सेना को रूस के बाद दुनिया की दूसरी सबसे ताक़तवर सेना कहा गया यानी अमरीका और चीन की सेना भी से आगे बताया गया। अब अगर इस प्रकार के सर्वे के आधार पर कोई इस्राईल की ताक़त का मूल्यांकन कर रहा है तो वह दरअस्ल अपना मज़ाक़ बनवाना चाहता है।

 

दुनिया के इंटेलीजेन्स केन्द्रों की रिपोर्टों की बात की जाए तो उनमें साफ़ साफ़ कहा जा रहा है कि इस्राईल की ताक़त लगातार घट रही है और दस साल के भीतर इसमें भारी कमी आई है।

 

हैफ़ा विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के शिक्षक प्रोफ़ेसर ओरीबार युसुफ़ ने कहा कि ईरान और उसके घटकों के पास अब इतनी ताक़त आ चुकी है कि वह इस्राईल को अकल्पनीय नुक़सान पहुंच सकते हैं और इस ताक़त में लगातार वृद्धि हो रही है।

 

इजरायल में साल भर में तीसरी बार होने वाले चुनाव के लिए प्रचार जोर पकड़ रहा है। विपक्ष के नेता बेनी गेंट्ज ने बेंजामिन नेतन्याहू और अरब पार्टियों के बगैर देश में सरकार बनाने का संकल्प जताया है।

 

दो बार के चुनाव में किसी पार्टी या गठबंधन को बहुमत न मिलने के कारण तीसरी बार दो मार्च को मतदान होगा।चुनावों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था, मिलकर सरकार चलाने को तैयार नहीं

 

पिछले चुनावों में न तो गेंट्ज की ब्ल्यू एंड व्हाइट पार्टी को बहुमत मिला, और न ही प्रधानमंत्री नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को। दोनों पार्टियां मिलकर सरकार चलाने को तैयार नहीं हुईं, इसीलिए तीसरी बार चुनाव कराने की नौबत आई है।

 

बहुमत न मिलने पर यहूदी और लोकतांत्रिक दलों का समर्थन लेना पसंद करेंगे

 

शनिवार रात एक न्यूज चैनल पर गेंट्ज ने कहा, आगामी चुनाव में भी बहुमत न मिलने पर वह यहूदी और लोकतांत्रिक दलों का समर्थन लेना पसंद करेंगे, न कि अरबी लोगों के दल का।

 

सरकार बनाने के लिए वह लिकुड पार्टी का समर्थन ले सकते हैं, लेकिन उन्हें नेतन्याहू का मंत्रिमंडल में रहना मंजूर नहीं होगा। नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के आपराधिक मामले चल रहे हैं।