कश्मीर के मौजूदा हालात का ‘डी डब्ल्यू हिन्दी’ ने लिया जायजा!

   

भारत प्रशासित कश्मीर में लोग दो सप्ताह से बिना संचार के रह रहे हैं. सड़कें बंद हैं. डीडब्ल्यू के रिपोर्टर रिफत फरीद ने बाकी दुनिया से कट कर श्रीनगर में रह रहे लोगों की जिंदगी का जायजा लिया. उनसे सुनिए वहां की पूरी कहानी.

भारतीय प्रशासित कश्मीर के सबसे बड़े शहर श्रीनगर में 5 अगस्त की आधी रात के आसपास सब कुछ अचानक शांत हो गया. फोन बजने बंद हो गए. इंटरनेट भी बंद हो गया. गलियां सुनसान हो गईं. सभी सड़कों को बंद कर दिया गया था. अर्धसैनिक बल के जवान पूरे शहर में तैनात कर दिए गए. श्रीनगर पूरी तरह बंद हो गया.

मैं यहां सात वर्षों से पत्रकार के रूप में काम कर रहा हूं लेकिन जिस तरह से यह घटना हुई, मुझे एक बड़े झटके का एहसास हुआ. जब मैं सुबह सात बजे घर से निकला, यह पता नहीं था कि क्या हो रहा था.

इस बात की पुष्टि करने के लिए कोई रास्ता नहीं बचा था कि आखिर शहर में इतनी घेराबंदी क्यों की गई है? श्रीनगर में पूरी तरह खामोशी छायी हुई थी. ऑफिस पहुंचने के लिए मुझे कई चेकप्वाइंट पर तैनात सुरक्षाकर्मियों को सफाई देनी पड़ी.

कुछ चेकप्वाइंट पर सुरक्षाबलों ने बातचीत के बाद मुझे आगे जाने की इजाजत दी लेकिन कई अन्य ने वापस लौटने को कहा. एक चेकप्वाइंट पर जहां मुझे लौटने को कहा गया था, वहां मैंने खुद को एक पत्रकार बता आगे जाने की इजाजत मांगी थी, लेकिन ये मेरी गलती थी. इसलिए आगे से मैंने खुद को पत्रकार बताना छोड़ दिया.

मैंने शहर के एक बड़े अस्पताल में जाने का फैसला किया ताकि यह पता चल सके कि कहीं कुछ हुआ तो नहीं है. वहां मैंने करीब दो घंटे इंतजार किया. लेकिन जैसा मैंने उम्मीद की थी, वैसा कुछ नहीं था. मरीजों की भीड़ नहीं थी. बावजूद इसके संशय बरकरार था.

लोग समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर हो क्या रहा है? लेकिन जैसे ही मैं ऑफिस पहुंचा, भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने सात दशक पुराने धारा 370 को निरस्त करने की घोषणा कर दी थी. धारा 370 से मुस्लिम बहुल क्षेत्र को अर्ध-स्वायत होने का दर्जा मिला हुआ था, जो एक झटके में समाप्त हो गया.

इस फैसले की घोषणा के बाद भारत सरकार चिंतित थी कि विरोध और प्रदर्शन शुरू हो जाएंगे, जैसा कि 2008, 2010 और 2016 में हो चुका था. भारत सरकार इन्हीं संभावनाओं को देखते हुए अर्धसैनिक बल के जवानों को तैनात कर चुकी थी और हजारों की संख्या में राज्य में मौजूद पर्यटकों और हिंदू श्रद्धालुओं को निकाला जा चुका था. श्रीनगर में पूरी तरह घेराबंदी कर दी गई थी. कंटीले तारों के सड़कों को घेर दिया गया था और संचार के सभी साधन बंद कर दिए गए थे.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के भारत सरकार के फैसले ने कश्मीरियों में यह आशंका भी पैदा कर दी कि इस क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलने के बड़े कदम उठाए जाएंगे. भारत-प्रशासित कश्मीर देश का एकमात्र क्षेत्र है जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं.

फोन लाइन और इंटरनेट कनेक्शन बंद रहने की वजह से श्रीनगर में खामोशी का आलम जारी है. यहां रह रहे लोग दुनिया से पूरी तरह अलग-थलग हो गए हैं. वे दोस्तों और रिश्तेदारों की खबर का इंतजार करते हैं. श्रीनगर में घेराबंदी के पहले दिन से ही मेरे घर पर माता-पिता दबाव महसूस कर रहे थे.

हमने अपने घर पर जरूरी सामान इकट्ठा कर लिए थे लेकिन वे इस बात को लेकर चिंतित थे कि कहीं कुछ छूट तो नहीं रहा है. उन्होंने दवा, खाने के सामान और दूध इत्यादि जैसे सामानों की फिर से जांच की. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पहली रात शहर पूरी तरह शांत था.

अगले दिन 7 अगस्त को मैंने फिर से बाहर निकलने और शहर का जायजा लेने का फैसला किया. संचार का कोई माध्यम चालू नहीं था. खबर भेजने के कोई रास्ते नहीं थे. मुझे अगले दिन फिर से चेकप्वाइंट पर रोका गया और पूछा गया, “तुम कहां जाना चाहते हो?” मैंने सावधानी से जवाब दिया. सुरक्षाकर्मी कुछ देर रूके और फिर जाने दिया.

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी