कश्मीर- राजद्रोह केस में 7 महीने जेल में गुजार कर लौटे मंज़ूर, बयां किया दर्द

, ,

   

9 महीने पहले कुछ ऐसा हुआ कि मंज़ूर की जिंदगी पूरी तरह बदल गई। वह बेहद धार्मिक हो गए हैं और दिन में पांच वक्त की नमाज़ पढ़ते हैं। वह शायद ही घर से बाहर निकलते हैं। 20 साल के एक आम युवक से उलट अब वह किसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर भी मौजूद नहीं हैं। वह कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के दहामा गांव के रहने वाले हैं और बेंगलुरु में नर्सिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें पीएम स्पेशल स्कॉलरशिप भी मिल चुकी है।

पुलवामा में हुए आतंकी हमले के दो दिन बाद 16 फरवरी को मंज़ूर को राजद्रोह के आरोप में दो अन्य दोस्तों गौहर मुश्ताक और जाकिर मकबूल के साथ गिरफ्तार किया गया था। आतंकी वारदात को लेकर उनकी एक सहपाठी के साथ फेसबुक पर बहस हो गई थी। बेंगलुरु के सेंट्रल जेल में 7 महीने बिताने के बाद वह 20 सितंबर को जमानत पर रिहा हुए और अब दोबारा से पुरानी जिंदगी को हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।
वह स्पूर्थी कॉलेज ऑफ नर्सिंग से निलंबित चल रहे हैं और उनकी पीएम स्कॉलरशिप भी रोक दी गई है। मंज़ूर एक तरफ जहां अपनी स्कॉलरशिप दोबारा शुरू करवाने के लिए सरकार को लिख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अपने शिक्षण संस्थान को उनका निलंबन वापस लेने की भी गुहार लगा रहे हैं। इस बीच, वह थाने में हाजिरी लगाने और अदालती कार्यवाही के लिए भी वक्त निकाल रहे हैं, जहां उन्हें साबित करना है कि वह राजद्रोह के दोषी नहीं हैं।

उनके कॉलेज के प्रिंसिपल बाबू धर्मराजा ने कहा, ‘जब हमने पुलिस के पास शिकायत की थी तो हमें नहीं पता था कि यह राजद्रोह का मामला बन जाएगा।’ बता दें कि मंज़ूर उस वक्त बीएससी नर्सिंग के दूसरे साल की पढ़ाई कर रहे थे। वहीं, 22 साल के मुश्ताक गिरफ्तारी के वक्त नर्सिंग की जनरल डिग्री की पढ़ाई कर रहे थे। इसके अलावा, 24 साल के मकबूल चिनाई कॉलेज ऑफ नर्सिंग के छात्र थे।
प्रिंसिपल बोले, ‘उनका (मंज़ूर और मुश्ताक) का पढ़ाई में प्रदर्शन बढ़िया था और उनका बर्ताव भी अच्छा था। घटना तक उनके खिलाफ कभी कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं हुई।’ धर्मराजा उस घटना के बारे में बताते हैं जो 14 फरवरी की शाम को पुलवामा आतंकी हमले की खबर सामने आने के बाद हुई। कॉलेज के तीसरे वर्ष के छात्र ने फेसबुक पर कुछ संदेश पोस्ट किए जो हमले का बदला लेने की बात से जुड़े हुए थे। इसे लेकर मंज़ूर, मकबूल और मुश्ताक से उसकी बहस हो गई।
इसके अगले दिन कॉलेज के मेस में छात्रों के बीच लड़ाई हो गई। 16 फरवरी को इन तीनों स्टूडेंट्स और देबनाथ को प्रिंसिपल ऑफिस तलब किया गया। मंज़ूर ने बताया, ‘उस वक्त तक यह छात्रों के बीच की लड़ाई थी। हम हैरान रह गए जब कॉलेज की ओर से कैंपस में पुलिस बुला ली गई।’ कुछ घंटों में प्रिंसिपल की ओर से पुलिस के पास शिकायत करके मांग की गई कि मंज़ूर और उनके दोस्तों मुश्ताक और मकबूल के खिलाफ ‘भारतीय सेना को अपशब्द कहने वाले संदेश भेजने और राष्ट्रीय अखंडता को नुकसान पहुंचाने’ के लिए ‘उचित कानूनी कार्रवाई’ की जाए।

प्रिंसिपल ने कॉलेज में पुलिस बुलाने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा, ‘लोग कॉलेज के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। इस बात की अफवाहें थीं कि हमारे कॉलेज के कश्मीरी छात्र हमले का जश्न मना रहे हैं। हालात काबू करने और हमारे अन्य (कश्मीरी) स्टूडेंट्स की हिफाजत के लिए हमें पुलिस को बुलाना पड़ा।’

वहीं, बेंगलुरु में अपने वकील के दफ्तर पर द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में मंज़ूर ने कहा, ”मुझे वो पल अब भी याद है, जब मैं मेरी डिटेल्स लिखी स्लेट के साथ खड़ा था और पुलिसवाले मेरी तस्वीरें खींच रहे थे। मुझे भरोसा ही नहीं हो पा रहा था कि मेरे साथ क्या हो रहा है? मैंने ऐसा सिर्फ फिल्मों में देखा था।” मंजूर बताते हैं कि उन्हें कॉलेज के घंटों में गिरफ्तार किया गया, इसलिए जब उन्हें बेंगलुरु सेंट्रल जेल लाया गया तो भी वह अपनी यूनिफॉर्म में थे।

उन्होंने कहा, ‘कौन उम्मीद करता है कि ऐसी चीज उसके साथ होगी? हमने जेल में कुछ दिन तो रो-रोकर बिता दिए। दिक्कत कितनी बड़ी है, यह हमें तब अहसास हुआ जब हमें पता चला कि हम पर क्या आरोप हैं। जब मेरे भाई मिलने के लिए जेल आए तब हमें राजद्रोह के केस के बारे में पता चला।’ बता दें कि पुणे में रह रहे मंज़ूर के भाई को अपनी पढ़ाई छोड़कर 7 महीने बेंगलुरु में रहना पड़ा ताकि वह अपने भाई को जेल से छूटने में मदद कर सकें।

मंजू़र ने आगे बताया, ‘जेल के अधिकारियों का बर्ताव अच्छा था। साथी कैदियों ने मुझे पढ़ने के लिए किताबें दीं। हमने कुरान और सहीह-अल-बुखारी पढ़ी। हमने पांच वक्त की नमाज पढ़नी शुरू कर दी। इससे हमें धैर्य बनाए रखने में मदद मिली और जमानत मिलने की आस बनी रही।

साभार- जनसत्ता डॉट कॉम