जानिए, बाबरी मस्जिद- राम जन्मभूमि पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या दिया था फैसला?

,

   

हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि हिंदू और मुस्लिम विवादित भूमि के संयुक्त रूप से अधिकारी हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर, 2010 को बहुमत के एक फैसले में तीन पक्षों के बीच अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ भूमि का बंटवारा करने का आदेश दिया था। ये तीन पक्ष- राम लल्ला, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा थे।

हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि हिंदू और मुस्लिम विवादित भूमि के संयुक्त रूप से अधिकारी हैं।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि मुख्य गुंबद के नीचे की भूमि, जहां भगवान राम और अन्य देवताओं की मूर्तियों को एक मंदिर में रखा गया है, हिंदुओं की है।

तीनों न्यायाधीशों ने सहमति व्यक्त की कि हिंदुओं को मुख्य गुंबद के नीचे का हिस्सा मिलना चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय 6000 पृष्ठों से अधिक के आधार पर रहा।

हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने 9 मई, 2011 को इस पर रोक लगाने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने हाल ही में मामले में सुनवाई की अंतिम तारीख 17 अक्टूबर तय की है।

सर्वोच्च न्यायालय में अपने तर्को को आगे बढ़ाते हुए, हिंदू पक्षकारों ने शीर्ष अदालत से कहा है कि हिंदुओं की आस्था को बांटा नहीं जा सकता है और पूरे विवादित स्थल पर अपना अधिकार जताया।

‘शेबैत’ (देवता की सेवा करने वाला भक्त) होने का दावा करने वाले निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जमंीन का टुकड़ा भगवान राम की जन्मभूमि है और यह उसी का है।

अखाड़ा ने अपनी दलीलों में कहा, “यह अखाड़ा के अधिकार में है, जो इसके महंत और सरबराहकार के जरिए प्रबंधक के रूप में काम करता रहा है।”

राम लला के वकीलों ने तर्क दिया कि फिलहाल के लिए शेबैत एकमात्र व्यक्ति है जो मूर्ति के हितों की रक्षा करने के लिए सक्षम है, समर्पित संपत्ति पर उसका अधिकार है। हिंदू पक्ष के मुकदमों के जवाब में मुस्लिम पक्ष के वकील ने ज्यादा दलील दी है।

खास खबर पर छपी खबर के अनुसार, मुस्लिम पक्ष ने दावा किया,”आंतरिक और बाहरी प्रांगण के साथ-साथ विवादित ढांचे के बारे में मौजूद मुकदमें सभी अलग-अलग प्रेयर्स के साथ दायर किए गए हैं।

जबकि मुकदमा 1 को केवल पूजा के अधिकार का दावा करने के लिए दायर किया गया था, मुकदमा 3 (निर्मोही अखाड़ा) कथित मंदिर के प्रबंधन व प्रभार के लिए दायर किया गया था।

केवल मुकदमा 4 (सुन्नी वक्फ बोर्ड) और मुकदमा 5 (राम लला) ऐसे हैं, जिसमें कि पक्षों ने विवादित संपत्ति पर अधिकार का दावा किया है।”
सुन्नी वक्फ बोर्ड पहले ही हाईकोर्ट के फैसले से नाखुशी जता चुका है।

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपनी दलील में विवादित स्थल को सार्वजनिक मस्जिद बताया है। मुस्लिम पक्ष सोमवार को अपने तर्को के साथ बहस को जारी रखेंगे।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ 17 अक्टूबर को इस विवादास्पद मुद्दे पर अपने फैसले की कवायद शुरू करेगी, जो विवाद में सुनवाई का आखिरी दिन भी है।

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित मुद्दे को सुलझाने के लिए मध्यस्थता का आदेश दिया था, लेकिन यह विफल रहा। आखिरकार अगस्त में शीर्ष अदालत ने मामले में सुनवाई शुरू की।