कोविड-19: जम्मू-कश्मीर में क्यों हैं ज्यादातर लोग लापरवाह?

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मौजूदा कोरोनावायरस संकट के बीच कश्मीर की महज 2 फीसदी आबादी इस बीमारी के प्रति प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी) है, जबकि 98 फीसदी आबादी इसके प्रति अतिसंवेदनशील है और अभी भी प्रतिरक्षा हासिल करने से दूर है।

 

खास खबर पर छपी खबर के अनुसार, डॉक्टर्स एसोसिएशन ऑफ कश्मीर (डीएके) के अध्यक्ष डॉ. निसार-उल-हसन ने कहा, “मई में आईसीएमआर द्वारा कश्मीर के पुलवामा जिले में किए गए एक सीरो-सर्वेलन्स स्टडी से पता चला है कि सर्वे में शामिल 2 फीसदी आबादी के खून में एंटीबॉडी नजर आया।”

 

एंटीबॉडी की मौजूदगी का मतलब है कि व्यक्ति को हाल के दिनों में संक्रमण था और अब उसका शरीर वायरस के प्रति रोग प्रतिरोधक है।

 

सर्वे के निष्कर्ष 400 रक्त नमूनों पर आधारित हैं जिनमें केवल 8 में एंटीबॉडी की मौजूदगी देखी गई।

 

डॉक्टर ने कहा कि आईसीएमआर ने देश के 82 जिलों में एक साथ सर्वे किया और पाया कि बीमारी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता वाली आबादी का राष्ट्रीय आंकड़ा महज 0.73 प्रतिशत है।

 

उन्होंने कहा कि सर्वे के निष्कर्षों से साबित होता है कि मुख्य रूप से कश्मीर की 98 फीसदी आबादी कोरोना के प्रति अतिसंवेदनशील है और हम अभी भी वायरस के खिलाफ किसी भी तरह की प्रतिरक्षा हासिल करने से दूर हैं।

 

उन्होंने कहा, “अध्ययन के निष्कर्षों से पता चला है कि ज्यादातर लोग बीमारी से प्रतिरक्षा नहीं करते हैं और आबादी प्रतिरक्षा प्राप्त करने में अभी भी दूर है।”

 

डॉक्टर ने कहा कि जब लोग बाहर निकलेंगे तो वे इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। वे संभवत: ठीक हो सकते हैं और प्रतिरक्षा भी प्राप्त कर सकते हैं।

 

उन्होंने कहा कि लेकिन, अगर वायरस में बदलाव होता है और वायरस अलग तरह से असर करता है और अधिक जानलेवा हो जाता है तो और ज्यादा मौतें हो सकती हैं और यह अब तक किए गए सभी अच्छे काम पर पानी फेर देगा।

 

उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि लोगों को यह नहीं सोचना चाहिए कि कोई अधिक जोखिम नहीं है। डॉक्टर ने कहा कि प्रतिबंधों में ढील के साथ वायरस के दूसरी लहर के आने को लेकर तैयारी जरूरी है जो ज्यादा प्रभावी हो सकती हैं।