रेमन मैग्सेसे पुरस्कार- सुनें “शुद्ध हिंदी वाले पत्रकार रवीश कुमार का अंग्रेजी में भाषण”

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वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने कहा है कि लोकतंत्र को बेहतर बनाने में सिटिजन जर्नलिज्म की बड़ी ताकत है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र जल रहा है और अब उसे संभालने की जरुरत है। इसके लिए सबसे जरूरी चीज है साहस। हमें साहस के साथ सही सूचना पाठकों व दर्शकों तक पहुंचानी होगी। रवीश कुमार ने मनीला में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार लेने से पहले भारतीय मीडिया की मौजूदा विसंगतियों पर खुलकर बात की।

उन्होंने कहा कि दर्शकों का भरोसा जीतने के लिए उन्हें सही जानकारी देना जरूरी है। सरकार के खिलाफ हर रोज कहीं न कहीं प्रदर्शन होते रहते हैं मगर मुख्य धारा की मीडिया में हमें इससे जुड़ी कोई खबर नहीं दिखती है। मुख्य धारा की मीडिया में एक स्क्रीनिंग पैटर्न है, जिसमें वो इन विरोध प्रदर्शनों को नहीं दिखाता है।

इसी कारण इन विरोध प्रदर्शनों की रिपोर्टिंग नहीं होती क्योंकि मीडिया के लिए वह बेकार की गतिविधि है मगर यह समझना जरूरी है कि सार्वजनिक प्रदर्शनों के बिना कोई भी लोकतंत्र लोकतंत्र नहीं हो सकता है।

कश्मीर में सूचना तंत्र बंद

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर में कई दिनों के लिए सूचना तंत्र बंद कर दिया गया। सरकारी अधिकारी प्रेस का काम करने लगे हैं और प्रेस के लोग सरकार का काम करने में जुटे हुए हैं।

रवीश कुमार ने सवाल किया कि क्या आप बगैर कम्युनिकेशन और इन्फॉरमेशन के सिटिजन की कल्पना कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि मीडिया का काम सूचना जुटाना है मगर जब मीडिया ही सूचना के नेटवर्क बंद करने का समर्थन करने लगे तो क्या होगा?

मीडिया और उसके बिजनेस पर कब्जा

वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि यह समय नागरिक होने के इम्तिहान का है। नागरिकता को फिर से समझने का है और उसके लिए लडऩे का है। एक व्यक्ति और एक समूह के तौर पर जो इस हमले से खुद को बचा लेगा वही नागरिक भविष्य के बेहतर समाज और सरकार की नई बुनियाद रखने में कामयाब हो सकेगा।

नागरिकता के लिए सूचनाओं की स्वतंत्रता और प्रामाणिकता जरूरी है। आज हालत यह हो गई है कि प्रदेशों में मीडिया और उसके बिजनेस पर पूरी तरह काबू कर लिया गया है। सच्चाई यह है कि मीडिया पर कंट्रोल का मतलब आपकी नागरिकता के दायरे का छोटा हो जाना है।

सवाल करने वाला एंटी नेशनल

रवीश कुमार ने कहा कि मीडिया की भाषा में दो तरह के नागरिक हैं-एक नेशनल और दूसरा एंटी-नेशनल। यह अजीब विडम्बना है कि मौजूदा दौर में सवाल करने वाले या असहमति रखने वाले को एंटी नेशनल बता दिया जाता है।

भारत ही नहीं बल्कि पड़ोसी देशों में भी मीडिया की स्थिति संतोषजनक नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के सारे पड़ोसी देशों में प्रेस की स्वतंत्रता निचले पायदान पर हैं।

पाकिस्तान की हालत तो और चिंताजनक है। वहां एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी है, जो अपने न्यूज चैनलों को निर्देश देता है कि कश्मीर पर किस तरह से प्रोपेगंडा करना है। वहां के चैनल दिन-रात कश्मीर को लेकर प्रोपेगंडा में ही जुटे रहते हैं। इसे सरकारी भाषा में सलाह कहा जाता है मगर वास्तविकता में यह निर्देश ही होता है।

मीडिया से सच्चाई नहीं पता चलती

उन्होंने कहा कि अगर आप मीडिया के जरिये किसी लोकतंत्र को समझने का प्रयास करेंगे तो कभी सच्चाई से रूबरू नहीं हो पाएंगे। मीडिया एक ऐसे लोकतंत्र की तस्वीर बनाता है जहां सारी सूचनाओं का रंग एक ही होता है। यह रंग सत्ता के रंग से मेल खाता है। ऐसे सवाल फ्रेम किए जाते हैं जो एक ही तरह के हैं। फिर इन सवालों के जरिये ऐसी सूचनाएं फैलाई जाती हैं जिनके आधार पर लोगों की धारणा बनाई जा सके।

लोगों ने पहले दीं गालियां, फिर मांगी माफी

वरिष्ठ पत्रकार ने अपने भाषण के दौरान ईमानदारी की पत्रकारिता में आने वाली मुसीबतों का भी जिक्र किया। उन्होंने खुद का उदाहरण देते हुए कहा कि देश भर में मेरे नंबर को ट्रोल किया गया, मुझे गालियां दी गईं, धमकियां दी गईं मगर बाद में उसी नंबर पर लोग अपनी और इलाके की खबरों को लेकर भी आए। जब सत्तारूढ़ दल ने मेरे शो का बहिष्कार किया था, तब मेरे सारे रास्ते बंद हो गए थे।

उस समय यही वे लोग थे, जिन्होंने अपनी समस्याओं से मेरे शो को भर दिया। मैं उन बहुत से लोगों का जिक्र करना चाहता हूं, जिन्होंने पहले ट्रोल किया और गालियां दीं मगर बाद में खुद मुझसे माफी भी मांगी। गांधी ने कहा था कि यदि अखबार दुरुस्त नहीं रहेंगे, तो फिर हिन्दुस्तान की आजादी किस काम की।