‘लो इंक़लाब गूंजा है शाहिन बाग से’- शायरा लता हया की शायरी सोशल मीडिया पर वायरल !

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मौलाना आज़ाद कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स और पैयाम -ए- इन्सानियत, मानसिक स्वास्थ्य केंद्र एनजीओ ने 11 जनवरी को औरंगाबाद में एक मुशायरा यानी कवि सम्मेलन का आयोजन किया था।

 

विभिन्न गैर सरकारी संगठनों और कॉलेज के छात्रों के लिए मानसिक स्वास्थ्य केंद्र द्वारा सांप्रदायिक सद्भाव और मानसिक स्वास्थ्य पर एक बहस प्रतियोगिता भी आयोजित की गई थी।

मुशायरा / बैठक में कई प्रसिद्ध शायरों और कवियों ने हिस्सा लिया राहत इंदौरी, मंजर भोपाली, लता हया, अनामिका अंबर जैन ने हिस्सा लिया।

 

लता हया ने सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ चल रहे विरोध पर कविता पाठ किया।

 

घर कोो लगी है आग घर की चराग से 

हम अहले हिंद भी कहां डरतेे हैं दाग से 

घर कोो बचाने जब आई घर की बेटियां 

लो इंकलाब गूंजा है शाहिन सेे 

हमसे सबूत मांगनाा महंगा पड़ेगा उन्हें 

काग़ज़ को यूं खंगालनाा महंगा पड़ा उन्हें 

बच्चों से बेवकूफ़ी में पंगा तो लिए

मांओं को अब संभालना महंगा पड़ेगा

 

जामिया मिलिया इस्लामिया के पास एक मुस्लिम बहुल पड़ोस के शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन पिछले साल दिसंबर में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के पारित होने के साथ शुरू हुआ, जिसका देश भर में प्रभाव था।

 

दिन-प्रतिदिन बढ़ते हुए, यह अब CAA-NRC-NPR के खिलाफ सबसे लंबे समय तक चलने वाला विरोध बन गया है, जो देश के विभिन्न हिस्सों में इसी तरह के आंदोलनों को ट्रिगर करता है, कोलकाता से प्रयागराज और भोपाल और पुणे तक।