कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से दुनियाभर का आर्थिक चक्र डगमगा गया है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। इसको लेकर भारत सरकार ने एक लाख 50,000 करोड़ का आर्थिक पैकेज का ऐलान भी किया है। लेकिन, इसके बावजूद मजदूरों और गरीबों की दुश्विरियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं।
Interesting solution proposed by @mahuaMoitra for the problem of getting survival money into the hands of the poorest. Trust @nsitharaman will consider it. https://t.co/FpPUwJXdNG
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) April 16, 2020
लॉकडाउन बढ़ने से उनकी मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। इसको लेकर विपक्ष दल केंद्र की मोदी सरकार को तरह-तरह के सुझाव भी दे रहे हैं और अर्थव्यवस्था को लेकर चेता भी रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस की तेज तर्रार नेता महुआ मोइत्रा ने भी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को अपने ट्वीट के जरिए आर्थिक पैकेज का गुणा भाग समझाने का प्रयास किया है और 25 करोड़ लोगों की देखभाल के लिए जरूरी कदम उठाने के लिए सवाल दागा है।
Quick math lesson for Hon’ble FM:
Over ₹75,000 cr in ESI
Over ₹40,000 cr in unclaimed PF
Over ₹35,000 cr in BOCW cess
= ₹150,000 cr
Enough to pay ₹7500 each to bottom 5cr families for next 3 months & have change to spare
Will ensure 25cr people will be looked after
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) April 16, 2020
महुआ मोइत्रा अपने ट्वीट में लिखती हैं, ‘सम्मानीय वित्तमंत्री के लिए गणित का त्वरित पाठ: 75,000 करोड़ रुपये से ज्यादा ईएसआई के लिए, 40,000 करोड़ रुपये से ज्यादा बिना क्लैम वाले पीएफ के लिए, 35,000 करोड़ रुपये से ज्यादा बीओसीडब्ल्यू सेस में यानि कुल =150,000 करोड़ रुपये। अगले तीन महीने के लिए 5 करोड़ प्रति परिवार के लिए 7500 रुपये काफी हैं और क्या 25 करोड़ लोग की देखभाल के लिए क्या बचा है सुनिश्चित करने के लिए।’
इसके साथ ही मोइत्रा ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के उस नोट पर भी सवाल उठाया है, जिसमें कंपनियों से अपने वर्करों को पूरी तनख्वाह देने की अपील की गई है।अपने ट्वीट में महुआ लिखती हैं, 29/3 का एमएचए का नोट कहता है कि सभी नियोक्ता लॉकडाउन में पूरी सैलरी दें, लेकिन करीब हफ्ते हो गए, कोई भी आर्थिक पैकेज नियोक्ताओं को लिए नहीं जारी हुआ है। ना ही कोई सॉफ्ट लोन की व्यवस्था की गई है, जिससे वेतन बिल को पूरा किया जा सके। आखिर कैसे कंपनियां बिना जीरो राजस्व के वेतन दे सकेंगी। इसके उलट ब्रिटेन सरकार 80 फीसदी वेतन का भार खुद ही उठा रही है।