मीडिल इस्ट में शांति के लिए अमेरिका और इज़राइल ने आखिर कौन सा प्रस्ताव लाने वाला है?

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अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप मध्य पूर्व में शांति के लिए इस्राएल के नेताओं के साथ एक नया प्रस्ताव साझा करने वाले हैं। तीन साल की कोशिश का नतीजा है यह प्रस्ताव।

 

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप सोमवार 27 जनवरी को इस्राएल के नेताओं के साथ मध्य पूर्व में शांति के लिए एक नया प्रस्ताव साझा करने वाले हैं।

 

ट्रंप इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू और चुनावों में उनके निकटतम प्रतिद्वंदी रहे ब्लू एंड व्हाइट पार्टी के बेन्नी गांट्ज से एक के बाद एक अलग अलग मुलाकात करेंगे। 28 जनवरी को ट्रंप नेतन्याहू के साथ व्हाइट हाउस में संयुक्त संबोधन देंगे और इसी दौरान इस शांति प्रस्ताव के बारे में विस्तार से जानकारी दी जा सकती है

 

विदेश नीति से जुड़ी इन बैठकों से ट्रंप को अमेरिकी सीनेट में उनके खिलाफ चल रहे महाभियोग के मुकदमे से दो दिन की राहत मिलेगी

 

लेकिन इससे इस्राएलियों और फलस्तीनियों को एक साथ करने की लंबे समय से रुकी हुई कोशिश फिर से शुरू हो पाएगी या नहीं, यह कहना मुश्किल है।

 

इस कोशिश में फलस्तीनियों ने ट्रंप प्रशासन से बात करने से मना कर दिया है।

 

फलस्तीन की अर्थव्यवस्था और उसके पड़ोसी अरब अर्थव्यवस्थाओं की हालत में सुधार लाने के लिए पिछले साल जुलाई में जिस 50 अरब डॉलर की पुनरुत्थान योजना की घोषणा ट्रंप प्रशासन ने की थी, फलस्तीनी उसकी पूरी तरह से भर्त्सना कर चुके हैं।

 

उन्हें डर है कि ये योजना वेस्ट बैंक, पूर्वी येरुशलम और गाजा पट्टी में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की उनकी उम्मीदों को नष्ट कर देगी।

 

व्हाइट हाउस को उम्मीद यह है कि ट्रंप को अगर नेतन्याहू और गांट्ज दोनों का समर्थन मिल जाता है तो उससे योजना को थोड़ा बल मिलेगा। एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि ट्रंप योजना की घोषणा करने से पहले ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उसे नेतन्याहू और गांट्ज दोनों का समर्थन प्राप्त है।

 

उस अधिकारी ने कहा कि दोनों इस्राएली नेताओं को ट्रंप का संदेश है, अगर आपको यह योजना चाहिए तो इसे लागू करने के लिए आपके पास छह सप्ताह का समय है।

 

मामले पर अंदरूनी बातचीत के बारे में जानने वाले एक अमेरिकी सूत्र ने बताया है कि दोनों इस्राएली नेताओं के इस पर साथ होने से मुद्दे पर राजनीतिक खींचतान से बचा जा सकता है।

 

सूत्र का कहना था, इसका तर्काधार यह है कि ये कदम मुद्दे से राजनीति को इस कदर निकाल देता है कि चाहे दो मार्च को जो भी हो, दोनों सबसे बड़ी पार्टियों के दोनों नेताओं से समर्थन की उम्मीद की जा सकती है।

 

ट्रंप का प्रस्ताव वरिष्ठ सलाहकार जैरेड कुशनर और अवि बर्कोविट्ज की तीन साल की कोशिशों का नतीजा हैै। इस कोशिश में वरिष्ठ सलाहकार जेसन ग्रीनब्लैट भी शामिल थे, पर उन्होंने पिछले साल ही सरकार से इस्तीफा दे दिया।

 

ट्रंप को पिछले साल ही प्रस्ताव को जारी करने की उम्मीद थी जिसका उद्देश्य इस्राएल और फलस्तीनियों के बीच बातचीत शुरू करना है। लेकिन नेतन्याहू को सत्तारूढ़ गठबंधन बनाने में संघर्ष करते देख उन्हें मजबूर हो कर उसे टालना पड़ाा।

 

50 पन्नों से भी ज्यादा लंबे इस प्रस्ताव का लक्ष्य है दोनों देशों को बांटने वाले सबसे मुश्किल मुद्दों को हल करने की कोशिश करना। येरुशलम का दर्जा इन मुद्दों में शामिल है। फलस्तीनी चाहते हैं कि शहर का पूर्वी हिस्सा भविष्य में उनकी राजधानी बने।

 

नेतन्याहू कई मुश्किलों के दौर से गुजर रहे हैं। वे जल्द ही एक साल के अंदर तीसरा चुनाव लड़ने वाले हैं और नवंबर में आपराधिक मामलों में वे दोषी साबित हुए थे। उन्होंने सभी आरोपों को अस्वीकार किया है।

 

गांट्ज उनके मुख्य प्रतिद्वंदी हैं जिन्हें पहले इस बात पर ऐतराज था कि मार्च में होने वाले चुनावों से पहले शांति प्रस्ताव को सार्वजनिक कर दिया जाा।ए उन्होंने पिछले सप्ताह ही अपने ऐतराज को वापस ले लिया थाा।

 

दूसरी ओर, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भी अपनी ही राजनीतिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि नवंबर में ट्रंप को भी चुनावों का सामना करना है और वह इस्राएल में नए प्रधानमंत्री के चुने जाने का महीनों इंतजार नहीं कर सकते।

 

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी