बर्लिन सम्मेलन – लीबिया में अमन की राह के रोड़े

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जर्मनी की राजधानी बर्लिन में 19 जनवरी को लीबिया की समस्या पर शिखर सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन का आयोजन संयुक्त राष्ट्र के महासचिव और जर्मनी की चांसलर ने संयुक्त रूप से किया। इसमें यूरोपियन यूनियन, अफ्रीकन यूनियन और अरब लीग को भी बुलाया गया

 

तथा लीबिया समस्या से संबद्ध देशों रूस , तुर्की , इंग्लैंड , इटली , संयुक्त अरब अमीरात , मिस्र , चीन ,अल्जीरिया ,कांगो और अमेरिका को भी बुलाया गया ।

 

सम्मेलन में तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोगा़न, रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन , फ्रांस के प्रधानमंत्री मायक्रोन, इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, इटली के प्रधानमंत्री ग्यूसेप्पि, कांगो के राष्ट्रपति डेनिस सासु और अमेरिकी सेक्रेट्री ऑफिस स्टेट माइक पॉम्पियो भी सम्मिलित हुए ।

 

लीबिया की अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार ‘गवर्नमेंट ऑफ नेशनल एकॉर्ड’ ( राष्ट्रीय समझौते की सरकार ) के प्रधानमंत्री फाएज़ सिराज और उनके विरोधी ‘लीबियन नेशनल आर्मी’ के अगवा ख़लीफ़ा हफ़्तर भी सम्मेलन में उपस्थित थे ।

एक दिवसीय बर्लिन सम्मेलन में लीबिया में संघर्षरत दोनों पक्षों के बीच कोई समझौता नहीं हो सका। लेकिन सम्मिलित देशों में इस बात पर सहमति बनी की समस्या का बातचीत के माध्यम से राजनीतिक हल ढूंढा जाए । लीबिया के गृहयुद्ध की आग को और अधिक बढ़ने से रोका जाए । कोई भी देश लीबिया में संघर्षरत धड़ों की भौतिक और सैन्य सहायता नहीं करेगा।

आज लीबिया का परिदृश्य यह है कि लीबिया की 20 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गृह युद्ध के कारण पलायन कर गई है । देश ‘लीबिया नेशनल आर्मी’ ( एल० एन० ए० ) और त्रिपोली की ‘गवर्नमेंट ऑफ नेशनल एकॉर्ड’ ( जी० एन० ए० ) के बीच विभाजित है । राजधानी त्रिपोली और उसके निकट का क्षेत्र जी० एन० ए० के नियंत्रण में है । तबरुक नगर सहित देश के पूर्वी भाग पर ख़लीफ़ा हफ़्तर की एल एन ए का क़ब्ज़ा है । दोनों धड़ों के बीच वर्चस्व और क़ब्ज़े को लेकर लड़ाइयां हो रही हैं।

सामरिक , आर्थिक और राजनीतिक हितों के लिए पड़ोसी और दूरदराज़ के देश भी इस गृहयुद्ध में भूमिका निभा रहे हैं । रुस , सऊदी अरब , संयुक्त अरब अमीरात , फ़्रांस, मिस्र, खुलकर ख़लीफा हफ़्तर का हर प्रकार से समर्थन कर रहे हैं । वहीं सूडान , इस्राइल और जॉर्डन ख़ामोशी से समर्थन कर रहे हैं ।

जी एन ए की सरकार जिसके प्रधानमंत्री फ़ाएज़ सिराज त्रिपोली से अपनी सरकार चला रहे हैं । इस सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लीबिया की सरकार के रूप में मान्यता प्राप्त है । संयुक्त राष्ट्र भी इस सरकार को लीबिया की वैध सरकार मानता है। संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों से ही त्रिपोली में एक समझौते के फलस्वरुप ‘गवर्नमेंट ऑफ नेशनल एकॉर्ड’ सरकार बनी थी । इस सरकार को इटली , क़तर और तुर्की का समर्थन प्राप्त है । तथा अमेरिका का विदेश मंत्रालय भी इसका समर्थन करता है ।

 

45 लाख की जनसंख्या वाला छोटा सा देश लीबिया फौजी तानाशाह के दौर में खु़शहाल था। जनता के लिए बिजली मुफ्त थी । स्वास्थ्य सेवाएं तथा शिक्षा मुफ्त थी । रहने के लिए प्रत्येक परिवार के लिए घर मौलिक अधिकार था जिसे सरकार उपलब्ध कराती थी । एक निश्चित रक़म प्रत्येक परिवार को सरकार की ओर से प्रति माह की दर से भुगतान की जाती थी ।किसी प्रकार का कर नहीं था । ईंधन एवं पेट्रोल आदि बहुत ही सस्ता था। बेरोज़गारी लगभग नही के बराबर थी । यूरोप के किसी भी खुशहाल देश की तुलना में प्रति व्यक्ति आय अधिक थी । आज लीबिया वासी रक्तपात और वार लॉर्डस का शोषण सहन करने पर विवश हैं। राजधानी त्रिपोली में दिन में 12 से 16 घंटों का बिजली का शटडाउन एक सामान्य बात हो गई है ।

 

लीबिया प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल देश है। लीबिया सुरक्षित तेल भंडार के लिहाज़ से विश्व का 9 वां देश है। जिसके पास विश्व के 2. 9 प्रतिशत तेल भंडार हैं । पुराने आकड़ो से प्राप्त अनुमान के अनुसार यदि लीबिया वर्तमान( सोलह लाख बैरल प्रतिदिन ) दर से इसी प्रकार से तेल निकालता रहे तो 131 वर्षों तक यह तेल भंडार चलेंगे ।

लीबिया के पास प्राकृतिक गैस के भी अपार भंडार हैं । एक सर्वे के अनुसार लीबिया के पास सुरक्षित 1505 अरब क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस के सुरक्षित भंडार हैं। प्राकृतिक गैस के सुरक्षित भंडार के लिहाज़ से लीबिया का विश्व में 22वां स्थान है।

लीबिया के पूर्व शासक मोअम्मर क़ज़ाफी ने देश की दौलत को विभिन्न क्षेत्रों में निवेश किया । लीबिया की 160 अरब अमेरिकी डॉलर की पूंजी यूरोप ,अमेरिका , एशिया और अफ्रीका में निवेश की गई । इसके लिए ‘लीबियन इनवेसमेंट अथॉरिटी’ बनाई गई । जिस ने 70 अरब डॉलर का पोर्टफोलियो बनाया। इसके पोर्टफोलियो में फुटबॉल क्लब से लेकर यूरोप अमरीका की बड़ी-बड़ी कंपनियों और प्रसिद्ध बैंकों के शेयर भी थे ।

 

 

लीबिया के प्राकृतिक संसाधनों और निवेशित दौलत के ऊपर अधिकार जमाने के लिए विभिन्न भीतरी और बाहरी शक्तियां संघर्षरत हैं । जो शांति की राह का रोड़ा हैं। इनमें प्रमुख किरदार ख़लीफ़ा हफ्तर का है ।

 

ख़लीफ़ा हफ्तर लीबिया में पैदा हुए । सेना में भर्ती हुए । मोअम्मर क़ज़ाफ़ी के साथ मिलकर लीबिया के बादशाह शाह इदरीस का तख़्ता पलटा । मोअम्मर क़ज़ाफ़ी का विश्वासपात्र बन सेना में ऊंचे पदों पर रहे । क़ज़ाफ़ी के बाद लीबिया में शक्तिशाली व्यक्ति समझे जाते थे।

 

क़ज़ाफ़ी द्वारा पड़ोसी देश चाड से छेड़े गए युद्ध में ख़लीफ़ा हफ़्तर ने सेना की अगुवाई की। लेकिन असफल रहे । सैकड़ों सैनिकों के साथ गिरफ्तार हुए और युद्ध बंदी बना लिए गए । अमेरिका की सी आई ए ख़लीफ़ा हफ़्तर को चाड से अमेरिका ले गई । वहां यह सी आई ए के साथ मिलकर मोअम्मर क़ज़ाफ़ी का तख़्ता पलटने की योजना पर काम करने लगे । क़ज़ाफ़ी की हत्या के कई प्रयास किए गए जो सभी असफल रहे।

 

2011 में क़ज़ाफ़ी के मारे जाने के पश्चात लीबिया में अफरा-तफरी फैल गयी। इस दशा में सीआईए ने ख़लीफ़ा हफ़्तर की उपयोगिता को समझते हुए लीबिया में उतार दिया । पेशे से सैनिक अधिकारी रहे ख़लीफा़ का लीबिया के सैनिकों और हथियार बंद घटको को इकट्ठा करने में समय नहीं लगा।

 

इस काम को आसान बनाया अरब नौदौलतियों के अकूत धन ने , जिसने वफादारीयां बदलने में मुख्य भूमिका निभाई । लीबिया एक क़बायली समाज है 140 से अधिक क़बीले हैं । इन्हें धन के बल पर अपने साथ मिलाया गया ।

 

सूडान से भाड़े के लड़ाके भर्ती किए गए । अमेरिका की ‘ब्लैक वाटर’ और ‘ज़ी वर्ल्डवाइड’ की भांति रूस की निजी सेना उपलब्ध कराने वाली कंपनी ‘वागनार ग्रुप’ की सेवाएं ली गयीं। इस भाड़े की सेना के सहयोग, इसराइल , फ्रांस और मिस्र की इंटेलिजेंस एजेंसियों के मार्गदर्शन और समर्थन से ख़लीफ़ा हफ़्तर तेल उत्पादन क्षेत्र समेत लीबिया के अस्सी प्रतिशत से अधिक क्षेत्रफल पर क़ाबिज़ गए।

 

भूराजनीतिक और सामरिक दृष्टि से लीबिया की भौगोलिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है । ऊपर से प्राकृतिक संसाधन और लीबिया के विशाल तेल और गैस के भंडार क्षेत्रीय और विश्व शक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं ।

 

लीबिया में रूस और अमेरिका की स्थितियां बड़ी विरोधाभासी है। रूस ख़लीफ़ा हफ़्तर का समर्थन कर रहा है । यह जानते हुए कि वह सीआईए का एसेट है। दूसरी ओर अमेरिकी सीआईए और पेंटागान ख़लीफ़ा के पीछे खड़े हैं। वहीं अमेरिकी विदेश मंत्रालय जी एन ए के फ़ाएज़ सिराज के समर्थन में बयान देता है ।

 

भूमध्य सागर के दूसरी ओर के देश तुर्की ने लीबिया की जी एन ऐ सरकार से तेल और गैस की खोज , विकास एवं उत्पादन के क्षेत्र में समझौता किया है । लिबिया और तुर्की के मध्य सुरक्षा समझौता भी हुआ है जिसके अनुसार त्रिपोली सरकार के संकट के समय में तुर्की लीबिया की सैन्य मदद करेगा। यह समझौता दिसंबर 2019 में हुआ । जनवरी के पहले सप्ताह में तुर्की की पार्लिमेंट द्वारा आवश्यकता पड़ने पर सेना भेजने का प्रस्ताव भी पास किया गया । ख़लीफ़ा हफ़्तर ने नई परिस्थिति से अति चिंतित और क्रोधित होकर तुर्की के विरुद्ध वाक्य युद्ध छेड़ रखा है ।

 

तुर्की – क़तर का प्रयास है कि लीबिया उसके घोर विरोधी सऊदी अरब-संयुक्त अरब अमीरात- मिस्र के ख़ेमें में नही जाने पाए । जी एन ए के प्रधानमंत्री फ़ाएज़ सिराज इस्लामपसंदो के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण रखते हैं । तुर्की-क़तर के अपने आर्थिक हित भी हैं ।

 

सऊदी अरब ,संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र अपने पड़ोस में लोकतंत्र को पनपता नहीं देखना चाहते हैं । क्योंकि वह उनके तख़्त और ताज के लिए ख़तरा है । उनका हित सीसी जैसे डिक्टेटर में ही है । जिसके लिए ख़लीफ़ हफ़्तर पूर्ण उपयुक्त हैं । सऊदी अरब ,मिस्र , संयुक्त अरब अमीरात लीबिया की राष्ट्रीय समझौते की सरकार में ‘अल इख़वानुल मुस्लिमून’ की उपस्थिति से भी चिंतित हैं वह लीबिया में क़तर और तुर्की को कोई स्थान नहीं देना चाहते हैं । सऊदी अरब ने लीबिया में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मदख़ली सलफीयों को ख़लीफ़ा हफ़्तर की हिमायत पर राज़ी कर लिया है । जिससे ख़लीफ़ा हफ़्तर और अधिक शक्तिशाली हो गए हैं ।

 

इस्राइल के रक्षा उत्पादन की खपत एवं बिक्री मोसाद के दायित्व की परिधि में आती है । जिसे वह लीबिया में बखू़बी निभा रही है । एक तीर से कई शिकार उसकी परंपरा एवं विशेषता है ।

 

लिबिया का 36 अरब डॉलर का अमेरिका में निवेश है। इंग्लैंड, फ्रांस ,जर्मनी में क्रमशः 13.6 , 7.7 , और 7 अरब यूरो का निवेश है । जिसे इन देशों ने फ्रीज़ कर रखा है । यदि सीरिया में शांति स्थापित होती है । तो यह निवेश लीबिया वापस जा सकता है । इसलिए यह देश सीरिया में शांति नहीं होने देना चाहते हैं विशेषकर वर्तमान ख़स्ताहाल आर्थिक परिस्थितियों में । इसके अतिरिक्त भी अशांत लीबिया में सबके अपने-अपने हित हैं ।

 

अशांत युद्ध ग्रस्त मुस्लिम देश रूस के लिए एक संभावना हैं । जहां वह अपने व्यापारिक, आर्थिक और सैन्य हितो की पूर्ति सरलता पूर्वक कर रहा है । रूस अमरीकी एजेंडे एवं हितों को नुक़सान पहुंचाए बगै़र अपने हितों को सुरक्षित कर रहा है । रूस के कार्यों से प्रतीत होता है कि अमरीका की लूट संस्कृति का नवसंस्करण है।

 

लीबिया में मोअम्मर क़ज़ाफ़ी की 40 वर्षों से चली आ रही सत्ता समाप्त हुई । इसे अरब स्प्रिंग के क्रांतिकारियों ने संभव बनाया । उन्होंने सोचा कि एक तानाशाह के जाने के बाद नया सूर्योदय होगा । जनता का राज होगा ।

 

लेकिन अरब जगत को तलपट करने वाली अरब स्प्रिंग ने लीबिया को भी अनिश्चितता की अथाह गहराइयों में ढकेल दिया । लीबिया की जनता इसकी भुक्तभोगी है । नौ वर्ष गुज़र जाने के बाद भी लीबिया की जनता को नए सूर्योदय का इंतज़ार है ।

 

लेखक: मिर्ज़ा शिबली बेग