मिर्ज़ा शिबली बेग का ब्लॉग- कुवालालंपुर सम्मेलन ‘आशाएं और आशंकाएं’

   

” हम पूरी दुनिया में मुसलमानों की ज़िन्दगयां आसान बनाना चाहते हैं और इस्लामोफोबिया पर क़ाबू पाना चाहते हैं ।”

” हमें ऐसे रास्ते तलाश करने होंगे जिससे हम अपनी कमज़ोरियों पर क़ाबू पा सके और रक्षा के क्षेत्र में औरो के ऊपर हमारी निर्भरता समाप्त हो। “

यह विचार थे मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद के जो उन्होंने 18 दिसंबर 2019 से शुरू होने वाली कुवालालंपुर सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में व्यक्त किए ।

‘कुवालालंपुर सम्मेलन’ मलेशिया की राजधानी कुवालालंपुर में 18 दिसंबर से 21 दिसंबर तक चलेगा इस चार दिवसीय सम्मेलन में 57 मुस्लिम देशों में से 52 देशों का प्रतिनिधित्व रहा।मिस्र , सऊदी अरब , बहरीन , संयुक्त अरब अमीरात और यमन सम्मेलन में सम्मिलित नहीं हुए। बीस मुस्लिम देशों के सरकारी प्रतिनिधि मंडल की उपस्थिति दर्ज हुई जबकि तीन राष्ट्र अध्यक्ष क़तर से अमीर तमीम बिन हम्माद , ईरान से प्रधानमंत्री हसन रूहानी और तुर्की से राष्ट्रपति रजब तैयब और अरदोग़ान ने शिरकत की।

52 मुस्लिम देशों के 250 प्रतिनिधि इस सम्मेलन में उपस्थित थे जिनमें सरकारी और ग़ैर सरकारी प्रतिनिधिमंडल भी थे जबकि 150 अतिथि मलेशिया के भीतर के थे जिनका जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से संबंध था।

‘कुवालालंपुर सम्मेलन’ का उद्देश्य उसके आयोजन कर्ताओं के अनुसार मुस्लिम उम्मत के समक्ष चुनौतियों , इस्लामोफोबिया , इस्लामी सभ्यता का पतन ,मुस्लिम देशों की शासन पद्धति तथा पश्चिम में इस्लाम से संबंधित ग़लतफ़हमियों का हल एवं कारण तलाश करना था।

‘कुवालालंपुर सम्मेलन’ अपने आयोजन से पूर्व ही विवादों में घिर गया सऊदी अरब और उसके मित्र देशों ने इसे ओ आई सी ( आर्गनाइज़ेशन आफ इस्लामिक कॉन्फ्रेंस ) के समानांतर समझकर इसका विरोध किया। ओ आई सी के सिक्रेटरी जनरल युसूफ उस्मान ने कहा ” कुवालालंपुर सम्मेलन इस्लामी राष्ट्रों के हित के विरुद्ध है इससे मुस्लिम देशों के बीच एकता पर प्रभाव पड़ेगा।”

सऊदी अरब ने सम्मेलन के अंतिम समय तक इसके आयोजन को रोकने का प्रयास किया इस संबंध में शाह सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ ने महातिर मोहम्मद से फोन पर बात भी की। सऊदी अरब की चिंता इस सम्मेलन में सम्मिलित उसके शत्रु राष्ट्र ईरान , क़तर और तुर्की को लेकर थी और मुस्लिम जगत में अपने नेतृत्व की यथास्थिति को बनाए रखने के लिए थी

सऊदी अरब ने सम्मेलन को नाकाम बनाने के लिए अपने तुरुप के पत्ते का इस्तेमाल किया। उसने पाकिस्तान को विवश किया कि यदि पाकिस्तान ‘कुवालालंपुर सम्मेलन’ में सम्मिलित हुआ तो सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में काम करने वाले चालीस लाख पाकिस्तानी श्रमिकों को निकाल दिया जाएगा और पाकिस्तान की आर्थिक मदद समाप्त कर दी जाएगी।

‘कुआलालंपुर सम्मेलन’ के आयोजन का निर्णय यू एन जनरल असेंबली के मौक़े पर इमरान ख़ान , रजब तैयब अरदोग़ान और महातिर मोहम्मद की आपसी सहमति और निर्णय के आधार पर किया गया था लेकिन सऊदी अरब के दबाव के आगे घुटने टेकते हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने आयोजन में सम्मिलित ना होने का निर्णय लिया और अपने इस निर्णय से महातिर मोहम्मद को आगाह किया।

इमरान ख़ान का सम्मेलन में सम्मिलित ना होने का निर्णय अंतिम क्षणों में लिया गया जिसकी जानकारी प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद के कार्यालय ने 17 दिसंबर को दी। पाकिस्तान की ओर से सरकारी स्तर पर कोई भी अधिकारी सम्मेलन में सम्मिलित नहीं हुआ।

ज्ञात हो अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति से उबरने के लिए पाकिस्तान ने संयुक्त अरब अमीरात से तीन बिलियन डॉलर अपने स्टेट बैंक में जमा करने का अनुरोध किया था जिसे उसने स्वीकार कर लिया था दो प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से पाकिस्तान ने यह कर्ज़ संयुक्त अरब अमीरात से प्राप्त किया जो 3 साल की अवधि के लिए है यह रक़म पाकिस्तान के बैंक में जमा रहेगी और पाकिस्तान को इन पैसों के इस्तेमाल करने का अधिकार प्राप्त नहीं है वहीं दूसरी ओर सऊदी अरब से 3 साल की अवधि के लिए उधार तेल का एक समझौता हुआ जिसके अनुसार एक बिलियन डॉलर का तेल सऊदी अरब की ओर से प्रतिवर्ष पाकिस्तान को उधार मिला करेगा।

चार दिवसीय सम्मेलन में तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अरदोग़ान ने अपने भाषण में कहा ” हमें अपनी अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिए उपाय करने चाहिए। ”

अरदोग़ान का यह कथन तुर्की की अर्थव्यवस्था और उसकी मुद्रा के साथ की गई छेड़छाड़ की पीड़ा को व्यक्त करता है

ईरान के प्रधानमंत्री हसन रूहानी ने सम्मेलन में कहा ” हम चीन के साथ मिलकर उसकी तकनीक की सहायता से मुस्लिम देशों की एक नई डिजिटल करेंसी (क्रिप्टो करेंसी )बना सकते हैं इस मुद्रा के प्रयोग से मुस्लिम देश अमेरिकी प्रभाव से मुक्त हो जाएंगे ”

ईरान की सबसे बड़ी समस्या डॉलर की ख़रीद है प्रतिबंधों के कारण ईरान अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए डॉलर की ख़रीद करता है। वह खुले बाज़ार से डॉलर नही ख़रीद सकता है इसलिए वह डालर की तस्करी पर निर्भर एवं विवश है जिसकी लागत बीस प्रतिशत तक पहुंचती है।

‘कुवालालंपुर सम्मेलन’ के आयोजन की राह के अवरोधो एवं राजनीतिक बाधाओं को तजुर्बे कार अति परिपक्व महातिर मोहम्मद और लौह पुरुष की छवि वाले रजब तैयब अरदोग़ान ने विफल किया।

सम्मेलन को प्रभावित करने में आंशिक रूप से सऊदी अरब को सफलता अवश्य मिली लेकिन विश्व विशेषकर मुस्लिम जगत में उसकी छवि धूमिल हुई अभी लोग पत्रकार जमाल ख़शोगी की हत्या, लेबनान के प्रधानमंत्री रफीक़ हरीरी की रियाद में गिरफ्तारी और उन को विवश कर इस्तीफा लेने की घटनाओं को नहीं भुला पाए हैं ।

मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने सम्मेलन में ज़ोर दिया कि मुस्लिम देश अपना पारस्परिक व्यापार स्वर्ण मुद्रा में करें या वस्तु विनिमय के माध्यम से करें

महातिर मोहम्मद ने घोषणा की कि मलेशिया का ‘केंद्रीय बैंक’ मुस्लिम देशों के केंद्रीय बैंकों के साथ विचार विमर्श कर स्वर्ण मुद्रा दिनार के संबंध में कोई निर्णय लेगा।

‘कुवालालंपुर सम्मेलन’ में विभिन्न मुस्लिम देशों के बीच अट्ठारह समझौतों पर हस्ताक्षर हुए जो आधुनिक तकनीक , मीडिया ,खाद सुरक्षा एवं प्रसंस्करण ,युवा नेतृत्व के बीच आदान-प्रदान आदि से संबंधित थे

‘कुवालालंपुर सम्मेलन’ के अंतिम दिवस के समापन समारोह में कुछ प्रस्ताव पारित किए गए।

मुस्लिम देशों से अनुरोध किया गया कि वह आपस में नरम वीजा नीति बनाएं ।

मुस्लिम देश पारस्परिक व्यापार के लिए कॉमन मार्केट बनाएं ।

मुस्लिम देश पारस्परिक व्यापार आयात एवं निर्यात कर मुक्त करें।

मुस्लिम देश पारस्परिक व्यापार को कर मुक्त करें ।

मुस्लिम देश अपना एक कॉमन वेल्थ बनाएं ।

मुस्लिम देश अपनी एक साझी करेंसी के लिए विचार करें ।

मुस्लिम देश अपनी सुरक्षा के लिए निर्भरता समाप्त करें। और अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर बने इसके लिए आवश्यक उपाय करें।

सम्मेलन में पारित प्रस्ताव वर्तमान में मुस्लिम जगत की प्राथमिक आवश्यकताएं हैं किंतु मुस्लिम जगत में कितने नेता हैं जो महातिर और अरदोग़ान की भांति सोचते हैं ? महातिर जो 90 से अधिक सावन देख चुके हैं उन्हें सत्ता भी अनवर इब्राहिम को हस्तांतरित करनी है। अरदोग़ान जो बहुत मामूली सी बढ़त के साथ राष्ट्रपति पद पर आसीन हैं जिनको तुर्की के आतंरिक मोर्चे पर बहुत सी चुनौतियों का सामना है ।

अरदोग़ान के पुराने साथी और ए के पी पार्टी के संस्थापक सदस्य अली बाबा कान और दाऊद ओग़लो जो क्रमश: वाणिज्य मंत्री और प्रधानमंत्री रह चुके हैं अरदोग़ान के समक्ष नई राजनीति चुनौतियां प्रस्तुत कर रहे हैं । ईरान जिसकी महत्वाकांक्षाऐ उसे समस्याएं उत्पन्न करने के लिए विवश करती हैं। जिनमें वह बुरी तरह उलझ गया है ।

रजब तैयब अरदोग़ान के राजनीतिक गुरु एवं तुर्की के जनप्रिय नेता नजमुद्दीन अरबकान ने अपने प्रधानमंत्री काल में मुस्लिम देशों का संगठन डेवलपिंग 8 बनाया था । उनके बाद इस संगठन का नाम लेवा कोई नहीं है

मुस्लिम देश और वहां बसने वाली जनता ओ आई सी की निष्क्रियता और औपचारिकताओं से निराश है।

उधर अपनी ‘आंशिक सफलता’ का जश्न सऊदी अरब ने रियाद में एक भव्य म्यूज़िक आयोजन में मनाया जिसमें विश्व भर के नामी म्यूज़िक बैंड मौजूद थे। इस आयोजन में चार लाख से अधिक सऊदी उपस्थित रहे।

मिर्ज़ा शिबली बेग
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