संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ‘लिंचिंग’ पर नई बहस शुरू कर दी है. उनके मुताबिक लिंचिंग जैसा भारत में कुछ नहीं है, बल्कि इसकी आड़ में साजिश चल रही है. फिर उन लोगों की हत्याओं को क्या कहा जाए जिन्हें भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला?
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि मई 2015 और दिसंबर 2018 के बीच 100 से भी ज्यादा घटनाएं हुईं, जिनमें कम से कम 44 लोगों को भीड़ ने मिल कर मार दिया और करीब 280 लोग घायल हो गए.
It isn’t the economic slowdown or mob lynching incidents that trouble Bhagwat. It is that people are talking about them. https://t.co/kV9rLluvDj
— Scroll.in (@scroll_in) October 10, 2019
मरने वालों में से 36, यानी करीब 82 प्रतिशत मुसलमान थे. दिल्ली के पास दादरी में सितंबर 2015 में 52 वर्षीय व्यक्ति मोहम्मद अखलाक की हत्या ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी.
Mohan Bhagwat’s (RSS Supremo) his real concern is the reputational cost of talking about India’s many mob lynching incidents – which frequently involve Hindutva activists attacking Muslims . Bhagwat seemed to say, don’t tell the world about them.
https://t.co/a4upMQkwSx— Salman Bashir (@Salman_B_PK) October 9, 2019
फ्रिज में गोमांस रखने के संदेह में उनके ही पड़ोसियों ने उन्हें इतना पीटा कि मौत हो गई. इसके बाद भारत के कई हिस्सों में इस तरह की घटनाएं देखने को मिलीं. इनमें कई हत्याओं के आरोप तथाकथित गोरक्षकों पर लगे.
RSS chief, Mohan Bhagwat took particular issue with the term lynching. Maybe he doesn't like people knowing that Hindutva activists are involved in mob-lynching of Muslims.https://t.co/LDkmh4SiXD
— Jack Robins (@JackRob67175771) October 9, 2019
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन घटनाओं की निंदा की और कहा कि ऐसे लोग गोरक्षक नहीं हो सकते. लेकिन इस तरह की घटनाएं बराबर होती रहीं. व्हाट्सऐप पर फैली अफवाहों की वजह से भी कई लोगों को भीड़ ने मौत के घाट उतार दिया.
Owaisi said Muslims, Dalits and even Hindus are victims of incidents of mob lynching in the country. "Are these incidents not mob-lynching?" he questioned | HW English https://t.co/vKzIcfma37
— HW News English (@HWNewsEnglish) October 9, 2019
ऐसे में व्हाट्सएप ने भी अफवाह न फैलाने की अपील करते हुए अखबारों में पूरे पूरे पेज के विज्ञापन छपवाए. बाद में उसने अपने ऐप में एक नई विशेषता भी जोड़ी जिसके जरिए हर फॉरवर्ड किया हुआ संदेश अब चिन्हित होता है.
लिंचिंग की घटनाओं पर आधिकारिक आंकड़े मौजूद नहीं हैं. लेकिन डाटा पत्रकारिता करने वाली वेबसाइट इंडियास्पेंड के अनुसार, सिर्फ जनवरी 2017 और जुलाई 2018 के बीच में इस तरह की कम से कम 69 घटनाएं हुईं, जिनमें कम से कम 33 लोगों की जान चली गई.
Mohan Bhagwat carefully worded his annual Vijayadashami speech as he spoke on national security, mob lynching, & what it means to be Hindu. In episode 285 of ThePrint's #CutTheClutter, @ShekharGupta declutters the significance of the RSS chief's comments.https://t.co/L9iozZL9In
— ThePrintIndia (@ThePrintIndia) October 8, 2019
इस तरह की हत्याओं को रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में भी कई याचिकाएं दायर की गईं. इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2018 में संसद को एक विशेष कानून लाने के लिए कहा ताकि इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके.
अब तक लिंचिंग के खिलाफ कोई केंद्रीय कानून नहीं आया है. राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि सरकार अभी तक ऐसा विधेयक संसद में इसलिए लेकर नहीं आई है क्योंकि सरकार को यह मुद्दा उतना जरूरी नहीं लगता.
उनके मुताबिक कई ऐसे विषय हैं जिन पर कम समय में विधेयक लाए गए और पारित भी करवा लिए गए. उन्होंने उदाहरण के तौर पर तीन तलाक से संबंधित विधेयक की याद दिलाई और कहा कि इसी तरह लिंचिंग से लड़ने वाला विधेयक भी लाया जा सकता था.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख हर साल विजयदशमी पर एक भाषण देते हैं. इस वर्ष भी संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विचार संघ के स्वयंसेवकों और अधिकारियों के समक्ष रखे. इस बार उनके भाषण में कई अन्य विषयों के साथ साथ भीड़ द्वारा लोगों को पीट पीट कर मार दिए जाने की बढ़ती घटनाओं पर विशेष जोर था.
भागवत ने कहा कि एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के व्यक्तियों पर आक्रमण कर उन्हें सामूहिक हिंसा का शिकार बनाने की यह प्रवृत्ति भारत की परंपरा नहीं है. उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं को ‘लिंचिंग’ जैसे शब्द देकर सारे देश को और हिन्दू समाज को बदनाम किया जा रहा है.
उन्होंने यह भी कहा कि यह देश के तथाकथित अल्पसंख्यक वर्गों में भय पैदा करने का एक षड़यंत्र है और विशिष्ट समुदाय के हितों की वकालत करने की आड़ में लोगों को आपस में लड़ाने का उद्योग है जिसके पीछे कुछ नेता हैं.
साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी