आपसी दुश्मनी में उलझे मुस्लिम देश, इज़राइल के करीब आने की लगी होड़!

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यूएई के बाद एक और अरब देश बहरीन ने इस्राएल से राजनयिक संबंध कायम करने की घोषणा की है। 

 

अब सवाल है कि क्या जल्द सऊदी अरब की तरफ से भी ऐसी घोषणा होगी। जो भी हो, लेकिन अरब दुनिया के बदलते समीकरणों से ईरान में खलबली मची है।

 

मध्य पूर्व में इस्राएल के साथ बढ़ती नजदीकियों को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की बड़ी कामयाबी बताया जा रहा है। नॉर्वे के एक सांसद ने तो ट्रंप का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी भेज दिया।

 

उनका कहना है कि ट्रंप देशों के बीच शांति कायम कर रहे हैं। लेकिन इलाके पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि जिन देशों के बीच “शांति” कायम करने का श्रेय ट्रंप ले रहे हैं, उनके बीच तो कभी युद्ध नहीं हुआ।

 

यूएई के बाद अब बहरीन ने भी इस्राएल के साथ राजनयिक संबंध कायम करने को हरी झंडी दिखा दी है। बहरीन के फैसले के बाद यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या सऊदी अरब भी जल्द ऐसा कदम उठाएगा? ऐसा होता है तो यह इस्राएल के लिए शायद सबसे बड़ी जीत होगी।

 

बहरीन के सुन्नी शासकों के सऊदी अरब से नजदीकी रिश्ते हैं। जब 2011 में बहरीन में सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए तो उन्हें दबाने में सऊदी अरब ने बहुत मदद की थी।

 

यूएई और इस्राएल के बीच समझौते को भी सऊदी अरब का मूक समर्थन रहा है। यही नहीं, जब इस्राएल और यूएई के बीच सीधी व्यावसायिक उड़ानों की बात आई, तो सऊदी अरब ने अपने वायुक्षेत्र को खोल दिया।

 

दरअसल मध्य पूर्व में कूटनीति और रणनीति की असल धुरी ईरान से इस्राएल और अरब देशों की प्रतिद्वंद्विता है। लेकिन बहुत से लोगों का मानना है कि लंबी अवधि में बहुसंख्यक यहूदी और लोकतांत्रिक देश इस्राएल को अगर किसी से खतरा है तो वह है फलीस्तीनियों से उसका विवाद। भूमध्य सागर और जॉर्डन नदी के बीच बसे क्षेत्र में जल्द ही फलस्तीनी आबादी में यहूदियों को पीछे छोड़ सकते हैं।

 

संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) अमेरिका का नजदीकी सहयोगी रहा है। उसने कभी इस्राएल से कोई युद्ध नहीं लड़ा। इस्राएल के साथ राजनयिक संबंध कायम करने की औपचारिक घोषणा यूईए ने भले ही अब की हो, लेकिन ईरान के खिलाफ बने गठबंधन में तो यूईए इस्राएल के साथ कई साल से अनौपचारिक सहयोग कर रहा है।

 

अब नई डील होने के बाद यूईए को अत्याधुनिक अमेरिकी हथियार मिलने का रास्ता साफ होगा।

 

वहीं इस्राएल और फलीस्तीनियों के बीच दशकों से चल रहे विवाद का अब शायद सबसे बड़ी प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है। यही विवाद दशकों तक इस्राएल और अरब देशों के रिश्तों में बाधा रहा। लेकिन अब इलाके की हकीकत बदल रही है।

 

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी