सीरिया में तुर्की की फौजी कार्रवाई से इजरायल में घबराहट, क्या अगली बारी उसकी?

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सीरिया में तुर्की की कार्रवाई से इजरायल की निंदा उड़ी, मुस्लिम देशों को एकजुट होने से रोकना चाहेगा

सीरिया से अमरीकी सैनिकों को बाहर निकालने की राष्ट्रपति ट्रम्प की घोषणा के बाद उत्तरी सीरिया पर तुर्की की चढ़ाई से इस्राईल में काफ़ी कुछ टूट-फूट रहा है।

वाशिंगटन स्थित अल-मॉनिटर वेबसाइट ने नाम ज़ाहिर नहीं करने की शर्त पर एक वरिष्ठ इस्राईली अधिकारी के हवाले से लिखाः अब हमें अकेला छोड़ दिया गया है। हमारी आँखों के सामने शक्ति का रणनीतिक संतुलन बदल रहा है। बुरे लोग जीत रहे हैं और अच्छे लोग हमें छोड़कर जा रहे हैं। इस्राईल को शक्तिशाली तुर्की-रूस-ईरान गठजोड़ के सामने बेसहारा छोड़ दिया गया।

इस्राईली अधिकारी अपनी छाती पीट पीटकर अकेले छोड़े जाने का मातम ऐसी स्थिति में कर रहे हैं, जब उन्होंने पिछले 70 वर्षों के दौरान पूरे मध्यपूर्व विशेषकर फ़िलिस्तीन में ऐसे मानवता विरोधी घिनौने अपराध किए हैं कि मानव इतिहास में जिसकी कोई मिसाल नहीं मिलती।

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ज़ायोनी यह भूल गए थे कि पापों का घड़ा एक दिन भरकर फूटता ही है। इस्राईल पिछले 70 वर्षों के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य और अमरीका जैसी महाशक्तियों के बलबूते विज्ञान और तकनीक में पिछड़ जाने वाले अरबों और मुसलमानों पर रौब गांठ रहा था और दुनिया पर अपनी सैन्य शक्ति की धाक जमा रहा था।

लेकिन मुसलमानों ने अपनी खोई हुई सबसे क़ीमती चीज़ को दोबारा हासिल करने में बहुत देर नहीं लगाई और साइंस और टेक्नॉलीजी के क्षेत्र में ऐसी वापसी की जिसे देखकर अमरीकियों और इस्राईलियों ने दांतों तले उंगली दबा ली।

20 जून को ईरान ने अपनी वायु सीमा का उल्लंघन करने वाले अमरीका के आधुनिकतम ड्रोन विमान को क़रीब 18 किलोमीटर की ऊंचाई पर मार गिराया, जबकि उसके साथ उड़ने वाले एक अन्य सैन्य विमान को चेतावनी देकर छोड़ दिया, जिसमें 35 अमरीकी सैन्य अधिकारी सवार थे।

उसके बाद 14 सितम्बर को यमन के ड्रोन विमानों ने सऊदी तेल कंपनी अरामको के तेल प्रतिष्ठानों पर सटीक बमबारी ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। इस घटना ने अरब देशों के भी होश उड़ा दिए, जो अरबों डॉलर के हथियारों के रूप में अमरीका और पश्चिमी देशों से सुरक्षा ख़रीदने के भ्रम में थे।

पार्स टुडे पर छपी खबर के अनुसार, तुर्की के सैन्य ऑप्रेशन के लिए मैदान ख़ाली करने के लिए सीरिया से निकलने की ट्रम्प की घोषणा से ठीक पहले 6 अक्तूबर को इस्राईली प्रधान मंत्री नेतनयाहू ने अपनी सुरक्षा कैबिनेट की तत्काल बैठक बुलाई।

पिछले कई महीनों में नेतनयाहू ने ऐसा पहली बार किया था। बैठक में ईरान की बढ़ती हुई शक्ति पर गहरी चिंता जताई गई और यह दावा किया गया कि अरामको पर हमले के पीछे ईरान का हाथ है।

अल-मॉनिटर के अनुसार, एक पूर्व वरिष्ठ इस्राईली सुरक्षा अधिकारी ने उससे बात करते हुए दावा किया कि हमें मालूम है कि यह ईरानी वायु सेना का काम था। अमरीकी भी यह जानते हैं। जो भी जानना चाहता है, वह आसानी से यह समझ सकता है। इसके बावजूद, ईरानी विदेश मंत्री टीवी स्क्रीन पर प्रकट होते हैं और बग़ैर किसी हिचकिचाहट के एलान करते हैं कि ईरान का इस हमले से कोई लेना देना नहीं है।

आख़िरकार इस्राईल का ख़ुमार कुछ कम हुआ है और उसे अपने घावों में उठने वाली टीस का कुछ अहसास होना शुरू हुआ है। इस्राईलियों की अब यह समझ में आ रहा है कि ट्रम्प जो ख़ुद को ज़ायोनियों का मसीहना तो नहीं लेकिन उनका प्रेमी कहते थे, एक झटके में उन्हें अकेला छोड़ सकते हैं। सीरिया से अमरीकी सैनिकों के निकलने के बारे में सोच सोचकर इस्राईली अधिकारियों के पास रोने और छाती पीटने अलावा अब कुछ बाक़ी नहीं बचा है।

एक इस्राईली सैन्य अधिकारी का कहना है कि यह सही है कि इस नीति की शुरूआत राष्ट्रपति ओबामा के शासनकाल में शुरू हुई थी, लेकिन ट्रम्प के जीतने के बाद उनसे हमें काफ़ी उम्मीदें थीं। यह सुनकर बहुत दुख होता है कि अमरीका अब विश्व में अपनी भूमिका को सीमित कर रहा है और उसे मध्यपूर्व में बने रहने में भी कोई दिलचस्पी नहीं है।

इस्राईली अधिकारियों के लिए इस हक़ीक़त से रूबरू होना किसी डरावने सपने से कम नहीं है कि इतिहास में पहली बार वह ख़ुद को हारने वाले पक्ष और तन्हा छोड़ दिए जाने वालों के रूप में देख रहे हैं।

विश्व मीडिया अभी तक ज़ायोनी शासन को दुनिया का सबसे संरक्षित शासन बताता आया है, लेकिन इस्राईली अधिकारी आज ऐसा कोई भी दावा करने की स्थिति में नहीं हैं। उनकी असली चिंता केवल ईरान के क्रूज़ मिसाइल नहीं हैं, बल्कि उनकी मूल चिंता यह है कि दुनिया की कोई वायु रक्षा प्रणाली उन्हें मार गिराने में सक्षम नहीं है।

यहां सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस्राईल के एकमात्र परमाणु संयंत्र डिमोना के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाने वाले एक वरिष्ठ इस्राईली वैज्ञानिक ने 3 अक्तूबर को प्रकाशित हुए अपने लेख में सरकार से इस परमाणु संयंत्र को बंद करने की मांग कर डाली है।

मारिव के साथ इंटरव्यू में इस्राईल के पूर्व सेना प्रमुख गैबी इश्केनाज़ी ने पूर्व ज़ायोनी प्रधान मंत्री एयरियल शैरून का हवाला देते हुए एक बड़ा रहोयद्घाटन किया।

उन्होंने कहा कि शैरून हमेशा कहते थे कि इस्राईल को कभी भी ईरान के मुक़ाबले में ख़ुद को फ़्रंट पर नहीं लाना चाहिए। लेकिन नेतनयाहू ने इस नियम और सिद्धांत को तोड़ दिया और अपने पिछले 10 साल के शासन में इस्राईल को ईरान के सीधे मुक़ाबले में लाकर खड़ा कर दिया, जिससे इस्राईल का अस्तित्व ही ख़तरे में पड़ गया है।