हिन्दू पक्षकार का दावा- ‘1934 से ही मुसलमानों को विवादित ढांचे में प्रवेश की इजाजत नहीं थी’

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उच्चतम न्यायाल में राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या के राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई बुधवार दूसरे दिन शुरू की। न्यायालय ने मध्यस्थता प्रक्रिया विफल होने के बाद नियमित सुनवाई का फैसला किया है।

साक्षी प्रभा खबर के अनुसार, मामले में पक्षकार निर्मोही अखाड़े की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सुशील जैन ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दूसरे दिन भी दलीलें जारी रखी।

इससे पहले अयोध्या में राजनीतिक और धार्मिक दृष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में एक हिन्दू पक्षकार ने समूची 2.77 एकड़ विवादित जमीन का नियंत्रण और प्रबंधन दिये जाने की मांग की।

मामले में एक अहम पक्षकार निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल पर अपना दावा पेश करते हुए कहा कि मुस्लिमों को 1934 से इस विवादित ढांचे में प्रवेश की इजाजत नहीं थी।

इसी जगह पर स्थित बाबरी मस्जिद को छह दिसंबर 1992 को गिरा दिया गया था। अखाड़ा ने कहा कि वह भगवान राम की जन्मस्थली का प्रबंधक होने के नाते ‘मुख्य मंदिर’ पर स्वामित्व और कब्जे के लिये दावा पेश कर रहा है।