ओस्मान अली खान ने सन 1911 से 1948 तक हैदराबाद पर शासन किया
अब प्रश्न उठता है कि आखिर मीर ओस्मान अली खान के असली वंशज कौन हैं? इस पैसे का कैसे करेंगे बंटवारा?
हैदराबाद के सातवें निजाम के पैसे को लेकर कई सालों से चल रहे विवाद में ब्रिटेन की एक हाई कोर्ट ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाया है। इस फैसले के तहत भारत और हैदराबाद के आखिरी निजाम मीर ओस्मान अली खान के वंशजों को 306 करोड़ रुपये मिलेंगे।
Hyderabad Nizam will get billions of money deposited in Britain by Mir Osman Ali Khan#MirOsmanAliKhan #Britain https://t.co/JXovGkqZE2
— ET Specials (@ET_Specials) October 3, 2019
अब प्रश्न उठता है कि आखिर मीर ओस्मान अली खान के असली वंशज कौन हैं? इस पैसे का कैसे करेंगे बंटवारा? इन सभी प्रश्नों से उस समय पर्दा उठ गया जब सातवें निजाम के पोते नवाब नजफ अली खान ने दावा किया कि निजाम मीर उस्मान अली खान बहादुर की ब्रिटेन में जमा करीब 3.5 करोड़ पाउंड (लगभग 300 करोड़ रुपये) की राशि के उनके करीब 120 वंशज हिस्सेदार हैं।
Osman Ali Khan was the last Nizam of Hyderabad and reputedly the world's richest man in the 1930s. His guesthouse palace is testament to his great wealth pic.twitter.com/q4iWuK8ti3
— The Economist (@TheEconomist) September 28, 2019
कैसे होगा संपत्ति का बंटवारा?
नवाब नजफ अली खान ‘निजाम फैमिली वेलफेयर एसोसिएशन’ के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा कि परिवार के सभी सदस्य मिल-बैठकर इस धन के बंटवारे का फैसला करेंगे।
India beat Pakistan in court, when the United Kingdom high court ruled in favour of the seventh Nizam, Mir Osman Ali Khan, and his grandsons in the 70-year-long #Hyderabad funds case.#DCNation #HyderabadNizamFundCasehttps://t.co/C1GF4SwDMQ
— Deccan Chronicle (@DeccanChronicle) October 3, 2019
सभी ने मुझे पूरा अधिकार दिया है और मैं उनका प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। सातवें निजाम के वंशज और हैदराबाद के आठवें निजाम प्रिंस मुकर्रम जाह एवं उनके छोटे भाई मुफ्फखम जाह ने इस धन पर हक के लिए पाकिस्तान सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई में भारत सरकार से हाथ मिला लिया था।
70 साल पुराने मामले में पाकिस्तान को झटका, ब्रिटेन की हाईकोर्ट ने हैदराबाद निजाम के 3 अरब 8 करोड़ 40 लाख रुपये के फंड पर पाक का दावा किया खारिज, निजाम के वंशजों को मिलेगी रकम#Nizam fund dispute: #Pakistan loses UK court case against #OsmanAliKhan’s familyhttps://t.co/afaEPzWiXu
— Dibang (@dibang) October 2, 2019
इस मसले पर नवाब नजफ अली खान ने कहा कि वे (प्रिंस मुकर्रम जाह और मुफ्फखम जाह) अकेले पूरी रकम नहीं ले सकते। प्रिंस और उनके छोटे भाई समेत परिवार के सभी सदस्य बैठकर रकम के बंटवारे पर चर्चा करेंगे और मामला वैसे नहीं सुलझा तो अदालत जाने का विकल्प भी है।
Nizam fund dispute: Pakistan loses UK court case against Osman Ali Khan's familyhttps://t.co/lVzXOcWhkf pic.twitter.com/CyP9wpOCOH
— The Indian Express (@IndianExpress) October 2, 2019
जागरण डॉट कॉम के अनुसार, उन्होंने आगे कहा, ‘सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान था। अब यह अन्य सभी पक्षों पर है कि वे सहमति बनाएं.. धन के लिए कोई भी लड़ना नहीं चाहता। आखिरकार हम मिलकर बैठेंगे और मामला सुलझा लेंगे। हम फैसला कर लेंगे।’
क्या करेगा पाकिस्तान?
ब्रिटेन में तत्कालीन पाकिस्तानी उच्चायुक्त के खाते में जमा उक्त रकम के मामले में ब्रिटिश हाई कोर्ट ने बुधवार को भारत के पक्ष में फैसला सुनाया था। हालांकि पाकिस्तान के पास इस फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए चार हफ्ते का समय है।
आखिर ब्रिटेन की अदालत ने क्या कहा है?
इस मामले में फैसला सुनाने वाले ब्रिटिश हाईकोर्ट के जस्टिस मार्कस स्मिथ ने कहा था कि निजाम-7 इस पैसे के असली मालिक थे और इसा दावा करने वाले उनके वंशज और भारत अब इसके हकदार हैं।
मैं यह उन पर छोड़ता हूं कि वे मसौदा तैयार करें, जिसको मैं अप्रूव करूंगा। इसका मतलब स्पष्ट है कि पैसे के दावेदारों को भारत सरकार के साथ बंटवारे को लेकर एक सहमति बनानी होगी, जिसे कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद ही पैसा मिल पाएगा।
दुनिया में उस दौर के सबसे अमीरों में एक थे ओस्मान अली खान
रिपोर्ट के मुताबिक, उनके पास 230 अरब डॉलर की संपत्ति थी और वह उस समय में दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक थे।
ओस्मान अली खान ने सन 1911 से 1948 तक हैदराबाद पर शासन किया
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 1911 से 1948 तक हैदराबाद पर शासन करने वाले मीर उस्मान अली खान असल में एक सम्राट जैसा वैभव वाले निजाम थे। उनके पास इतनी दौलत थी कि उसकी समय से हिफाजत नहीं हो पाती थी। एकबार तो नौ मीलियन पाउंड के नोट जिसे उन्होंने अपने तहखाने में रखे थे, चूहों ने कुतर कर नष्ट कर दिया था।
जवाहरातों के उनके कलेक्शन में एक 185 कैरेट का जैकब डायमंड था जो एक शुतुरमुर्ग के अंडे के बराबर आकार वाला था। इसकी कीमत 900 करोड़ रुपये है। यह दुनिया का सातवां सबसे बड़ा हीरा है। फिलहाल, इसका मालिकाना हक भारत सरकार के पास है।
कहते हैं कि हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली खां पाशा ने इस हीरे को जैकब नाम के व्यापारी से खरीदा था। उसी व्यापारी के नाम पर इस हीरे का नाम जैकब रखा गया। वैसे इस हीरे को इंपीरियल या ग्रेट व्हाइट या विक्टोरिया के नाम से भी जाना जाता है। यह दक्षिण अफ्रीका की किंबर्ली खान में मिला था और तराशने से पहले इसका वज़न 457.5 कैरट था। रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच फुट तीन इंच लंबे मीर उस्मान अली खान अपनी सल्तनत को लेकर डरे रहते थे। वह धूम्रपान के आदी थे। उनके महल के बगीचे में तिरपाल के नीचें लॉरियां थी जो कि बेशकीमती जवाहरातों और सोने की सिल्लियों से भरी थीं। यह लॉरियां बगीचे में एक ही जगह पड़े-पड़े सड़कर खराब हो गईं।
रिपोर्ट के मुताबिक, वह लॉरियों के साथ सारी रकम लेकर फरार हो सकते थे, लेकिन उन्होंने सभी लॉरियों को तिरपाल के नीचे पड़ा रहने दिया, जिससे वे वहीं सड़ कर खराब हो गईं।
हालांकि, उनकी सुरक्षा में तीन हजार अफ्रीकी अंगरक्षक तैनात रहते थे। कहते हैं कि उनके पास अकेले 100 मीलियन पाउंड के सोने के गहने थे। अन्य धातुओं के गहनों की कीमत 400 मिलियन पाउंड थी। मौजूदा वक्त में यह रकम अरबों पाउंड के बराबर कीमत की थी।
हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया वह कंजूस होते गए। रिपोर्ट कहती है कि समय के साथ हुए इस बदलाव से लोगों को कई बार हैरानी होती है। वह खुद के बुने मोजे पहनने लगे और फटे कुर्तों को सिलकर पहनने लगे, जबकि उनकी अलमारियां बेशकीमती कपड़ों से भरी रहती थीं। यही नहीं वह महीनों तक इन कपड़ों को बदलते भी नहीं थे। बुढ़ापे में वह एक साधारण बरामदे में सोते थे जिसमें बकरी भी बंधी होती थी।
रिपोर्टों में कहा गया है कि आजादी के बाद भारत में जब रियासतों का विलय जारी था, तब निजाम मीर उस्मान अली खान ने 1948 में करीब 10,07,940 पाउंड और नौ शिलिंग की रकम को ब्रिटेन में पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चायुक्त हबीब इब्राहिम रहीमतुल्ला को अपने वित्त मंत्री के जरिए सुरक्षित रखने के इरादे से दी थी। तभी से यह रकम नैटवेस्ट बैंक पीएलसी के उनके खाते में जमा है। यह रकम अब बढ़कर करीब 300 करोड़ रुपये हो गई है। कहते हैं कि हैदराबाद रियासत के भारत में विलय के बाद सन 1950 में निजाम ने इस रकम पर अपना दावा किया, लेकिन उच्चायुक्त रहिमतुल्ला ने पैसे वापस करने से इनकार कर दिया था और कहा कि ये अब पाकिस्तान की संपत्ति बन गई है।
70 साल की लंबी लड़ाई के बाद मिला हक़
साल 1954 में 7वें निजाम और पाकिस्तान के बीच इस रकम को लेकर कानूनी जंग की शुरुआत हुई थी। निजाम ने अपने पैसे वापस पाने के लिए ब्रिटेन की हाईकोर्ट का रुख किया था।
पाकिस्तान के सॉवरेन इम्यूनिटी का दावा करने से केस की प्रक्रिया रुक गई थी। हालांकि, साल 2013 में पाकिस्तान ने रकम पर दावा करके सॉवरेन इम्यूनिटी खत्म कर दी। इसके बाद मामले की कानूनी प्रक्रिया फिर शुरू हुई थी।
पाकिस्तान सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई में सातवें निजाम के वंशजों और हैदराबाद के आठवें निजाम प्रिंस मुकर्रम जाह तथा उनके छोटे भाई मुफ्फखम जाह ने भारत सरकार से हाथ मिला लिया था।
अब लंदन की रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस ने अपने फैसले में कहा है कि धन पर सातवें निजाम का अधिकार था और अब उनके उत्तराधिकारियों और भारत का इस पर अधिकार है।