NRC फाइनल लिस्ट से बाहर 12 लाख हिन्दुओं को आसानी से नागरिकता देना चाहती है सरकार!

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राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनआरसी) पर अपने ही सियासी चक्रव्यूह में घिरी भाजपा इससे निकलने केलिए नागरिकता संशोधन बिल को हथियार बनाएगी।

अमर उजाला पर छपी खबर के अनुसार, सरकार की योजना नवंबर में होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान हर हाल में इस बिल को पारित कराने की है। ऐसा होने पर एनआरसी में नाम दर्ज कराने में चूक गए 12 लाख हिंदुओं और आदिवासियों को स्वत: ही बिना शर्त देश की नागरिकता मिल जाएगी।

एनआरसी पर भाजपा और मोदी सरकार पहले फ्रंट फुट पर थी। हालांकि एनआरसी प्रकाशित होने के बाद पार्टी की परेशानी बढ़ गई। दरअसल एनआरसी में नाम दर्ज कराने में नाकाम रहे 19 लाख लोगों में से 12 लाख हिंदू शामिल हैं। इनमें भी बड़ी संख्या आदिवासियों की है, जिसे असम का मूल निवासी माना जाता है।

पहले पार्टी और सरकार को उम्मीद थी कि राज्य के मुस्लिम बहुल और बांग्लादेश की सीमा से सटे जिलों में बड़ी संख्या में लोग एनआरसी में नाम शामिल नहीं करा पाएंगे। हालांकि जब सूची प्रकाशित हुई तो पता चला कि ऐसे तीन जिलों की तुलना में हिंदूबहुल जिलों में ज्यादा लोग एनआरसी में नाम दर्ज नहीं करा पाए।

गृह मंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपने दो दिवसीय असम दौरे में एनआरसी से बढ़ी मुश्किलों पर राज्य इकाई और राज्य सरकार से गहन विमर्श किया। तय किया गया कि पार्टी के कार्यकर्ता एनआरसी में नाम दर्ज कराने के लिए अपील करने में ऐसे परिवारों की मदद करें, जिनकेनाम इसमें शामिल नहीं किए गए हैं।

राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए। इस बीच दो महीने का वक्त निकल जाएगा और संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो जाएगा। फिर इसी शर्त में नागरिकता संशोधन बिल को पारित करा कर ऐसे लोगों को राहत दे दी जाएगी।

हालांकि संशोधन बिल की राह आसान नहीं है। सरकार अपने पहले कार्यकाल में इस बिल को पारित कराने में नाकाम रही है। बिल में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों को ही राहत देने पर विपक्ष के कई दिलों ने सवाल उठाए।

राज्यसभा में बहुमत के अभाव में सरकार इसे कानूनी जामा नहीं पहना पाई। चूंकि यह संविधान संशोधन बिल है। ऐसे में सरकार को बिल पारित कराने के लिए दो तिहाई बहुमत चाहिए।