NRC लिस्ट से बाहर गये हिन्दुओं के लिए बीजेपी सरकार ला सकती है कानून!

   

भारत के असम राज्य में कई ऐसे समूह हैं जो एनआरसी की अंतिम लिस्ट का विरोध कर रहे हैं. अब केंद्र सरकार ‘असली’ नागरिकों को बचाने के लिए नागरिकता बिल लाना चाहती है.

असम में करीब 19 लाख लोगों को भारत की नागरिकता खोने का डर सता रहा है. इन लोगों का नाम एनआरसी की लिस्ट से बाहर हो गया है. यह लिस्ट बांग्लादेश मूल के अवैध प्रवासियों को देश से बाहर निकालने के लिए लाई गई थी.

लेकिन आरोप लगाए जा रहे हैं कि इनमें बहुत से मूल नागरिकों का नाम भी है. इनमें से ज्यादातर लोगों को यह उम्मीद है कि केंद्र की मोदी सरकार उन्हें इस संकट से उबारने का काम करेगी.

2016 में असम में विधानसभा चुनाव हुआ था. बीजेपी ने इस चुनाव में लोगों से ‘अवैध बांग्लादेशियों’ से ‘जाति, माटी और भेती’ बचाने का नारा दिया था. बीजेपी को इस नारे का फायदा भी मिला और राज्य में उनकी सरकार बनी.

पार्टी ने बांग्लादेश से आए मुसलमानों को ‘घुसपैठिया’ और हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन लोगों को ‘शरणार्थी’ घोषित कर दिया. बीजेपी ने कहा कि ये शरणार्थी उत्पीड़न से बचने के लिए यहां आए थे.

बीजेपी सरकार द्वारा प्रस्तावित नए नागरिकता संशोधन विधेयक के अनुसार यदि ये लोग साबित कर देते हैं कि वे 31 दिसंबर 2014 से पहले से भारत में रह रहे हैं तो उन्हें नागरिकता दे दी जाएगी.

जब एनआरसी का पहला मसौदा 2018 में जारी किया गया था तब उस समय करीब 41 लाख लोगों का नाम इस लिस्ट में नहीं था. इन लोगों की नागरिकता खतरे में पड़ गई थी. इनमें से कई सारे लोग मुस्लिम समुदाय के थे जो काफी गरीब और अशिक्षित थे.

हालांकि इस मसौदे की फिर से समीक्षा की गई और अगस्त 2019 में एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी हुई. इस बार लिस्ट में कई सारे हिंदुओं और आदिवासियों का भी नाम नहीं है.

असम के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि करीब 19 लाख लोगों का नाम एनआरसी की लिस्ट में नहीं है. इसमें कई सारे आदिवासी लोग भी शामिल हैं. अधिकारियों द्वारा माइग्रेशन सर्टिफिकेट जैसे दस्तावेज नहीं लिए गए. हमने देखा है कि एनआरसी में विदेशियों का नाम भी शामिल है, जो गलत है.”

हिमंता बिस्वा सरमा 2016 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे. वे असम की सरकार में वित्त मंत्री हैं. सरमा कहते हैं, “हमें एनआरसी में किसी तरह की दिलचस्पी नहीं है.

बांग्लादेश की सीमा से सटे जिलों में एनआरसी लिस्ट के बाहर होने की दर सबसे कम क्यों है? कुछ तो गलत है.” सरमा बांग्लादेश की सीमा से सटे धुबरी, करीमगंज और दक्षिण सलमार जिले की बात कर रहे थे, जहां सबसे ज्यादा प्रवासी पहुंचे माने जाते थे.

मध्य असम के एक गांव मलोइबारी में रहने वाले काफी हिंदुओं का नाम एनआरसी लिस्ट से बाहर हो गया है. इस गांव में रहने वाले स्वास्थ्य कर्मचारी बाबुलाल कार कहते हैं, “एनआरसी लिस्ट से बाहर हुए कई लोगों ने आत्महत्या कर ली है क्योंकि वे ज्यादा तनाव नहीं झेल सकते थे. पहले मतदाता सूची में नाम होने की वजह से उन्हें सारी सुविधाएं मिल रही थी.”

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी