UNGA में भारत और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर तीखी बहस!

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पाकिस्तान और भारत के बीच संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में उनके यहां नष्ट होते अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के साथ तीखी बहस हुई।

नवजीवन पर छपी खबर के अनुसार, धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाए जाने और इसकी निंदा करते हुए पाकिस्तान की ओर से सह-प्रायोजित एक प्रस्ताव भी पेश किया गया।

प्रस्ताव में पाकिस्तान का तर्क भारत में बाबरी मस्जिद विध्वंस के संदर्भ में था।

खैबर पख्तूनख्वा के करक जिले में एक हिंदू धर्मस्थल को जलाए जाने के पाकिस्तान के खिलाफ भारत के दावे को इस्लामाबाद ने गैरकानूनी दावा करार दिया और कहा कि भारत को कहीं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए चिंता जताने के बजाय अपने खुद के घर पर ध्यान देना चाहिए।

पाकिस्तान के साथ हमारी समस्याएं 1947 में अंग्रेजों के जाने और विभाजन से शुरू हुई। दोनों देशों के बीच वैमनस्य का मुख्य कारण कश्मीर है, जो विभाजन का अधूरा एजेंडा बनकर रह गया।

कश्मीर विभाजन का अधूरा एजेंडा क्यों है, इसके बारे में भारत और पाकिस्तान की अपनी-अपनी सोच है, जो एक-दूसरे से एकदम अलग है।

दोनों ही पूरे कश्मीर को अपना मानते हैं और कोई भी यह समझने को राजी नहीं कि कश्मीर को दोनों देशों के रिश्तों का पुल बनाकर समस्या को हल किया जा सकता है।हमारे राष्ट्रवाद में यही आधारभूत दोष है।

स्वस्थ राष्ट्रवाद को किसी दुश्मन की दरकार नहीं होती। लेकिन दोनों ही देशों में राष्ट्रवाद के तथाकथित ठेकेदारों ने एक-दूसरे को दुश्मन के तौर पर पेश किया है और इन्होंने कश्मीर को इसकी खूनी युद्धभूमि बना दिया है।

इसके बावजूद कि हम सदियों से एक ही भू-भाग पर रहे, समान विविधता को सहेजा, अब हम यह सोचने लगे हैं कि भारत और पाकिस्तान की सोच मूलतः एक-दूसरे के विपरीत है।

यह मुस्लिम लीग की विषैली सोच थी कि हिंदू और मुस्लिम शांतिपूर्ण तरीके से साथ नहीं रह सकते और उनके लिए अलग-अलग देश होना ही चाहिए।भारत में आज जो हिंदुत्ववादी ताकतें कर रही हैं, वह बिल्कुल वैसी ही है जो मुस्लिम लीग ने विभाजन के समय किया था।

जिस दिन हम यह समझ लेंगे कि भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रवाद समेकित और परस्पर सहयोगी हो सकते हैं, यह भी समझ जाएंगे कि हम दोनों अलग-अलग देश होते हुए भी अच्छे पड़ोसी के तौर पर रह सकते हैं।

कश्मीर मामले का हल ऐसा होना चाहिए जो भारत, पाकिस्तान और कश्मीर के लोगों को स्वीकार्य हो।