PM मोदी के ‘गाय’ और ‘ओम’ वाले बयान पर ओवैसी का हमला, कहा- ‘वह धर्मगुरु नहीं हैं, उनको….

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मथुरा में एक कार्यक्रम के दौरान ‘गाय’ को लेकर विपक्ष के रवैये पर निशाना साधा तो कुछ घंटे के भीतर ही विपक्षी नेताओं के कान खड़े हो गए.पीएम मोदी ने मथुरा में एक कार्यक्रम में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोगों के कानों में जैसे ही ‘ओम’ और ‘गाय’ शब्द पड़ते हैं, उनके ‘बाल खड़े हो जाते हैं.’ इसे लेकर विपक्षी दलों ने पलटवार करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री को इस बात के लिए चिंतित होना चाहिए कि गाय के नाम पर लोगों की हत्या हो रही है और संविधान का घोर उल्लंघन हो रहा है.

प्रधानमंत्री की टिप्पणी के बारे में पूछने पर ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहाद उल मुसलमीन प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि भारत में लोग न केवल ‘ओम’ और ‘गाय’ सुनते हैं, बल्कि मस्जिदों की अजान, गुरुद्वारा में होने वाले पाठ और गिरजाघरों की घंटी की आवाज भी सुनते हैं. उन्होंने कहा, ‘लोग जब गाय के नाम पर मारे जा रहे हैं तो आपको चिंतित होना चाहिए. प्रधानमंत्री को चिंतित होना चाहिए कि संविधान का घोर उल्लंघन हो रहा है .हम अपने प्रधानमंत्री से उम्मीद करते हैं कि जब तबरेज, पहलु खान या अखलाक मारे जा रहे हैं तो उन्हें यह सोचकर चिंतित होना चाहिए कि ‘मेरे देश में क्या चल रहा है.’

वहीं, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सांसद माजिद मेमन ने कहा कि मोदी एक धर्मनिरपेक्ष देश के प्रधानमंत्री हैं और उन्हें अक्सर धार्मिक मामलों का जिक्र नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘वह धर्मगुरु नहीं हैं… प्रधानमंत्री को स्पष्ट कर देना चाहिए कि ‘मैं सरकार के मुखिया के तौर पर किसी को भी धर्म के नाम पर, ‘ओम’ या ‘गाय’ के नाम पर किसी को बर्दाश्त नहीं करूंगा, उन्हें अपने हाथ में कानून नहीं लेने दूंगा.

भाकपा महासचिव डी. राजा ने कहा कि प्रधानमंत्री ‘ओम’ और ‘गाय’ के मुद्दे क्यों उठा रहे हैं, जबकि उन्हें देश की अर्थव्यवस्था की बात करनी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘वह ऐसे समय में यह बात कह रहे हैं जब गाय और भगवान के नाम पर देश भर में पीट-पीट कर हत्या करने की घटनाएं हो रही हैं. उन्हें देश के प्रधानमंत्री की तरह व्यवहार करना चाहिए, वास्तविक मुद्दों पर बात करनी चाहिए और बेरोजगारी की समस्या का समाधान करना चाहिए न कि विपक्ष पर हमला करना चाहिए.’

बता दें कि पीएम मोदी ने किसी का नाम लिए बगैर कहा था, ‘उन्हें महसूस होता है मानो देश 16वीं-17वीं सदी में पहुंच गया है. इस तरह के ज्ञान का इस्तेमाल देश को नुकसान पहुंचाने पर आमादा लोग करते हैं और उन्होंने ऐसा करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रखी है.’