मुस्लिम समाज को लेकर पीएम मोदी ने बहुत बड़ी बात कह गये!

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भारत में मुस्लिम-विमर्श को हमेशा हिंदू-मुस्लिम और सेक्युलर-सांप्रदायिक चश्मे से देखा गया है। संभवत: इसलिए कि हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करने वाली भाजपा को सांप्रदायिक ठहराया जाए और अन्य दल ‘स्वघोषित’ सेक्युलरवादी बताए जाएं ताकि मुसलमानों को लामबंद कर उनके वोट पर एकाधिकार किया जा सके।

इसीलिए कट्टर और सांप्रदायिक मुस्लिम भी सेक्युलर जमात में शरीक हो जाते हैं और सेक्युलर पार्टियों की आड़ में मुस्लिम सांप्रदायिकता को अंजाम देते हैैं।

जागरण डॉट कॉम के अनुसार, कांग्रेस सहित मुलायम और अखिलेश यादव की सपा, मायावती की बसपा, अजीत सिंह की रालोद, लालू प्रसाद यादव की राजद, ममता बनर्जी की तृणमूल और नीतीश कुमार की जदयू कभी भी मुस्लिमों पर अंगुली उठाना पसंद नहीं करतीं।

अन्य क्षेत्रीय दलों जैसे आंध्र में वाइएसआर कांग्रेस, तेलुगु देसम पार्टी, केरल में यूडीएफ और एलडीएफ, तमिलनाडु में द्रमुक एवं अन्नाद्रमुक का और तेलंगाना में टीआरएस का यही हाल है।

इस तरह की राजनीति से देश, मुस्लिम समाज और इन दलों का ही नुकसान हुआ है। इस राजनीति से समाज में गंगा-जमुनी संस्कृति को पनपने का अवसर ही नहीं मिला, क्योंकि इसने मुसलमानों को हिंदुओं से अलग किया और प्रत्येक सांप्रदायिक विवाद में हिंदुओं और भाजपा को ही दोषी ठहराया।

हमारे नेता कभी यह साहस नहीं कर सके कि मुस्लिम समाज की गलतियों को भी इंगित करें। इससे सांप्रदायिक किस्म के मुसलमानों में यह भाव घर कर गया कि वे कुछ भी करें, सेक्युलर पार्टियां उन्हें कुछ नहीं कहेंगी।

परिणामस्वरूप हिंदुओं के प्रति उनका व्यवहार गलत होने लगा जिससे हिंदू-मुस्लिम रिश्तों में कटुता आई। दूसरे हिंदुओं में यह भाव पैदा हुआ कि भाजपा को छोड़ उनकी तरफदारी करने वाला कोई दल नहीं।

हिंदू समाज से पिछड़ों और दलितों को निकाल दें तो केवल 19 फीसद सवर्ण कहे जाने वाले लोग बचते हैं। इसीलिए सेक्युलर दल सदैव प्रयत्नशील रहे कि पिछड़ों और दलितों को हिंदू समाज से काट दो तो हिंदू अपने आप समाप्त हो जाएगा।