वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के बचाव में दस समाजिक कार्यकर्ता आ गये हैं। मालूम हो कि की उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना का नोटिस जारी किया है। दावा किया कि भूषण के खिलाफ शुरू की गई अवमानना की कार्यवाही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला लगती है।
कार्यकर्ताओं ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल द्वारा भूषण के खिलाफ दायर अवमानना याचिका में हस्तक्षेप के लिये एक आवेदन दायर किया है।
10 activists, Aruna Roy, Arundhati Roy, Wajahat Habibullah, Shailesh Gandhi&Ors have said in their application that they were "concerned" about initiation of the contempt proceeding against Mr Bhushan for exercising his ''freedom of speech'' without fearhttps://t.co/jgz9lzo2CQ?
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) March 5, 2019
नवभारत टाइम्स पर छपी खबर के अनुसार, कार्यकर्ताओं ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल द्वारा भूषण के खिलाफ दायर अवमानना याचिका में हस्तक्षेप के लिये एक आवेदन दायर किया है। यह याचिका भूषण के उन ट्वीटों के लिये दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि ऐसा लगता है कि सरकार ने शीर्ष अदालत को गुमराह किया और संभवत: एम नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त करने में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार चयन समिति की बैठक का मनगढ़ंत ब्योरा सौंपा।
इन कार्यकर्ताओं में अरुणा रॉय और शैलेश गांधी भी शामिल हैं। इन कार्यकर्ताओं ने अपने आवेदन में कहा कि वे बिना किसी डर के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने के लिये भूषण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने को लेकर ‘चिंतित’ हैं।
इसके अलावा मामले में हस्तक्षेप की मांग करते हुए पांच वरिष्ठ पत्रकारों ने भी शीर्ष अदालत में अलग से आवेदन दायर किया है। इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी भी शामिल हैं।
शौरी और चार अन्य वरिष्ठ पत्रकारों ने अपने आवेदन में कहा है कि अवमानना याचिका पर गत छह फरवरी को भूषण को नोटिस जारी करने के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि क्या अदालतों में विचाराधीन मामलों में अधिवक्ताओं और वादकारों का मीडिया को जानकारी देना न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने के समान होगा।
इससे पहले की सुनवाई के दोरान न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि न्यायालय मीडिया के मामलों की रिपोर्टिंग करने के खिलाफ नहीं है, लेकिन विचाराधीन मामलों में उपस्थित हो रहे वकीलों को सार्वजनिक बयान देने से बचना चाहिये।
न्यायालय ने भूषण को नोटिस जारी किया था और उनसे तीन सप्ताह के भीतर अवमानना याचिकाओं पर जवाब देने को कहा था। 10 सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने आवेदन में कहा है, ‘‘ऐसा लगता है कि अवमानना की कार्यवाही शुरू किया जाना इस देश के नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है और अवमानना की शक्ति का इस्तेमाल करके इस अधिकार का गला घोंटने का प्रयास है।’’
अरुणा रॉय, अरुंधति रॉय और शैलेश गांधी के अतिरिक्त वजाहत हबीबुल्ला, हर्ष मंदर, जयति घोष, प्रभात पटनायक, इंदु प्रकाश सिंह, बेजवाड़ा विल्सन और निखिल डे अन्य आवेदक हैं जिन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति मांगी है।
उन्होंने कहा है कि भूषण ने अपने ट्वीट में सिर्फ उच्चाधिकार समिति के एक सदस्य के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध पत्र और सरकार के दावों के बीच अनियमितता को उजागर किया और ट्वीटों में ‘‘किसी भी तरह से अटॉर्नी जनरल या उनके आचरण के बारे में कोई अपमानजनक टिप्प्णी नहीं की।’’
अधिवक्ता कामिनी जायसवाल के जरिये दायर आवेदन में कहा गया है, ‘‘इस मामले में अदालत द्वारा प्रशांत भूषण को जारी नोटिस में संकेत दिया गया है कि न्यायालय अदालत में लंबित कार्यवाहियों के बारे में वकीलों और वादकारों के टिप्पणी करने और क्या लंबित अदालती कार्यवाही के बारे में वकीलों और वादकारों को टिप्पणी करने से रोका जा सकता है, इस संबंध में व्यापक मुद्दे पर विचार करना चाहता है।’’
मामले में हस्तक्षेप के लिये एक अन्य आवेदन शौरी, वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे, प्रणंजय गुहा ठाकुरता, मनोज मिट्टा और एन राम ने दायर किया है।
उन्होंने अपने आवेदन में कहा कि अदालतों में लंबित मामलों में वकीलों और वादकारों के टिप्पणी करने पर कोई भी रोक मीडिया पर पाबंदियां लगाने के समान है और अदालत के इस तरह के किसी भी आदेश के प्रेस की स्वतंत्रता और अदालतों में लंबित महत्वपूर्ण जनहित के मुद्दों के बारे में लोगों को सूचित करने की उसकी क्षमता के लिये गंभीर नतीजे होंगे।
साभार- ‘नवभारत टाइम्स’