पुलवामा CRPF हमला: स्थानीय फिदायीन का किया गया इस्तेमाल!

   

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले ने वर्ष 2000 में हुए बादामी बाग अटैक की खौफनाक यादें जेहन में ताजा कर दीं जब एक 17 साल के फिदायीन हमलावर विस्‍फोटकों से भरी एक मारुति 800 कार आर्मी कैंप में लेकर घुस गया और विस्‍फोट कर दिया।

इसके एक साल बाद, आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा के परिसर के बाहर एक कार बम को उड़ा दिया था जिसमें 38 लोग मारे गए थे। हालांकि शहीद हुए जवानों की संख्या को देखते हुए पुलवामा हमले को पिछले दो दशक में सबसे बड़ा हमला बताया जा रहा है। तीनों ही हमले में एक बात जो कॉमन है- वह है स्‍थानीय फिदायीन हमलावर।

नवभारत टाइम्स पर छपी खबर के अनुसार, पुलवामा हमले को अंजाम देने वाला आतंकी कश्मीर का ही रहने वाला था। आदिल अहमद डार नाम का यह आतंकी पुलवामा के काकापोरा गांव का रहने वाला था। उसका एक विडियो वायरल हो रहा है जो हमले से पहले बनाया गया था।

इसमें वह बोल रहा है कि उसे पता है कि कुछ देर बाद वह मारा जाएगा लेकिन उसे जिस तरह से सीआरपीएफ के काफिले के बारे में बारीक से बारीक जानकारी पता थी वह सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी सवाल बन गया है।

इस हमले से घरेलू आतंकवाद के साथ-साथ हमले का एक ही जैसा तरीका चिंता का सबब बन गया है। आंतकी हमलों के लिए लोकल कश्मीरी आत्मघाती हमलावर बनाया जा रहा है, जो देश की सुरक्षा में बड़ा सवाल बन गया है।

आतंकी संगठनों के लिए विदेशी आतंकियों की अपेक्षा स्थानीय आतंकियों का इस्तेमाल ज्यादा आसान हो गया है। उन्हें घुसपैठ करने का कोई जोखिम नहीं उठाना पड़ता है, साथ ही उन्हें स्थानीय परिस्थितियों की जानकारी होती है।

सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि पुलवामा अटैक पहला ऐसा हमला नहीं है जिसमें विस्फोटक से भरी कार का इस्तेमाल हुआ हो। (सूत्रों के अनुसार, पुलवामा हमले में विस्फोटकों का वजन 200-300 किलो के करीब था) जम्मू कश्मीर के राज्यपाल के सलाहकार के विजय कुमार ने बताया कि इसी तरह के हमले का तरीका 2000 में बादामी बाग हमला में भी अपनाया गया था। इसके बाद 2005 में हुए दो सिलसिलेवार हमलों में भी काम बम का इस्तेमाल किया गया था।