तीन साल हो गए जब सऊदी अरब और दूसरे खाड़ी देशों ने अचानक कतर से अपने रिश्ते तोड़ लिए। इन तीन सालों में हर किसी ने बहुत कुछ खोया है।
डी डब्ल्ययू पर छपी खबर के अनुसार, कतर का बहिष्कार करने में सऊदी अरब का साथ देने वाले देशों में संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र शामिल हैं।
इस फैसले ने अरब देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग को अधर में डाल दिया और यह राजनयिक संकट अब तक जारी है. जल्द समाधान के आसार अब भी नहीं दिखते।
5 जून 2017 को कतर विरोधी गठजोड़ ने कतर के साथ अपने व्यापार और सभी राजनयिक संपर्क रोक दिए। इतना ही नहीं, कतर से जुड़ने वाले जमीन, समुद्र और हवाई मार्ग भी अवरुद्ध कर दिए गए।
इस गठजोड़ ने कतर पर आंतकवाद को समर्थन देने के आरोप लगाए क्योंकि वह राजनीतिक इस्लामिक आंदोलन मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करता हैै।
सऊदी अरब के नेतृत्व वाले इस गठजोड़ ने कहा कि अगर कतर चाहता है कि उस पर लगाई गई पाबंदियों को हटाया जाए तो इसके लिए उसे 13 शर्तों को पूरा करना होगाा।
इन शर्तों में मुस्लिम ब्रदरहुड से रिश्ते तोड़ना सबसे अहम था. सऊदी अरब और उसके सहयोगी खासकर मिस्र, इस सामाजिक क्रांतिकारी आंदोलन को एक आतंकवादी संगठन मानते हैं और अपने यहां निरंकुश शासन व्यवस्था के लिए खतरा समझते हैं।
शर्तों में कतर की सरकारी मीडिया कंपनी अल जजीरा को बंद करना भी शामिल था जिसने 2011 में कई अरब देशों में तानाशाही सरकारों को उखाड़ने वाले अरब स्प्रिंग प्रदर्शनों की व्यापक कवरेज की थी।
कतर से यह भी कहा गया कि वह ईरान के साथ अपने संबंधों को सीमित करते हुए उससे सैन्य और खुफिया सहयोग को बंद करे।
इन शर्तों के जवाब में कतर ने किसी भी आतंकवादी संगठन के साथ सहयोग से इनकार किया और तुर्की व ईरान पर निर्भरता बढ़ा दी। इन दोनों देशों ने कतर को होने वाला निर्यात बढ़ा दिया। ईरान ने तो कतर को अपने वायुक्षेत्र में आने की अनुमति दे दी।
जब कतर को अलग थलग किया, उसी महीने मोहम्मद बिन सलमान सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस नियुक्त किए। वह अपनी छाप छोड़ने के लिए कोई बड़ा फैसला करने के लिए उतावले थे।
मध्य पूर्व मामलों को कवर करने वाली पत्रिका जेनिथ के संपादक डैनियल गेरलाख कहते हैं, उस वक्त मोहम्मद बिन सलमान अपने देश की विदेश नीति में ठोस संकल्प की कमी पाते थे।
उन्हें कभी महसूस ही नहीं हुआ कि सावधानी पूर्वक धीरे धीरे आगे बढ़ने की कूटनीति के अपने फायदे होते हैं। उसके बाद से वे एक ठोस रुख दिखाना चाहते थे।