मुशायरों की महफ़िलों को लूट ले जाते थे राहत इंदौरी–मुन्नवर राणा

,

   

‘उर्दू शायरी में बुलंदियों को छूने वाले राहत इंदौरी का चला जाना बहुत बड़ा ही नहीं बल्कि पूरे का पूरा नुकसान है क्योंकि ज़नाब मुशायरे की जान थे और मुशायरा ही लूट लेते थे।’

 

लोगों के ख़यालों और जज़्बातों को शब्दों में बांध कर शायरी के जरिये पेश करने वाले, उर्दू शायरी के अज़ीमोशान फ़नकार राहत इंदौरी के निधन पर उन्हें याद करते हुए यह पंक्तियां प्रख्यात गीतकार और रचनाकार गुलज़ार ने कहीं।

 

राहत इंदौरी का मंगलवार को कोविड-19 महामारी के कारण निधन हो गया। इंदौरी के इस दुनिया से चले जाने की खबर पर गुलज़ार ने कहा, ‘यह केवल बड़ा नुकसान नहीं है बल्कि उससे कहीं ज्यादा है। मुझे नहीं पता कि कितना बड़ा। गुलज़ार ने कहा, कोई अभी-अभी वह जगह खाली कर गया जो केवल मुशायरे की थी। उर्दू शायरी आज के मुशायरे में राहत इंदौरी के बगैर पूरी नहीं है। एक वही थे जो इतनी बेहतरीन शायरी कहते थे।

 

उन्होंने कहा, ‘अक्सर मुशायरों में आपको बहुत कुछ सहना पड़ता है लेकिन राहत को सुनने के लिए इंतज़ार करना पड़ता था। वह लाजवाब थे। ऐसा नहीं है कि मुशायरों में रोमांटिक शेर मिलते हों, वह जो कहते थे वह सामाजिक, राजनीतिक हालात पर, भावनाओं पर होता था, समय के अनुसार होता था जनता से जुड़ा हुआ।

 

गुलज़ार ने कहा, ‘समय और पीढ़ियों के साथ उनका जुड़ाव कमाल का था। वह बेहद प्रासंगिक थे।’ वह खुश मिजाज,खुश दिल आदमी थे गुलजार ने कहा, ‘वह जगह को खाली करके चले गए। यह बहुत बड़ा ही नहीं, बल्कि पूरी तरह नुकसान है।

 

वह एक खुश मिजाज, खुश दिल आदमी थे। राहत इंदौरी से जुड़ी यादें टटोलते हुए गुलज़ार ने कहा ‘जब भी कोई अच्छा शेर सुन लिया, फोन कर लिया…दाद देना।

 

यह याद करना मुश्किल है कि मैंने आखिरी बार उनसे कब बात की थी, ऐसा लगता है कि उस दिन ही तो बात की थी उनसे।’ उन्होंने कहा, ‘इंदौरी साहब मुशायरे की जान थे, वह मुशायरे की आत्मा थे। मैं तो कहूंगा कि वह मुशायरा ही लूट लेते थे।

 

साभार- हरिभूमी