भारतीय रेलवे ने इस बात से इनकार कर दिया है कि वो उर्दू भाषा को रिप्लेस करने जा रहा है। शुक्रवार को रेलवे ने कहा है कि वो न तो किसी स्टेशन से उर्दू भाषा को रिप्लेस किया है और न ही वर्तमान में ऐसा करने का कोई इरादा है। रेलवे ने कहा है कि स्टेशनों पर साइन-बोर्ड में मौजूदा भाषाओं में संस्कृत को अतिरिक्त भाषा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन जहां भी उर्दू होगा उसे रिप्लेस नहीं किया जाएगा।
दरअसल हाल ही खबर आई थी कि उत्तराखंड में रेलवे ने राज्य के सभी स्टेशनों पर उर्दू की जगह संस्कृत में स्टेशन का नाम लिखने का फैसला लिया है। बता दें कि अभी तक हिंदी और अंग्रेजी के अलावा रेलवे स्टेशन का नाम उर्दू में लिखा होता है। उत्तर रेलवे के सीपीआरओ दीपक कुमार बताया था कि रेलवे मैन्युअल के तहत रेलवे स्टेशनों के नाम हिंदी, अंग्रेजी के अलावा राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा में लिखे जाते हैं। उत्तराखंड पहले यूपी में शामिल था। वहां दूसरी राजकीय भाषा उर्दू थी। ऐसे मे उर्दू में नाम लिखे थे। उत्तराखंड बनने के बाद 2010 में संस्कृत को दूसरी राजकीय भाषा घोषित किया गया। इसके बाद रेलवे का ध्यान इस ओर दिलाया गया, जिस पर यह फैसला लिया गया।
Indian Railways:Indian Railways has neither replaced Urdu language from any station nor has any intention to do so presently.Sanskrit may be used as additional language apart from existing languages in sign-boards at stations,but will not replace Urdu language wherever it exists. pic.twitter.com/uE76b4W1Lh
— ANI (@ANI) February 7, 2020
2010 में उत्तराखंड में संस्कृत को राज्य की दूसरी राजकीय भाषा घोषित किया गया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के कार्यकाल में इसे लागू किया गया था। उत्तर रेलवे के सीपीआरओ दीपक कुमार के मुताबिक अभी तक इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया था। हाल में ही राज्य की दूसरी राजभाषा रेलवे स्टेशन का नाम लिखने का सुझाव आया था, जिस पर यह फैसला लिया गया। मालूम हो कि पिछले साल हिमाचल प्रदेश भी संस्कृत को राज्य की दूसरी राजभाषा घोषित कर चुका है।