अयोध्या में राम जन्म भूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसला आने में एक महीने से भी कम समय बचा है। मगर इससे पहले ही विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण शुरू करने के लिए एक समय सीमा निर्धारित कर ली है।
‘Ram Mandir Construction To Begin In 6-8 Months’: VHP Chief Confident About Upcoming Supreme Court Verdicthttps://t.co/R5xbwpiDt7
— Swarajya (@SwarajyaMag) October 23, 2019
साक्षात में कही गई यह बात
खास खबर पर छपी खबर के अनुसार, आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में इसके अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि अगले छह से आठ महीनों में विवादित स्थल पर मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा।
“Since it is the temple of maryada purushottam, a person who set up and adhered to all the laws… we would also adhere to that, he said.https://t.co/R5xbwpiDt7
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छह से आठ महीने लग सकता है
आलोक कुमार ने कहा, “चूंकि यह मर्यादा पुरुषोत्तम का मंदिर है और वह एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो सभी कानूनों को स्थापित करने के साथ ही उनका पालन करते हैं। हम भी इसका पालन करेंगे। यह अनुपालन पूरा करने में छह से आठ महीने लग सकते हैं।”
अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें खत्म हो चुकी है
शीर्ष अदालत में पहले ही दोनों पक्षों की दलीलें समाप्त हो चुकी हैं। अब भारत के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं, जिससे पहले इस पर फैसला आने की पूरी उम्मीद है। गोगोई ने अयोध्या मामले को देख रही पीठ का नेतृत्व किया है।
विवादित जमीन पर दोनों पक्ष अपना दावा करते हैं
फैसला आने के साथ ही देश के सबसे पुराने भूमि विवादों में से एक अयोध्या मामले का निपटारा हो सकेगा, जिस पर हिंदू और मुसलमान दोनों ही अपना दावा करते रहे हैं।
VHP को अपने पक्ष में फैसला आने की संभावना
विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण के लिए विहिप ने दशकों से आंदोलन का नेतृत्व किया है और अब उसे उसके पक्ष में फैसला आने की उम्मीद है।
कुमार से पूछा गया कि अगर फैसला उनके पक्ष में नहीं आया तो क्या सरकार कानून लाने की कोशिश करेगी? इस पर उन्होंने कहा, ‘अगर’ का कोई सवाल नहीं है।”
कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन पर तंज कसा, उन्होंने विवादित स्थल का नक्शा पेश किया था। जबकि हिंदू महासभा द्वारा इसे पहले ही पेश किया जा चुका था।
कुमार ने आईएएनएस को बताया, “हो सकता है कि वह निराश हों। हो सकता है कि उन्होंने महसूस किया कि मुसलमान अदालत को समझाने में विफल रहे हैं और शायद उनकी कमजोरी आक्रामकता के रूप में मुखर हुई है।”