चूहे खाने वाले बिहार के लोग, जो भारत में शायद सबसे गरीब हैं!

   

फेकन मांझी बांह पर रेंगते चूहे का सिर जमीन पर पटक कर मारने की कोशिश में हैं. उनके अगल बगल खड़े पड़ोसी 60 साल के मांझी की हरकत को देख कर खुशी से ताली बजाते हैं. मुसहर लोगों के लिए एक वक्त का भोजन तैयार हो रहा है.

फेकन मांझी बांह पर रेंगते चूहे को जमीन पर उसका सिर पटक कर मारने की कोशिश में हैं. उनके चारों ओर खड़े उनके पड़ोसी 60 साल के मांझी की हरकत को देख कर खुशी से ताली बजाते हैं. मुसहर समुदाय के इन लोगों के लिए एक वक्त का भोजन तैयार है.

उंगलियों के नाखून से चूहे की चमड़ी उधेड़ते फेकन बताते हैं कि इस चूहे को पकाने में उन्हें 15 मिनट लगेंगे. फेकन ने यह भी कहा, “यहां के सभी लोग इसे पसंद करते हैं और इसे पकाना जानते हैं.”

फेकन 25 लाख लोगों के मुसहर समुदाय का हिस्सा हैं. यह भारत के सबसे गरीब समुदायों में से एक है जो आजादी के 70 साल बाद भी हाशिये पर है. यहां तक कि दलित समुदाय के लोग भी इन्हें अपने से नीचे मानते हैं.

बिहार में मुसहरों की एक बड़ी आबादी रहती है और इनमें से ज्यादातर दिन में 70 रुपये से भी कम की आमदनी पर जिंदा हैं. तीन दशकों से मुसहर लोगों के बीच काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ता सुधा वर्गीज कहती हैं, “ये गरीबों में भी सबसे ज्यादा गरीब लोग हैं और किसी सरकारी योजना के इन तक पहुंचने की कहानी दुर्लभ है.”

वर्गीज ने बताया, “इन्हें हर दिन अगले भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है, इसके अलावा कुष्ठ जैसी बीमारियां यहां रोजमर्रा की सच्चाई है.” गोनपुरा के आलमपुर गांव में फेकन के पड़ोसी राकेश मांझी बताते हैं, “दिन भर हम बैठे रहते हैं, हमारे पास कुछ करने को नहीं है. कभी कभी हमें खेतों में काम मिल जाता, अगले दिन फिर भूखे रहते हैं या फिर चूहे पकड़ते हैं और उसे थोड़ा बहुत जो अनाज है उसके साथ खाते हैं.”

फेकन मांझी बांह पर रेंगते चूहे का सिर जमीन पर पटक कर मारने की कोशिश में हैं. उनके अगल बगल खड़े पड़ोसी 60 साल के मांझी की हरकत को देख कर खुशी से ताली बजाते हैं. मुसहर लोगों के लिए एक वक्त का भोजन तैयार हो रहा है.

फेकन मांझी बांह पर रेंगते चूहे को जमीन पर उसका सिर पटक कर मारने की कोशिश में हैं. उनके चारों ओर खड़े उनके पड़ोसी 60 साल के मांझी की हरकत को देख कर खुशी से ताली बजाते हैं. मुसहर समुदाय के इन लोगों के लिए एक वक्त का भोजन तैयार है.

उंगलियों के नाखून से चूहे की चमड़ी उधेड़ते फेकन बताते हैं कि इस चूहे को पकाने में उन्हें 15 मिनट लगेंगे. फेकन ने यह भी कहा, “यहां के सभी लोग इसे पसंद करते हैं और इसे पकाना जानते हैं.”

फेकन 25 लाख लोगों के मुसहर समुदाय का हिस्सा हैं. यह भारत के सबसे गरीब समुदायों में से एक है जो आजादी के 70 साल बाद भी हाशिये पर है. यहां तक कि दलित समुदाय के लोग भी इन्हें अपने से नीचे मानते हैं.

बिहार में मुसहरों की एक बड़ी आबादी रहती है और इनमें से ज्यादातर दिन में 70 रुपये से भी कम की आमदनी पर जिंदा हैं. तीन दशकों से मुसहर लोगों के बीच काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ता सुधा वर्गीज कहती हैं, “ये गरीबों में भी सबसे ज्यादा गरीब लोग हैं और किसी सरकारी योजना के इन तक पहुंचने की कहानी दुर्लभ है.” वर्गीज ने बताया, “इन्हें हर दिन अगले भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है, इसके अलावा कुष्ठ जैसी बीमारियां यहां रोजमर्रा की सच्चाई है.”

गोनपुरा के आलमपुर गांव में फेकन के पड़ोसी राकेश मांझी बताते हैं, “दिन भर हम बैठे रहते हैं, हमारे पास कुछ करने को नहीं है. कभी कभी हमें खेतों में काम मिल जाता, अगले दिन फिर भूखे रहते हैं या फिर चूहे पकड़ते हैं और उसे थोड़ा बहुत जो अनाज है उसके साथ खाते हैं.”

चूहे को आग में भून कर फेकन उसे कटोरे में रखकर उसमें नमक और सरसों का तेल मिलाते हुए कहते हैं, “सरकारें बदलती हैं लेकिन हमारे लिए कुछ नहीं बदला. हम अब भी अपने पूर्वजों की तरह ही खाते, जीते और सोते हैं.” फेकन के इर्दगिर्द मौजूद बच्चे और दूसरे लोग के खाना शुरू करने के कुछ ही मिनटों में भोजन खत्म हो जाता है.

2014 में बिहार के मुख्यमंत्री बने जीतन राम मांझी इसी समुदाय के हैं. उनके रूप में देश को पहली बार किसी मुसहर जाति का मुख्यमंत्री मिला. वह 9 महीने तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे.

समाचार एजेंसी एएफपी से मांझी ने कहा, “सिर्फ शिक्षा ही हमारी जिंदगी और भविष्य बदल सकती है. मेरा समुदाय इतना पिछड़ा है कि सरकारी आंकड़ों में भी यह दर्ज नहीं कि उनकी संख्या कितनी है. जबकि बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि पूरे देश में इस समुदाय के 80 लाख लोग हैं.”

कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, फिलीपींस के कुछ हिस्सों और इंडोनेशिया, थाईलैंड, घाना, चीन और वियतनाम में चूहों को नियमित रूप से खाया जाता है.

साभार- ‘डी डब्ल्यू हिन्दी’