केंद्रीय बैंक के निदेशक मंडल ने देश की आर्थिक वृद्धि पर नाटेबंदी का अल्पकालीन नकारात्मक प्रभाव पड़ने को लेकर मोदी सरकार को आगाह किया था।
प्रभात खबर पर छपी खबर के अनुसार, बोर्ड ने कहा था कि इस अप्रत्याशित कदम का कालाधन की समस्या से निपटने के लिये कोई ठोस प्रभाव नहीं पड़ेगा। निदेशक मंडल में आरबीआई के मौजूदा गवर्नर शक्तिकांत दास भी शामिल थे।
It's finally revealed that Modi unilaterally went ahead with Noteban without giving RBI time to consider it & without it's approval. Crores of jobs were lost & people stood in queues for days to get small amounts of their money as Modi mocked them. Time of reckoning has come now pic.twitter.com/70dULa7O3t
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) March 11, 2019
सूचना के अधिकार कानून के तहत पूछे गये सवाल के जवाब में दिये गये बैठक के ब्योरे के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आठ नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा को लेकर राष्ट्र को संबोधन से केवल ढाई घंटे पहले आरबीआई निदेशक मंडल की बैठक हुई।
EXPOSED! RBI had serious objections to demonetisation but Modi went ahead with announcement even before federal bank's approval: RTI replyhttps://t.co/EGj0YKGuhw
— Janta Ka Reporter (@JantaKaReporter) March 11, 2019
सरकार के 500 और 1,000 रुपये के नोट को चलन से हटाये जाने के कदम का मुख्य मकसद कालाधन पर अंकुश लगाना था। चलन वाले कुल नोट में बड़ी रकम वाले नोट की हिस्सेदारी 86 फीसदी थी।