बाबरी मस्जिद पर पुर्नविचार याचिका के बाद RSS और VHP ने बनाया यह प्लान!

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अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सोमवार को पहली पुनर्विचार याचिका दायर हुई। जमीयत के सेक्रेटरी जनरलमौलाना सैयद अशद रशीदी ने यह याचिका दाखिल की। रशीदी मूल याचिकाकर्ता एम सिद्दीक के कानूनी उत्तराधिकारी हैं।

उन्होंने कहा- अदालत के फैसले में कई ऋुटियां हैं और संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की जा सकती है।

रशीदी ने याचिका के साथअदालत में 217 पन्नों के दस्तावेजभी पेश किए। इसमें कहा गया- कोर्ट ने माना है किवहां नमाज होती थी,फिर भी मुसलमानों को बाहर कर दिया गया।

1949 में अवैध तरीके से इमारत में मूर्ति रखी गई थी, फिर भी रामलला को पूरी जमीन दे दी गई। याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में हिंदू पक्ष की अवैधानिक कार्रवाई को अनदेखा कर दिया।

सूत्रों के अनुसार, हिंदू पक्ष की तरफ से इसके जवाब की तैयारी शुरू कर दी गई हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद के बीच भी इस मुद्दे पर गुफ्तगू के दौर चल रहे हैं।

अमर उजाला पर छपी खबर के अनुसार, वकीलों से भी सलाहृ-मशविरा हो रहा है। विहिप के अलावा हिंदू पक्ष की तरफ से इस मामले में पैरोकार अन्य संगठनों ने समन्वय बनाकर पुनर्विचार याचिका के मुद्दे पर रणनीति का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया गया है।

पिछले तीन दिनों से विहिप के उपाध्यक्ष चपंत राय वाराणसी में थे। उनकी वहां प्रवास पर आए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश जोशी भैया जी और सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल के साथ इस मुद्दे पर कई दौर की बातचीत हुई। इस बातचीत में एक दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल हुए।

सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री ने संघ को सरकार की तरफ से कई गई तैयारी की जानकारी दी।

संघ ने एक तो विहिप को यह सुझाव दिया कि मुस्लिम पक्ष की तरफ से भले ही कुछ लोग मस्जिद के पक्ष में बयानबाजी कर रहे हों और पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कर रहे हों लेकिन हिंदू पक्ष की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आनी चाहिए। साथ ही ढांचा ध्वंस के दिन 6 दिसंबर को भी शौर्य या विजय दिवस के नाम पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होनी चाहिए।

दूसरे उसने पुनर्विचार याचिका के मद्देजर आगे की रणनीति तथा मंदिर निर्माण की प्रक्रिया एवं जमीनी अयोध्या की जमीनी स्थिति की जानकारी ली और इस मुद्दे पर कानूनी प्रक्रिया पर निरंतर नजर रखने का सुझाव दिया।

यह भी कहा कि कानूनी रूप से उलझाव वाली कोई बात हिंदू पक्ष की तरफ से न होने पाए। इसलिए हिंदू पक्ष में अन्य संगठनों या व्यक्तियों की तरफ से भी किसी बात पर प्रतिक्रिया की जरूरत नहीं है।

सूत्रों के मुताबिक, विचार-विमर्श के दौरान संबंधित वकीलों से भी फोन पर बातचीत कर स्थिति को समझा गया। विचार-विमर्श के बाद सभी संतुष्ट नजर आए कि पुनर्विचार याचिका के स्वीकार होने के कानूनी आधार काफी क्षीण है। फिर भी यदि स्वीकार हो ही जाती है तो भी हिंदुओं केपक्ष में तथ्य काफी मजबूत हैं।

बावजूद इसके सरकार और हिंदू पक्ष यह तैयारी रखें कि जरूरत पड़ने पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से लाई जाने वाली पुनर्विचार याचिका की काट की जा सके।

यह भी रणनीति तय हुई कि मुस्लिमों के बीच से जो लोग पुनर्विचार याचिका के विरोध में बोल रहे हैं उनके पक्ष में माहौल बनाया जाए। इसके लिए मुस्लिम बुद्धिजीवियों से संपर्क और उनकी तरफ से इस याचिका के विरोध में बयान दिलाने की रणनीति तय हुई।

विहिप के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा कहते भी हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को मुस्लिम समाज के ज्यादातर लोगों ने स्वागत ही किया है। सिर्फ कुछ लोग इसके विरोध में आवाज उठा रहे हैं। इसलिए यह बहुत चिंता की बात नहीं है।

जहां तक विहिप की बात है तो संगठन नेतृत्व की सभी पहलुओं पर विधिवत नजर है। संगठन लगातार विधिवेत्ताओं के संपर्क में है और बातचीत जारी है। अगर जरूरत पड़ी तो कानूनी प्रक्रिया का सहारा लिया जाएगा।

हिंदू पक्ष से इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय और इससे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में जोरदार तर्क रखने वाले श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पी.एन. मिश्र भी कहते हैं कि ज्यादा संभावना इस पुनर्विचार याचिका के अस्वीकार हो जाने की है।

फिर भी यदि न्यायालय इसे स्वीकार कर लेता है तो भी हमारी तरफ से जवाब देने की तैयारी पूरी है।

हिंदू पक्ष को तुरंत जवाब देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कारण, यह पुनर्विचार याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पहले अपने कक्ष में ही विचार करेंगे कि यह स्वीकार किए जाने योग्य है या नहीं। अगर वे इसे स्वीकार करेंगे तभी न्यायालय में इस पर सुनवाई होगी और सभी पक्षों को नोटिस दी जाएगी।

अगर अस्वीकार हो जाती है तो कुछ नहीं होगा। वैसे इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय में बहस के दौरान कोई ऐसा मुद्दा नहीं बचा है जिस पर हिंदू पक्ष की तरफ से तर्क और तथ्य न रखे जा चुके हों।