रिपोर्ट- मुसलमानों के बारे में अच्छा सोच नहीं रखते हैं पुलिस!

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भारत में ज्यादातर पुलिसकर्मियों का मानना है कि मुसलमान स्वाभाविक तौर पर आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं और अपराध की ओर उनका झुकाव रहता है. यह बात देश के इक्कीस राज्यों में हुए एक बड़े सर्वेक्षण में सामने आई है.

कॉमन कॉज और सीएसडीएस जैसे गैर सरकारी संगठनों की ओर से कराए गए इस सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि ना सिर्फ आम लोगों की बल्कि पुलिस विभाग में काम करने वाले आधे से ज्यादा लोगों की धारणा भी इससे बहुत अलग नहीं है. इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस चेलामेश्वर ने जारी किया है.

यह सर्वेक्षण ‘स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया 2019’ नाम की रिपोर्ट में प्रकाशित हुआ है जिसे देश भर के इक्कीस राज्यों में बारह हजार पुलिस वालों से बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है. सर्वेक्षण में पुलिसकर्मियों के परिवार के भी करीब ग्यारह हजार सदस्यों की राय को शामिल किया गया है.

सर्वेक्षण में मॉब लिंचिंग, पुलिस वालों पर पड़ने वाले राजनीतिक दबाव और कुछ अन्य मुद्दों पर भी पुलिस वालों ने अपनी राय जाहिर की है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि करीब 35 फीसद पुलिस वाले गोहत्या जैसे मामलों में अपराधियों की लिंचिंग यानी भीड़ द्वारा सजा देने को स्वाभाविक घटना मानते हैं. यही नहीं, बलात्कार जैसे मामलों में होने वाली लिंचिंग जैसी घटनाओं को भी करीब आधे पुलिस वाले सही मानते हैं.

सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आई कि पुलिस वालों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि छोटे-मोटे अपराधों में अभियुक्तों को सजा दिए जाने का अधिकार भी उन्हें ही मिल जाना चाहिए.

यानी एक तरह से पुलिस राज की वकालत करने वाले पुलिसकर्मियों की कमी नहीं है. बल्कि सैंतीस फीसद पुलिसकर्मी तो यह मानते हैं कि ऐसे अपराधों में कानूनी प्रक्रिया पूरी करने की ही जरूरत नहीं है बल्कि ऐसे मामलों को सीधे पुलिस को ही सौंप दिया जाना चाहिए.

सर्वेक्षण में पुलिसकर्मियों की कार्यशैली के अलावा उनकी समस्याओं, उनकी सोच और तमाम दूसरी समस्याओं के संदर्भ में सवाल किए गए थे. सर्वेक्षण का एक निष्कर्ष ये भी सामने आया है कि तमाम मामले पुलिस के रिकॉर्ड में इसलिए भी नहीं दर्ज हो पाते क्योंकि लोग आज भी पुलिस के पास जाने से या तो डरते हैं या फिर कतराते हैं.

इस रिपोर्ट में कई ऐसे पहलुओं पर भी चर्चा की गई है जिनकी वजह से पुलिसकर्मियों को मानसिक और शारीरिक तनाव झेलना पड़ रहा है. इसके पीछे उनकी अनियमित दिनचर्या और ड्यूटी को मुख्य वजह बताया गया है.

रिपोर्ट जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा कि निचले स्तर के पुलिसकर्मियों को नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था ना होना भी पुलिस व्यवस्था में तमाम तरह के दोषों के लिए जिम्मेदार है. रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सिर्फ छह फीसद पुलिस वाले ऐसे हैं जिन्हें कार्यकाल के दौरान कोई प्रशिक्षण मिला हो. लगभग सभी पुलिसकर्मी सिर्फ भर्ती के वक्त ही प्रशिक्षण पाते हैं, उसके बाद नहीं. जबकि अधिकारियों के मामलों में ये बात बिल्कुल उलट है.

सर्वेक्षण में कई ऐसे तथ्य भी सामने आए हैं जिनसे देश की पुलिस व्यवस्था में खामियों की वजह पता चलती है. मसलन, देश भर में ऐसे 224 थाने हैं जहां फोन तक की व्यवस्था नहीं है और करीब ढाई सौ थानों में कोई वाहन उपलब्ध नहीं है.

रिपोर्ट में राजस्थान, ओडिशा और उत्तराखंड को इस मामले में सबसे खराब राज्य के रूप में चिह्नित किया गया है जबकि बेहतर संरचना, संसाधन और आधुनिकीकरण के मामले में पश्चिम बंगाल, गुजरात और पंजाब सबसे अच्छे राज्यों के रूप में पाए गए हैं.

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी