एमेनेस्टी इन्टरनेश्नल इंडिया ने सचेत किया है कि नई दिल्ली की ओर से क्षेत्र के स्टिक होल्डर्स से सलाह बिना जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने का फ़ैसला और नागरिकों के अधिकारों को पूर्ण रूप से समाप्त करना, क्षेत्र में तनाव में वृद्धि का कारण बन सकता है।
NEWS: The unilateral decision of the Govt of India to revoke the special status of J&K under the Indian Constitution amidst a complete clampdown on civil liberties & communications blackout is likely to increase the risk of further human rights violations.https://t.co/JJ45cw8Vvh
— Amnesty India (@AIIndia) August 5, 2019
पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, एमेनस्टी इन्टरनेश्नल इंडिया के बयान में कहा गया है कि भारत सरकार का क्षेत्र के स्टिक होल्डर्ज़ से सलाह बिना संविधान के अंतर्गत कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने का एकपक्षीय फ़ैसले, नागरिक अधिकारों के पूर्ण रूप से समाप्त करने और जनसंपर्क व्यवस्था को पूर्ण रूप बंद करने से संभावित रूप से तनाव तथा राज्य में लोगों को अलग थलग करने और मानवाधिकार के उल्लंघनों का ख़तरा है।
3: It is deeply concerning to see political leaders in J&K being deliberately excluded and muzzled from expressing their views on important decisions taken by the Union Government of India that will shape the future of J&K.#Article370
— Amnesty India (@AIIndia) August 6, 2019
मानवाधिकार संस्था की ओर से कहा गया है कि आर्टिकल 370 की समाप्ति राज्य में अशांति और बड़े स्तर पर विरोध का कारण बन सकता है। बयान में कहा गया है कि घाटी में हज़ारों की संख्या में अतिरिक्त बलों को तैनात कर दिया गया है और कर्फ़्यू लगाकर नागरिकों की आवाजाही को सीमित कर दिया गया है और उन्हें शांतिपूर्ण प्रदर्शन के हक़ से रोका जा रहा है।
India revokes special status of Kashmir, putting tense region on edge https://t.co/DJhS8TRx6o
— The Washington Post (@washingtonpost) August 5, 2019
एमेनेस्टी इन्टरनेश्नल का यह भी कहना था कि जम्मू कश्मीर में टेली कम्युनीकेश्न सेवाओं को अघोषित अवधि तक स्थगित करना भी अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों के मापदंडों के अनुसार नहीं है। एमेनेस्टी इन्टरनेश्नल इंडिया ने बयान में बल दिया है कि घाटी में उल्लंघनों की समाप्ति उस समय तक नहीं हो सकती जब तक यहां के लोगों को इस मामले में बोलने की अनुमति नहीं दी जाती।