श्रीमती सुप्रिया श्रीनेत ने पत्रकारों को संबोधित कर की बड़ी मांग!

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श्रीमती सुप्रिया श्रीनेत ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सब लोगों को मेरा नमस्कार। आज हम लोग एक अहम मुद्दे पर बात करने के लिए आपके सामने उपस्थित हुए हैं।

कल सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने बोला कि कोरोना मृतकों के परिजनों के मात्र 50,000 रुपए, सिर्फ 50,000 रुपए मुआवजे का दिया जाएगा।

· कोरोना मृतकों के परिवारों को 50,000 रुपए का मुआवज़ा एक भद्दा मज़ाक़

· हर मृतक परिवार को 5 लाख रुपए का मुआवज़ा दिया जाए

· मौत का पुनः से सर्वेक्षण कर, परिवारों को चिन्हित कर सहायता राशि दी जाए

· मोदी सरकार लगातार मुआवज़े पर आनाकानी करती आ रही है

मोदी सरकार के ढोंग का एक बार फिर पर्दाफ़ाश हो चुका है। पहले तो सरकार की विफलता के चलते लाखों लोगों की कोरोना काल में जान चली गयी और अब बजाय शोक संतप्त परिवारों के घावों पर मरहम लगाने के, मोदी सरकार उन पर नमक मिर्च रगड़ने का काम कर रही है। कोरोना मृतकों के परिजनों को मात्र 50,000 रुपए का मुआवज़ा दिया जाएगा- यह उन परिवारों के साथ एक भद्दा मज़ाक़ है – और सरकार के दम्भ, अहंकार और असंवेदनशीलता का प्रमाण है।

कल के सुप्रीम कोर्ट में दाखिल सरकार के हलफ़नामे और इन्हीं के पहले हलफ़नामे में ज़बरदस्त विरोधाभास है। पर मदद ना देने का आशय शुरू से साफ़ है।

इससे पहले कि हम आगे बढ़ें – कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी जी ने और हमारे नेता श्री राहुल गांधी जी ने पहले भी उचित मुआवज़े की माँग की है, आज इस मंच से हम हर मृतक के परिवार के लिए 5 लाख मुआवज़े की पुरज़ोर माँग करते हैं। और यह मुश्किल नहीं है- जिस सरकार ने एक ही साल में मात्र ईंधन पर टैक्स से 4 लाख, 54 हजार करोड़ रुपए कमाये हैं, क्या वह मात्र 22,000 करोड़ रुपए – मात्र 4.8% मृतकों के परिवारों को नहीं दे सकती? क़रीब 14 करोड़ रोज़गार नष्ट हो गए, लोगों का वेतन घट गया, नौकरीपेशा लोगों को मजबूरी में अपनी भविष्यनिधि EPFO तक से 66,000 करोड़ रुपए निकालने पड़ गए- कितने ही बच्चे यतीम हो गए, परिवार के मुख्य कमाने वाले चले गए।

सर्व प्रथम ज्ञात रहे यह वही सरकार है जिसने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में यह कहा था कि आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत कोविड महामारी को ‘आपदा’ ही नहीं कहा जा सकता है। इस कुतर्क को सर्वोच्च न्यायालय ने 30 जून, 2021 के अपने फ़ैसले में पूर्णतः ख़ारिज कर दिया था।

इसके बाद अपनी विफलताओं और लापरवाही के चलते पीड़ितों को मदद देना तो दूर सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से लगातार भागती रही, बार बार मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एडजर्न्मेंट (स्थगन) लिया जिसके चलते न्यायालय को अपने आदेश के पालन के लिए सरकार को बाध्य करने का आदेश तक देना पड़ा।

अंतत: जब कोई अन्य विकल्प नहीं बचा, तो मोदी सरकार ने 22 सितंबर, 2021 को राज्य आपदा कोष से मात्र 50,000 रुपये दिए जाने का फ़ैसला किया। [ पत्र का पृष्ठ 8, पैरा 6 और 7]

यहाँ यह बताना अनिवार्य है कि गृह मंत्रालय ने 8 अप्रैल, 2015 को SDRF और NDRF से संशोधित सूची और सहायता के मानदंड जारी किए थे। जिसमें यह साफ़ तौर से अंकित है कि किसी भी आपदा के कारण हुई मृत्यु के लिए पीड़ित परिवार को बाक़ी राहत के अलावा 4 लाख रुपए का मुआवज़ा दिया जाएगा। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में यही मांग की थी। पर मोदी सरकार ने अपने ही बनाए हुए क़ानून की भी अनदेखी कर दी।

सरकार सदन में कितना ही झूठ बोल कर भ्रमित करने का काम करे पर सच तो यह है कि यह सरकार के कुप्रबंधन और विफलता के चलते लाखों लोगों की जान चली गई। मौत का ऐसा भयानक मंजर शायद ही किसी ने अपने सर पर मंडराते हुए पहले कभी देखा हो। जिस समय मोदी जी को डट कर कोरोना का सामना करना चाहिए था, प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन, दवाइयां, अस्पताल, इलाज मुहैया कराना चाहिए था उस समय तो मोदी जी रणछोड़ कर भाग निकले थे। कोरोना काल की त्रासदी के दौरान क्या आपको मोदी जी की एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस याद है? आम जनमानस तो त्रस्त थे ही, भाजपा के खुद के कार्यकर्ता, भक्तों की मंडली, यहां तक की इनके सांसद, विधायक तक खुलेआम मदद की गुहार लगा रहे थे – बिना ऑक्सीजन के तड़प तड़प कर लोगों की जान चली गई – क्योंकि मोदी जी की प्राथमिकता तो बंगाल का चुनाव – दीदी ओ दीदी करना था। इस वैश्विक महामारी का जो विकराल रूप भारत में दिखा वह मोदी सरकार की उपेक्षा के कारण हुआ।

सबको पता है की कैसे संसद की स्थायी समिति, मंत्रियों के समूह की चेतावनी सबको नज़रअंदाज़ किया गया – अब तो यह भी बात सामने आ गयी है की कैसे वैज्ञानिकों की सलाह और आंकड़ों तक के साथ छेड़खानी की गयी ताकि साहब की छवि और चुनावी प्रचार जारी रखा जा सके।

लेकिन मोदी जी जानते हैं की लगभाग 4.5 लाख सरकारी मौत के आँकडें से वास्तव मौत के आकड़ें कहीं ज़्यादा है – वह अपनी विफलता भी स्वीकारते हैं – स्वास्थ्य मंत्री का हटाया जाना इस विफलता की स्वीकरोति है। पर ठीकरा किसी और के सर पर फोड़ना मोदी जी की पुरानी आदत है, सच यह है की यह मोदी जी की ही बनायीं हुई त्रासदी थी। पर अब मात्र 50,000 रुपए देकर सरकार क्या साबित करना चाह रही है?

और आज यह दोबारा से पूछना पड़ेगा कि PM CARES FUND का पैसा कहाँ है? उसका क्या इस्तेमाल हो रहा है? यह पैसा देश कि जनता ने दिया है, प्रधानमंत्री पद के नाम पर दिया, सरकारी नुमाइंदों ने इकठ्ठा किया तो इसकी असलियत जनता को बताने में ऐसी कौन सी दिक्कत है?

हमारी माँग है

· हर मृतक के परिवार को 5 लाख रुपए मुआवज़ा दिया जाए

· मौत के आकड़ें छुपाने का प्रयास बंद हो

· हर राज्य पुनः कोरोना काल में होने वाली मृत्यु का सर्वे कर क्लेम्ज़ को स्वीकार करें