तुर्की, ईरान के दबाव का असर: फलस्‍तीनीयों को लेकर रुस गंभीर, अमेरिका पर साधा निशाना!

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तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान के समय आने वाले दिनों में बहुत कठिन विकल्प होंगे और यही विकल्प उनके रास्ते का निर्धारण करेंगे क्योंकि हालिया महीनों में अर्दोग़ान ने समय हासिल करने की जो रणनीति अपनाई थी अब उसका समय पूरा हो चुका है।

इन विकल्पों का उल्लेख करने से पहले तीन शिखर सम्मेलनों की ओर संकेत करना ज़रूरी है जिनके परिणाम मध्यपूर्व की नई दिशा तय कर सकते हैं। इनका असर अरब इस्राईल विवाद पर भी पड़ेगा, इसका असर ईरान के संबंध में भी होगा। यह तीनों शिखर सम्मेलन इसी सप्ताह होने वाले हैं। इनके लिए रूस के सूची, पोलैंड के वार्सा और रूस की राजधानी मास्को का चयन किया गया है।

paestoday.com पर छपी खबर के अनुसार, पहला शिखर सम्मेलन सूची में होने जा रहा है जिसमें राष्ट्रपति व्लादमीर पुतीन, ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी और तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान भाग लेंगे यह बैठक बुधवार को होने वाली है।

दूसरा सम्मेलन पोलैंड के शहर वार्सा में अमरीका करवा रहा है मगर इस सम्मेलन में राष्ट्राध्यक्षों के बजाए विदेश मंत्री जाएंगे। इसका नाम रखा गया है मध्यपूर्व में शांति और सुरक्षा। इसके स्टार वक्ता इस्राईली प्रधानमंत्री नेतनयाहू होंगे, इसके अलावा अमरीका के उप राष्ट्रपति माइक पेन्स और अमरीकी राष्ट्रपति के दामाद जेर्ड कुशनर इसमें नज़र आएंगे।

फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों तथा जार्डन और मिस्र के विदेश मंत्री भी इस सम्मेलन में पहुंचने वाले हैं। इस सम्मेलन में ईरान के ख़िलाफ़ साज़िशों पर विचार किया जाना है और इस्राईल अरब मित्रता की नई योजनाएं तैयार की जानी हैं।

तीसरा शिखर सम्मेलन रूस की राजधानी मास्को में होने वाला है जिसमें व्लादमीर पुतीन के मेहमान इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू होंगे और उनकी चर्चा का विषय होगा सीरिया मुद्दा और सीरिया में ईरान की उपस्थिति।

सूची शहर में आयोजित होने वाला शिखर सम्मेलन सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके परिणामों का सीधा असर अन्य दोनों शिखर सम्मेलनों पर पड़ेगा।

इसलिए कि तीन देशों रूस ईरान तुर्की के राष्ट्रपतियों के बीच तालमेल से सीरिया के इलाक़े इदलिब, उत्तरी सीरिया में सेफ़ ज़ोन और फ़ुरात नदी के पूरब में कुर्द फ़ोर्सेज़ की मौजूदगी के बारे में महत्वपूर्ण सहमति हो सकती है।

तुर्की के राष्ट्रपति से रूस और ईरान के राष्ट्रपति यह मांग ज़रूर करेंगे कि वह सीरिया के इदलिब शहर का मुद्दा हल करें क्योंकि इस शहर में वह चरमपंथी संगठन हैं जिन्हें तुर्की का समर्थन प्राप्त है।

यह सच्चाई एसी है कि कोई भी इसका इंकार नहीं कर सकता कि अमरीका धीरे धीरे मध्यपूर्व से पल्ला झाड़ रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प का स्वभाव आर्थिक नफ़ा नुक़सान पर केन्द्रित है, अतः वह जब से सत्ता में आए हैं उनके अधिकतर बयानों में अरबों डालर की आमदनी, सऊदी अरब से पैसा लेने, इमारात से पैसा लेने, चीनी उत्पादों पर टैक्स लगाने की बातें सुनाई देती हैं।

ट्रम्प ने जब सीरिया से अपने सैनिकों को वापस बुलाने का एलान कर दिया और अफ़ग़ानिस्तान से भी सैनिकों को वापस बुलाने का इशारा दे दिया तो मध्यपूर्व में अमरीका के घटकों को बहुत तेज़ धक्का लगा है। इस्राईल को भी ट्रम्प के निर्णय से आघात पहुंचा।

यही कारण है कि कई अरब देशों ने तत्काल रूप से दमिश्क के दौरे शुरू कर दिए। जिन देशों और संगठनों को अमरीका से बड़ी उम्मीदें थीं उन्हें अचानक लगा कि वह बिल्कुल अकेले पड़ गए हैं अतः उनके लिए बेहतर होगा कि सीरिया से संबंध बहाल करें।

अरब देशों के साथ ही तुर्की ने भी सीरिया से संबंधों को सुधारने के इशारा दिए। तुर्क अधिकारियों ने बयान दिया कि सीरिया के साथ तुर्की के इंटैलीजेन्स अधिकारियों के स्तर के संबंध हैं।

अमरीका के भीतर इस स्थिति से चिंता पैदा हो गई कि अमरीका के घटक यह मान रहे हैं कि अमरीका ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा है। अपने घटकों का ध्यान इस सोच से हटाने के लिए अमरीका ने वार्सा सम्मेलन आयोजित किया है और यह आश्वासन देने की कोशिश की है कि ईरान के ख़िलाफ़ लड़ाई में वह अपने घटकों के साथ खड़ा है।

मगर कुल मिलाकर देखा जाए तो यह बात बिल्कुल साफ़ हो जाती है कि मध्यपूर्व के पूरे इलाक़े में अमरीका का प्रभाव बहुत तीव्र गति से सिमट रहा है। इसलिए अमरीका के घटकों की चिंता अपनी चरम सीमा पर है विशेषकर इसलिए भी कि उनके बीच आपसी मतभेद भी काफ़ी गहरे हैं। सऊदी अरब और इमारात के साथ क़तर और तुर्की के मतभेद तो सार्वजनिक भी हो चुके हैं।

इस बीच जहां अरब देशों की कोशिश है कि सीरिया से उनके पुराने संबंध बहाल हों वहीं तुर्की भी सीरिया से अपने मतभेदों से बाहर निकलने की कोशिश में है और रूसी राष्ट्रपति पुतीन इस संदर्भ में तुर्की की काफ़ी मदद कर सकते हैं।