ऐसा लगता है कि सऊदी अरब फ़ार्स की खाड़ी में समुद्री यातायात की सुरक्षा अपनी तैनाती के बारे में ईरान से गंभीर वार्ता शुरू करने का इच्छुक है।
समाचारपत्र रायुल यौम ने अपनी एक समीक्षा में लिखा है कि ईरान के निकटवर्ती सूत्रों का कहना है कि तेहरान के संबंध में सऊदी अरब की नीति में बड़ा परिवर्तन आया है।
अलबत्ता यह नीति केवल समुद्री यातायात की सुरक्षा तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि ऐसे अनेक मामलों पर भी लागू होगी जिनका महत्व समुद्री यातायात से कम नहीं है। अगर ईरान व सऊदी अरब के बीच बात होती है तो यमन का विषय, ज़रूर उठेगा।
बड़ी स्पष्ट सी बात है कि सऊदी अरब, यमन में युद्ध समाप्ति की कोशिशें शुरू कर दे क्योंकि इस युद्ध से संयुक्त अरब इमारात के निकल जाने और अमरीका के ढुलमुल रवैये के कारण वह अपने आपको अकेला और ठगा हुआ सा महसूस कर रहा है।
ऐसा लगता है कि उसने एक गुप्त चैनल के माध्यम से तेहरान तक यह संदेश पहुंचा दिया है कि इस युद्ध का अंत इस तरह हो कि रियाज़ को पराजित न माना जाए। यह रियाज़ की कड़ी शर्त है और वह इसे ईरान के साथ वार्ता के लिए इसे एक मूल बिंदु मानता है।
विदित रूप से इमारात ने यमन में अपनी भूमिका में जो परिवर्तन किए हैं, उन्होंने सऊदी अरब के रुख़ पर भी प्रभाव डाल दिया है। रिपोर्टों के अनुसार इन दिनों इन दोनों देशों के बीच जो मतभेद बढ़े हैं उनका मुख्य कारण, ईरान व यमन युद्ध के बारे में इमारात की बदली नीति है।
इस विचार को जिस बात से बल मिलता है वह अदन में सऊदी अरब व इमारात समर्थित बलों के बीच भीषण झड़प है। इमारात अंतरिम परिषद का समर्थन करता है जबकि सऊदी अरब यमन के अपदस्थ राष्ट्रपति मंसूर हादी का समर्थक है।
पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, अलबत्ता एक विचार यह भी है कि इमारात, सऊदी अरब और ईरान के बीच एक परोक्ष संपर्क चैनल है और अबू धाबी व तेहरान के बीच जो कुछ हो रहा है वह रियाज़ के समन्वय से हो रहा है।
अलबत्ता एक व्यक्ति है जो इस संबंध में अधिक बेहतर भूमिका निभा सकता है और वह रूस के राष्ट्रपति विलादिमीर पुतीन के अलावा कोई और नहीं है। उनके मुहम्मद बिन सलमान और ईरानी राजनितिज्ञों से अच्छे संबंध हैं।
अगर यह तैय हो कि रियाज़ और तेहरान के बीच संदेशों के आदान-प्रदान के लिए किसी उचित चैनल का चयन किया जाए तो रूस से बेहतर विकल्प कोई और नहीं हो सकता।
रियाज़, नीतियों के परिवर्तन और संकटों से निपटने के मामले में हमेशा अबू धाबी से एक क़दम पीछे रहा है। इसे दमिश्क़ से कूटनैतिक संबंधों की बहाली के इमारात के क़दम में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जबकि रियाज़ आरंभ से ही इस मामले में संदेह और संशय में पड़ा रहा।
अलबत्ता हमारी समीक्षा यह है कि रियाज़ का यह संशय जल्द ही समाप्त हो जाएगा और सऊदी सरकार दमिश्क़ से संबंध स्थापित करने और ईरान से वार्ता आरंभ करने के लिए जल्द ही क़दम उठाएगी।