जम्मू के डिटेंशन सेंटर में रखे गए 170 रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार भेजने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।
भास्कर डॉट कॉम पर छपी खबर के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आदेश जारी करते हुए कहा कि कैंप में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को तब तक नहीं भेजा जा सकता, जब तक डिपोर्टेशन की पूरी प्रक्रिया का पालन न किया जाए।
कोर्ट ने याचिका लगाने वाले व्यक्ति की उस मांग को खारिज कर दिया, जिसमें उसने इन लोगों को रिहा करने की अपील की थी।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
प्रशांत भूषण ने दिया था इंटरनेशनल कोर्ट का हवाला
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यों की पीठ ने गुरुवार को ये फैसला सुनाया।
सलीमुल्लाह नाम के व्यक्ति की याचिका पर प्रशांत भूषण ने इस केस की पैरवी की। प्रशांत भूषण ने इंटरनेशनल कोर्ट का हवाला दिया था।
उन्होंने कहा था कि इन रोहिंग्या मुसलमानों की जान को म्यांमार में खतरा है, इसलिए इन्हें डिपोर्ट नहीं किया जाना चाहिए। ये मानव अधिकारों का उल्लंघन है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के वकील तुषार मेहता ने दलील दी थी कि डिंटेशन सेंटर में रखे गए रोहिंग्या शरणार्थी नहीं, बल्कि घुसपैठिए हैं। ये लोग देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि भारत घुसपैठियों की राजधानी नहीं है। इसे ऐसा नहीं बनने दिया जाएगा। सरकार कानून के मुताबिक ही अपना काम कर रही है।
सुनवाई में भूषण ने कहा था कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार को लेकर पिछले साल 23 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय अदालत ने अपना फैसला दिया।
इसमें कहा था कि म्यांमार में सेना ने निर्दोष लोगों की हत्याएं की हैं। इससे करीब 7.44 लाख रोहिंग्या बेघर होकर पड़ोसी देशों में भागने को मजबूर हुए।
जवाब में CJI ने कहा कि यह याचिका केवल भारतीय नागरिकों के लिए है। दूसरे देश के नागरिकों के लिए नहीं।