’अल्पसंख्यक’ को परिभाषित करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ने केंद्र को नोटिस जारी किया!

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सुप्रीम कोर्ट ने छह समुदायों को अल्पसंख्यक दर्जा देने की अधिसूचना और अल्पसंख्यक आयोग की वैधानिकता को चुनौती देने वाली विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित करने की मांग पर मंगलवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।

जागरण डॉट कॉम पर छपी खबर के अनुसार, भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण याचिका दाखिल कर दिल्ली, गुवाहाटी और मेघालय उच्च न्यायालय में लंबित याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित कर एक साथ सुनवाई करने की मांग की है, ताकि एक ही मुद्दे पर भिन्न फैसले आने की संभावना न रहे।

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने स्थानांतरण याचिका पर बहस सुनने के बाद गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय को नोटिस जारी किया।

इसके साथ ही कोर्ट ने इस स्थानांतरण याचिका को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान कानून को चुनौती देने वाली पहले से लंबित याचिका के साथ सुनवाई के लिए संलग्न करने का आदेश दिया है।

उपाध्याय ने स्थानांतरण याचिका में कहा है कि अल्पसंख्यक आयोग कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित हैं।

अल्पसंख्यक आयोग शिक्षण संस्थान को चुनौती देने वाली याचिका पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

स्थानांतरण याचिका में कई समुदायों को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि लद्दाख में रहने वाले एक फीसद हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं है जबकि 46 फीसद मुसलमान और 50 फीसद बौद्ध को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त है।

इसी तरह मिजोरम में हिंदू मात्र 2.75 फीसद, लक्षद्वीप में 2.77 फीसद, कश्मीर में 4 फीसद, नगालैंड में 8.74 फीसद, मेघालय में 11.52 फीसद हैं।

लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा नहीं मिला है, जबकि मिजोरम के 88 फीसद ईसाई, लक्षद्वीप के 96.58 फीसद मुस्लिम, कश्मीर के 95.5 फीसद मुस्लिम, नगालैंड के 88.1 फीसद ईसाई, मेघालय के 75 फीसद ईसाई को अल्पसंख्यक का दर्जा मिला हुआ है।

उपाध्याय ने कहा है कि यहूदी, बहाई जैसे धार्मिक अल्पसंख्यक जिनकी संख्या बहुत कम है, उन्हें न राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा मिला है और न केंद्रीय स्तर पर। इसलिए 1993 की अल्पसंख्यक दर्जा देने वाली अधिसूचना असंवैधानिक है।

1993 की अधिसूचना में पांच समुदायों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसियों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था, जिसमें 2014 में जैन को भी जोड़ दिया गया।

कहा गया है कि 2002 में सुप्रीम कोर्ट की 11 जजों की पीठ ने टीएमए पाई फैसले में स्पष्ट कर दिया था कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक की पहचान राज्यवार होगी न कि राष्ट्रीय स्तर पर।

लेकिन अभी तक वह फैसला लागू नहीं हुआ। याचिका में वैकल्पिक मांग है कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों की राज्यवार पहचान की जाए।