तालिबान का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल 25 नवंबर को विशेष विमान से तेहरान पहुंचा। जिसका नेतृत्व वर्तमान में तालिबान के सबसे वरिष्ठ सदस्य मुल्ला अब्दुल ग़नी बिरादर इख़वंद कर रहे थे।
A Taliban delegation led by the group’s deputy leader Mullah Abdul Ghani Baradar visited Iran on Tuesday and discussed the Afghan peace process with Iranian foreign minister Mohammad Jawad Zarif, a spokesman for Taliban Suhail Shaheen said in tweet.#Afghanistan pic.twitter.com/lKEGF21IJu
— Ariana News (@ArianaNews_) November 27, 2019
तालिबान अधिकारियों का यह तीन दिवसीय तेहरान दौरा है। जिसमें वह विदेश मंत्री, सैन्य अधिकारियों और रक्षा अधिकारियों आदि से वार्ता करेंगे। ईरान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी तालिबान प्रतिनिधिमंडल से ईरानी विदेश मंत्री जव्वाद ज़रीफ की भेंट एवं वार्ता की पुष्टि की है।
उधर क़तर स्थित तालिबान के राजनीतिक कार्यालय से भी पुष्टि की गई। पुष्टि राजनीतिक कार्यालय के प्रवक्ता सोहेल शाहीन ने की ।
https://twitter.com/RT_com/status/1199641516098162689?s=19
प्रतीत होता है कि तालिबान लड़ाकों द्वारा मजा़र शरीफ में दस ईरानी राजनयिकों की हत्या और तालिबान प्रमुख मुल्ला अख्तर मंसूर कि ईरान से पाकिस्तान में प्रवेश करते समय ईरानी सीमा के निकट ड्रोन से निशाना बनाकर की गई हत्या। जिसका खुफिया इनपुट ईरान द्वारा उपलब्ध कराए जाने का संदेह किया जाता है। अब दोनों पक्ष इन घटनाओं से उबर आए हैं और बेहतर कल के निर्माण की ओर अग्रसर है।
Iranian Foreign Minister Mohammad Javad Zarif held talks in Tehran with a Taliban delegation led by Mullah Abdul Ghani Baradar, one of the group’s founders, the official IRNA news agency reported. https://t.co/TnNVIGDhqd
— Algemeiner (@Algemeiner) November 28, 2019
तालिबान के प्रतिनिधिमंडल ने ईरान के आमंत्रण पर ईरान का दौरा किया है। यह पहला शीर्ष तालिबान प्रतिनिधिमंडल है जिसने ईरान का दौरा किया। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे मुल्ला अब्दुल ग़नी बिरादर इख़वंद तालिबान के पहले प्रमुख मुल्ला उमर के साथियों में से हैं।
Iran's FM confirmed his meeting with Taliban representatives in Tehran saying, "We meet with any Afghan group to work toward Afghan peace. They've come here for the same reason" pic.twitter.com/r7xsS3VC78
— ایسنا جهان (@Isna_Int) November 27, 2019
इन्होंने मुल्ला उमर के साथ मिलकर तालिबान का गठन किया । इस प्रकार तालिबान के संस्थापक सदस्य हैं। कहा जाता है कि यदि पाकिस्तान में मुल्ला ग़नी बिरादर को गिरफ्तार न किया गया होता तो मुल्ला उमर की मृत्यु के पश्चात तालिबान के प्रमुख मुल्ला अब्दुल ग़नी बिरादर होते।
Iran foreign minister meets senior Taliban official in Tehran https://t.co/KvejRWexfd
— Reuters Iran (@ReutersIran) November 27, 2019
इस दौरे का महत्व और बढ़ जाता है जब हम देखते हैं कि सुपर पावर अमेरिका समर्थित अफगानिस्तान सरकार और काबुल और उसके निकट स्थित क्षेत्र तक सीमित रह गई है।
काबुल सरकार और अमेरिका के अपने लाभ हानि के मापदंड है।
दोनों के बीच विरोधाभास है। 10 खरब अमेरिकी डॉलर व्यय करके भी अमेरिका विजय से उतनी ही दूर है जितना आक्रमण के पहले दिन था । इस कारण उसके अंदर हताशा निराशा साफ दृष्टिगत है ।
अब अमेरिका किसी भी स्थिति में अफगानिस्तान से अपनी जान सम्मान के साथ छुड़ाना चाहता है।
अनस हक्क़ानी और वरिष्ठ तालिबान कमांडर मालिक को छोड़ा जाना तालिबान को वार्ता की मेज पर लाने के लिए दी गई रिश्वत के समान है।ऐसे में ईरान तालिबान को अफगानिस्तान के भविष्य की शक्ति के रूप में देखता है जिससे वह अपने मामलात तय कर लेना चाहता है।
यही कारण है कि तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने विदेश मंत्री जव्वाद ज़रीफ के साथ-साथ उच्च अधिकारियों और खुफिया विभाग के प्रमुख अली शायमख़ानी से भी मुलाकात की।
जिसमें तालिबान ने तालिबान अमेरिका शांति प्रक्रिया की पूरी जानकारी दी तथा तालिबान- अफगान शांति वार्ता के संबंध में भी बात की।
इसके अतिरिक्त ईरान द्वारा हिरात शहर को बिजली और गैस की आपूर्ति तथा तालिबान नियंत्रण वाले क्षेत्र में बिजली तथा गैस की आपूर्ति पर बातचीत हुई।
ईरान की भारत की सहायता से नवनिर्मित चाहबहार बंदरगाह से निमरोज़ तक सप्लाई लाइन के निर्माण और उसकी सुरक्षा पर भी बातचीत हुई।
ईरान ने तालिबान की मांगों पर सहमति जताई कि अफगान शरणार्थियों को तब तक ईरान से नहीं निकाला जाएगा। जब तक की अफगानिस्तान में स्थितियां सामान्य नहीं हो जाती ।
अफगान शरणार्थियों के बच्चों को ईरान द्वारा शिक्षा की अतिरिक्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। ईरान नॉर्दन एलायंस (उत्तरी गठबंधन) के धड़ो की सहायता नहीं करेगा ।तालिबान की यह एक मुख्य मांग थी जिसे ईरान ने स्वीकार कर लिया ।
तालिबान अफगानिस्तान में ईरान के निवेश एवं हितों के विरुद्ध कार्य नहीं करेगा इस पर सहमति बनी।
ईरान अफगानिस्तान की सीमा 900 किलोमीटर से अधिक लंबी है जिसका अधिकतर भाग तालिबान नियंत्रण वाले क्षेत्रों से मिलता है। ऐसे में तालिबान से अच्छे संबंध ईरान को सीमा के प्रति चिंता मुक्त कर सकते हैं ।
दरिया आमू अफगानिस्तान से निकलकर ईरान जाता है । इसके पानी पर ईरान की सिंचाई का तंत्र निर्भर करता है। इस पर अमेरिका बांध बनाना चाहता है जो ईरान के बहुत बड़े भू-भाग को सिंचाई से वंचित कर देगा । दोनों पक्षों की इस विषय में बात हुई ।
अमेरिका अफगानिस्तान में तथाकथित इस्लामिक स्टेट को डमप कर रहा है जिसमें उसे अफगान सरकार का सहयोग प्राप्त है। ईरान इससे भयभीत है।
अफ़गानिस्तान नेशनल डायरेक्टरेट ऑफ सिक्योरिटी के प्रमुख मोहम्मद मासूम के अनुसार ”रूस और ईरान तालिबान को प्रशिक्षण दे रहे हैं और हथियारबंद कर रहे हैं”। अफगानिस्तान की बॉर्डर पुलिस ने तालिबान लड़ाकों से ईरान निर्मित हथियार पकड़े ।
तालिबान के तेहरान के साथ-साथ बीजिंग, इस्लामाबाद और मास्को से भी अच्छे संबंध हैं।
शिया ईरान और सुन्नी तालिबान के बीच आपसी बातचीत समझ और सहमति एक अप्रत्याशित घटना है। भूतकाल के घोर विरोधी एवं शत्रु आज पारस्परिक सहयोग की तरफ बढ़ रहे हैं। ईरान के लिए सुखद बात यह है कि उसके और तालिबान के बीच संबंध प्रगण हो गए है एवं सुस्थिर हो गए हैं। आशा है कि ईरान के चिर प्रतिद्वंद्वी, घोर विरोधी और अमंगल चाहने वाला सऊदी अरब उनके संबंधों पर सरलता से प्रभावी नहीं हो सकता है।
तालिबान संकीर्ण मानसिकता के मौलवी के रूप में अपनी ख्याति रखते थे आज वही तालिबान कुशल, चतुर राजनयिक सिद्ध हो रहे हैं जो मोलभाव की शक्ति जानते और समझते हैं कूटनीति की इससे बड़ी सफलता और क्या हो सकती है कि अफगानिस्तान की अमेरिका नाटो समर्थित काबुल सरकार के अपने पड़ोसी देशों से संबंध इतने अच्छे नहीं हैं जितने तालिबान के।
आतंक औरआंतकवाद का कभी उपनाम रहा शब्द तालिबान जो कभी एकल प्रयोग नहीं हुआ लेकिन आज वही मीडिया शब्द तालिबान एकल रूप में लिखता और उच्चारित करता है। यह एक बड़ा बदलाव है । पैमाने कैसे बदलते हैं इसका भी धोतक है ।
परिवर्तन प्रकृति का एक नियम है । तालिबान भी समय के साथ परिवर्तित हुए। परिवर्तन क्यों आया ? कब आया ? कैसे आया ? यह गूढ़ प्रश्न हैं कहते हैं कि समय सिखाता है बस आवश्यकता है सीखने की चाह की ।
तालिबान की संकीर्णता के आलोचकों के लिए यह आश्चर्यपूर्ण पर सुखद समाचार है कि तालिबान के कार्य एवं विचार का कैनवास बढ़ा हुआ है । अब यह पहले जैसे आत्मकेंद्रित, अदूरदर्शी, अव्यवहारिक तालिबान नहीं रहे अर्थात निरे मौलवी नहीं रहे।
लेखक- मिर्ज़ा शिबली बेग