बाबरी मस्जिद विध्वंस के दोषियों को सजा दी जाये, तभी फैसले का असली सम्मान होगा- सीताराम येचुरी

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मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि अयोध्या के मामले में उच्चत्तम न्यायालय के फैसले का वास्तविक सम्मान तब होगा जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के दोषियों को सज़ा दी जाए।

रॉयल बुलेटिन पर छपी खबर के अनुसार, श्री येचुरी ने अपने बयान में कहा है कि अयोध्या विवाद को लेकर हमारा शुरुआत से मानना रहा है कि इसका हल दो ही तरीकों से हो सकता है। या तो दोनों पक्ष के लोग आपसी बातचीत और रजामंदी से इसका समाधान तलाश लें या फिर अदालत में इसका फैसला हो।

अब अदालत के माध्यम से इसका न्यायिक समाधान सामने आ गया है। लेकिन यह फैसला सिर्फ इतना नहीं है कि 2.77 एकड़ की विवादित जगह किसको दी गई, बल्कि इसमें कई और बातें भी जुड़ी हुई हैं।

यह 1045 पन्नों का बहुत बड़ा फैसला है। बहुत ध्यान से इसके हर पहलू पर गौर करना होगा। इसमें कई बातें तत्काल समझ में नहीं आ रही हैं, लेकिन कुछ बिंदु बहुत स्पष्ट भी हैं।

उन्होंने कहा कि फैसले में साफ कहा गया है कि छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करना गैर कानूनी था। इसी तरह वर्ष 1949 में 22-23 दिसंबर के मध्य की रात को मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे राम लला की मूर्ति स्थापित कर दिया जाना भी गैर कानूनी था।

अब यह देखना होगा कि इन अवैध कामों में शामिल रहे और इसके लिए कारण बने लोग कौन थे। इन मामलों में दोषियों और साजिशकर्ताओं को सजा मिले और ये मामले अपने अंजाम तक पहुंचें।

ऐसा होने के बाद ही आज के फैसले का सम्मान होगा और न्याय पूरा होगा। माकपा नेता ने कहा कि इस फैसले में एक न्यायाधीश की राय अलग थी, इसे महज एडेंडम (अंत में जोड़ दी गई गई अतिरिक्त सामग्री) के तौर पर शामिल किया गया है।

लेकिन यह साफ नहीं है कि यह किस न्यायाधीश की राय थी। इस फैसले में यह भी कहा गया है कि अब ऐसे सभी मामलों की इति श्री हो जानी चाहिए।

इसमें 1991 में बने धर्मस्थल कानून (विशेष प्रावधान) की तारीफ की गई है, जिसमें साफ कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 में जो धर्मस्थल जिस स्थिति में था, उसे उसी तरह रखा जाएगा। उम्मीद है कि इसका भी सम्मान किया जाएगा।

श्री येचुरी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फैसले के बाद बयान जारी किया है और लोगों से इसे जीत-हार के तौर पर नहीं देखने की अपील की है।

एक अपील मैं भी करता हूं कि वे इस पर टिके रहें। चुनावों में अपनी पार्टी के लोगों को भी इस पर कायम रखें। हर चुनाव में सत्तारुढ़ दल ने सांप्रदायीकरण को अपने प्रोपगेंडा का मुख्य आधार बनाया है।

हर बार चुनाव के दौरान वे ऐसे मुद्दे उठाते हैं जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज हो जाता है। इस फैसले में भी धर्मनिरपक्षेता को मौलिक सिद्धांत बताया गया है।

इसलिए उससे दूर नहीं हुआ जा सकता, इस बात को सभी को ध्यान रखना होगा। इस मुद्दे की मदद से लोगों के बीच जो वातावरण पैदा किया जाता रहा है, उसकी वजह से अब तक हजारों जानें हम गंवा चुके हैं।

देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न कालखंडों में कौमी दंगे हुए हैं। अब उस तरह के वातारवण से मुक्त रहने की जरुरत है। रोजमर्रा की जिंदगी के कई बड़े सवाल हैं, उन पर गौर करने की जरुरत है।