नागरिकता क़ानून, एनआरसी जैसे मुद्दों को लेकर ट्विटर पर पोल करने और फिर उस पोल को डिलीट करने पर कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या पोल के परिणाम नागरिकता क़ानून या एनआरसी के पक्ष में नहीं आए इसलिए इन्हें डिलीट किया जा रहा है? क्या इन पोल के नतीजे पक्ष में आते दिखते तो इन्हें किस तरह पेश किया जाता?
ऐसा ही एक पोल ईशा फ़ाउंडेशन ने ट्विटर पर शुरू किया था। फ़ाउंडेशन ने इसमें पूछा था, ‘क्या आपको लगता है कि CAA और NRC के ख़िलाफ़ प्रदर्शन ठीक है?’
ट्वीट के डिलीट किए जाने से पहले जब स्क्रीनशॉट लिया गया था तब तक 62 फ़ीसदी लोगों ने प्रदर्शन को ठीक माना और सिर्फ़ 38 फ़ीसदी लोगों ने इसे ठीक नहीं माना था।
ईशा फ़ाउंडेशन ख़ुद को ग़ैर धार्मिक, ग़ैर लाभकारी, जन सेवा संगठन और योग के माध्यम से मानवता की सेवा करने वाला बताता है। यह फ़ाउंडेशन नागरिकता क़ानून का खुलकर समर्थन करने वाले सद्गुरु की तसवीरें, उनके कथन और उनसे जुड़ी ख़बरों को भी ट्वीट करते रहा है।
ऐसा ही एक पोल ‘सीएनबीसी-आवाज़’ ने भी ट्विटर पर कराया था। इसमें सवाल पूछा गया था, ‘मोदी 2.0 के कामकाज से आप ख़ुश हैं?’ जब तक यह स्क्रीनशॉट लिया गया तब तब तक 62 फ़ीसदी लोगों ने मोदी 2.0 के कामकाज से नाख़ुशी ज़ाहिर की और सिर्फ़ 38 फ़ीसदी लोगों ने ख़ुशी ज़ाहिर की। ट्विटर यूज़र ‘Veer Rofl Gandhi 2.0’ ने इस ट्वीट के स्क्रीनशॉट को ट्वीट करते हुए लिखा कि ‘ज़्यादा बाण मार दिए आपने तो इनको, सीएनबीसी की आवाज़ ही बंद हो गई…’।
Veer Rofl Gandhi 2.0 ने ‘दैनिक जागरण’ के एक ऐसे ही ट्विटर पोल पर भी तंज कसे हैं और लिखा है कि अब सारे बाण इधर मारो। ‘दैनिक जागरण’ ने पोल में पूछा है, ‘क्या सीएए का विरोध वोट बैंक की राजनीति का नतीजा है?’
इस पर ख़बर लिखे जाने तक क़रीब एक लाख सात हज़ार लोगों ने वोट दिया जिसमें से 52 फ़ीसदी ने कहा है कि सीएए का विरोध वोट बैंक की राजनीति नहीं है। सिर्फ़ 46 फ़ीसदी ने ही इसे राजनीति माना है। इस पर ‘ऐसी तैसी डेमोक्रेसी’ नाम के ट्विटर यूज़र ने प्रतिक्रिया में पोल कर तंज कसा है कि ‘यह पोल कितनी देर में डिलीट होगा?’