राजस्थान के आदिवासी इलाकों में बिक रहे हैं बाल मजदूर!

   

अत्यधिक गरीबी ने राजस्थान के आदिवासी इलाकों में मुख्य रूप से प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा जिलों के निवासियों को अपने बच्चों को बाल मजदूरी के लिए भेजने को मजबूर कर दिया है। उन लोगों को इससे हर महीने लगभग दो हजार रुपये मिलते हैं।

चट्टानी परिदृश्य वाले इस इलाके में कृषि लगभग शून्य है। यहां सिर्फ एकमात्र फसल मक्का होती है। चुंदई और हमीरपुर जैसे गांवों के लोगों ने आज तक बिजली नहीं देखी है, जबकि निकटतम अस्पताल और स्कूल मीलों दूर हैं। साक्षरता भी बहुत कम है। प्रतापगढ़ जिले में बेह-थेनस्ला विलेज में कोई भी व्यक्ति दसवीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ा है।

यहां के लोगों ने बताया कि पहले उन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत रोजगार मिल रहा था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसके तहत कोई काम मंजूर नहीं किया गया है, जिससे उन्हें काम नहीं मिल रहा है। आय का कोई स्रोत नहीं होने के कारण कुछ परिवारों को छह से कम उम्र के बच्चों को दूसरी जगहों पर मजदूरी के लिए भेजने को मजबूर होना पड़ा है।

पिछले 30 दिनों में, महिला और बाल कल्याण विभाग के तहत बांसवाड़ा में बाल कल्याण समिति के सदस्यों ने पन्नू के अलावा दो और बाल श्रमिकों को बचाया है। आठ वर्षीय रोहित को जून में एमपी के धार से रेस्क्यू कराया गया था, इसके बाद रोहित को बांसवाड़ा के एक केयर होम में लाया गया। पास के प्रतापगढ़ जिले में भी, दो बाल श्रमिकों को हाल ही में एक गैर-सरकारी संगठन, चाइल्डलाइन इंडिया द्वारा बचाया गया था।

राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक टीम ने प्रभावित जिलों का सर्वेक्षण किया। टीम के एक सदस्य विजेंद्र सिंह ने बताया कि उन्हें बच्चों का अवैध व्यापार करने वाले बिचौलियों के नेटवर्क की जानकारी मिली है।

बाल श्रम में लगे 8 लाख से अधिक बच्चों के साथ राजस्थान तीसरे स्थान पर है, जहां सबसे ज्यादा बच्चे मजदूरी के लिए भेजे जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 20 लाख बच्चे और बिहार में 10 लाख बच्चे मजदूरी में लगे हुए हैं।

हालांकि बच्चों को रेस्क्यू कराने के बाद भी उनकी परेशानियां कम नहीं हुईं। चुंदई गांव में पन्नू के घर में उसकी मां ने उसे अंदर ले जाने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा, ‘वह यहां क्या करेगा?’ अधिकारियों ने उसे एक आश्रय गृह में रखा है।

बाल श्रम के कुछ पीड़ित लंबे समय तक दुर्व्यवहार और शोषण के चलते चिंता और अनिद्रा जैसे आघात विकारों से पीड़ित हो जाते हैं। बेह-थेंसला गांव में हमें झाड़ियों के पीछे एक लड़का मिला, जो अपने घर से कुछ दूरी पर था। लड़के को इंदौर से बचाया गया और पिछले महीने चाइल्डलाइन द्वारा घर लाया गया।

साभार- ‘नवभारत टाइम्स’