सऊदी अरब से लेकर जॉर्डन तक आज कई खाड़ी देश आर्थिक और भूराजनैतिक हितों को देखते हुई इस्राएल के करीब जा रहे हैं।
डी डब्ल्यू पर छपी खबर के अनुसार, लेकिन पश्चिमी तट के एक बड़े हिस्से को इस्राएल में मिलाने की योजना कई समीकरणों को उलट पुलट कर सकती है।
माना जा रहा है कि 1 जुलाई को इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू अधिकृत पश्चिमी तट के 30 फीसदी तक हिस्से को इस्राएल में मिलाने की दिशा में अहम कदम उठा सकते हैं।
इसमें इस्राइली बस्तियां और रणनीतिक रूप से अहम जॉर्डन घाटी का उपजाऊ इलाका भी शामिल है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की शांति योजना के बाद तैयार इस योजना की दुनिया भर में निंदा हुई है।
फलस्तीनियों के अरब सहयोगियों ने भी इस पर नाराजगी जताई। पिछले हफ्ते अरब लीग ने चेतावनी दी थी कि इससे “हमारे क्षेत्र और उससे बाहर भी एक धार्मिक युद्ध शुरू हो सकता है।
मई में जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला द्वितीय ने जर्मन पत्रिका डेयर श्पीगल से बातचीत में कहा कि इस्राएल ने अधिकृत फलस्तीनी इलाकों को अपने इलाके में मिलाया तो इससे जॉर्डन और इस्राएल के बीच “बड़ा संघर्ष” शुरू हो सकता है।
यही नहीं, उन्होंने शांति संधि को रोकने के साथ ही “सभी विकल्पों” पर विचार करने की बात भी कही।