चक्रवार्ती तूफान: फिर से पटरी पर लाने की कोशिश!

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पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के अलावा उससे सटे उत्तर और दक्षिण 24-परगना जिले के अम्फान तूफान से बेघर लोगों को पांच दिनों बाद भी सरकारी राहत का इंतजार है।

 

कोलकाता महानगर तूफान की मार से कराहते हुए धीरे-धीरे अपने पैरों पर दोबारा खड़ा होने का प्रयास कर रहा है। कोलकाता समेत तमाम इलाकों में बीते तीन दिनों से लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।

 

शहरी इलाके के लोगों की समस्या जहां बिजली, पानी इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं की बहाली है वहीं दूर-दराज के ग्रामीण इलाके भोजन और पानी जैसी मौलिक जरूरतों के लिए भी तरस रहे हैं। सरकार ने बड़े पैमाने पर राहत और पुनर्वास काम शुरू करने का दावा किया है. हालांकि जमीनी हकीकत इसके उलट है।

 

तूफान से पहले लगभग तीन लाख लोगों को उनके घरों से निकाल कर राहत शिविरों में पहुंचाया गया था। वहां तो फिर भी थोड़ा-बहुत खाना-पानी मिल रहा है।

 

असली समस्या सुदूर इलाकों में रहने वाले उन लोगों की है जिनके घर तूफान में ढह गए हैं और खेतों में लगी फसलें बर्बाद हो गई हैंं।

 

सैकड़ों लोग खुले आसमान के नीचे रातें गुजारने पर मजबूर हैं। सरकारी राहत के इंतजार में उनकी आंखें अब पथराने लगी है। दक्षिण 24-परगना जिले के काकद्वीप इलाके में रहने वाले सुमिरन मंडल कहते हैं।

 

तूफान ने सबकुछ बर्बाद कर दिया। हमारा घर ढह गया और खेतों में लगी फसलें नष्ट हो गईंं। बीते पांच-छह दिनों से हम किसी तरह इधर-उधर से मिलने वाला चना-चबेना खाकर दिन काट रहे हैं. अब तक सरकार की ओर से कोई राहत नहीं मिली है।

 

वह बताते हैं कि दो दिन पहले इलाके में आने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपए दिए थे। उन्होंने राशन का भी पर्याप्त इंतजाम करने का भरोसा दिया था।

 

लेकिन इलाके की राशन दुकानें बंद हैं और वहां रखा अनाज पानी से खराब हो गया है। ऐसे में समझ में नहीं आता कि आगे दिन कैसे कटेंगे?

 

तूफान की वजह से खेतों में नदियों के रास्ते समुद्र का खारा पहुंचने से तटवर्ती इलाको में हजारों हेक्टेयर में लगी फसलें तो बर्बाद हुई ही हैं, निकट भविष्य में भी वहां खेती करना मुश्किल हो गया है।

 

दक्षिण 24-परगना जिले के मथुरापुर में स्कूल शिक्षक चंदन माइती कहते हैं, चावल की एक किस्म अमल के बीज जून में बोए जाते थे। लेकिन खारे पानी की वजह से इस साल यह काम असंभव हो गया है। इसी तरह तालाबों का पानी भी खारा हो गया है। उससे फसलों की सिंचाई भी नहीं हो सकती।

 

शाभार- डी डब्ल्यू हिन्दी