क्या सीरिया में लड़ाई का मक़सद सिर्फ़ तेल है?

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अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप सीरिया से अपने दो हजार सैनिकों को वापस बुला लेने की बात कह चुके हैं, जिसका आतंकी संगठन स्‍लामिक स्‍टेट बेसब्री से इंतजार कर रहा है। क्‍योंकि ऐसी स्थिति में इस्‍लामिक विद्रोहियों से मोर्चा संभालने के लिए सेना को केवल कुर्दिश लड़ाकों का ही सहारा होगा।

यह भी माना जा रहा है कि सीरिया में आईएस सरगना अबू बकर अल बगदादी के कई टॉप कमांडर भूमिगत तौर पर मौजूद हैं। युद्ध में आईएस की कमर तो करीब करीब टूट चुकी है लेकिन अभी भी वह नाबालिग बच्‍चों को आत्‍मघाती हमलावरों के तौर पर इस्‍तेमाल करके सेना को चोट पहुंचा रहा है।

इससे इस बात की आशंका है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद सीरिया का हाल भी कहीं अफगानिस्‍तान के जैसा ही न हो जाए।हालांकि सच्‍चाई यह है कि तमाम शहरों को जीत कर भी सीरिया जंग हार चुका है क्‍योंकि जिन शहरों को आतंकियों के कब्‍जे से मुक्‍त कराए जाने के दावे किए जा रहे हैं, असल में वो शहर मलबे और कब्रिस्‍तान में तब्‍दील हो चुके हैं।

इस लड़ाई में जिन्‍दा बचे लोगों को यकीन नहीं हो रहा है कि यह वही सीरिया है जो पूरी दुनिया में अपनी खूबसूरती और प्राचीन विरासत के लिए जाना जाता था। दमिश्‍क, अलेप्‍पो, रक्‍का और होम्‍स सीरिया के सबसे प्रभावित शहरों में शामिल हैं।

रक्‍का में तबाही का मंजर सिहरन पैदा करता है। यहा दो लाख 20 हजार की आबादी में से 20 हजार लोग ही बचे हैं। आठ साल से जारी गृहयुद्ध के कारण सीरिया में 61 लाख से ज्‍यादा लोगों को अपने ही देश में विस्‍थापित होना पड़ा है जबकि 56 लाख लोग मुल्‍क से पलायन कर चुके हैं।

असल में सीरिया दुनिया का ऐसा युद्धक्षेत्र बन गया है जहां हर बड़ा देश अपने स्तर पर किसी न किसी संगठन का समर्थन कर रहा है। अमेरिका आईएस के खात्‍मे के नाम पर कुर्दिश लड़ाकों के एक संगठन वाईपीजी का समर्थन कर रहा है।

वाईपीजी वह संगठन है जो सीरियाई युद्ध के मैदान में अमेरिका की ओर से लड़ रहा है। इस संगठन के जरिये अमेरिका अपनी मौजूदगी मध्य पूर्व में बनाए रखना चाहता है। मध्य पूर्व में सीरिया ही एक मुल्क है जिसकी वजह से इस क्षेत्र में रूस अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकता है, इसलिए वह बशर अल असद की सरकार का समर्थन कर रहा है।

जागरण डॉट कॉम के अनुसार, तुर्की सीरियाई सरकार के विपक्षी खेमे के समर्थन में है जो बशर अल असद सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए लड़ रहें है। वहीं आईएस इस्‍लामिक राष्‍ट्र कायम करने के मकसद से मैदान में है।

बशर अल असद समर्थित सेना अभी भी देश के समूचे तेल कुओं को अपने कब्‍जे में नहीं ले पाई है। सरकार यदि जंग जीत भी जाती है तो 60 से 70 फीसदी हिस्सा असद सरकार के नियंत्रण में होगा।

बाकी हिस्से का नियंत्रण या तो इस्लामिक स्टेट या वाईपीजी जैसे संगठनों के पास होगा। इस वजह से वाईपीजी और तुर्की की सेनाओं के बीच टकराव थमने वाला नहीं है।

इजराइल के अपने हित हैं। उसने सन 1967 में छह दिनों की जंग के बाद सीरिया के सीमावर्ती इलाके गोलन हाइट्स पर कब्जा कर लिया था। सीरिया इस पर आज भी अपना दावा करता है और संयुक्‍त राष्‍ट्र ने भी इजरायल के इस कब्जे को मान्यता नहीं दी है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस विवाद में आग में घी डालने का काम किया है। उन्‍होंने इस क्षेत्र पर इस्राइल के कब्जे को आधिकारिक मान्यता देने से जुड़ी घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।