2011 में सीरिया में संकट शुरू हुआ। उसके बाद राष्ट्रपति बशार असद के ख़िलाफ़ सैकड़ों गुट विभिन्न नामों से युद्ध में कूद पड़े।
इन गुटों का समर्थन करने वाले देश केवल एक मुद्दे पर एकमत थे और वह था असद को सत्ता से हटाना, इसके अलावा उनके बीच गहरे वैचारिक और राजनीतिक मतभेद थे, जिसके कारण वे एक दूसरे के ख़ून के प्यासे आतंकवादी गुटों का समर्थन कर रहे थे, जिसने स्थिति को इतना जटिल बना दिया था कि कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि इस देश में कौन किससे और क्यों लड़ रहा है।
Erdogan “intends to forcibly resettle the three million displaced Syrian Arabs, who have taken refuge in Turkey, in this part of Syria. This means driving out the Kurdish population and replacing it with an Arab population. It has a name: ethnic cleansing” https://t.co/wYJhqoeioC
— Josh Kraushaar (@JoshKraushaar) October 12, 2019
दूसरी तरफ़ सीरियाई कुर्दों का अमरीका ने भरपूर समर्थन किया, जबकि वाशिंगटन का सबसे निकट सहयोगी तुर्की उन्हें आतकंवादी क़रार देकर उनका विरोध करता रहा।
पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, कुर्दों का मुद्दा अमरीका और तुर्की के बीच मतभेद का मुख्य कारण बना रहा। यहां तक कि पिछले हफ़्ते अचानक अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने उत्तरी सीरिया से अपने सैनिकों को बाहर निकालने का एलान करके उत्तरी सीरिया में कुर्द मीलिशिया वाईपीजी को कुचलने की तुर्क राष्ट्रपति की इच्छा को पूरा कर दिया।
Trump and Erdoğan risk a resurgent Isis thanks to their recklessness in Syria | Hassan Hassan https://t.co/li7Gc5Mijw
— The Guardian (@guardian) October 13, 2019
ट्रम्प के इस फ़ैसले का अमरीका में जमकर विरोध हो रहा है, जिसका उन्होंने यह कहकर बचाव किया है कि अमरीका ने मध्यपूर्व की लड़ाईयों में कूदकर इतिहास की सबसे बड़ी ग़लती की थी, जिसे वह सुधार रहे हैं।
ट्रम्प की ओर से ग्रीन सिगनल मिलने के बाद बुधवार को तुर्की ने पूर्वोत्तर सीरिया पर सैन्य चढ़ाई कर दी। उसके तुरंत बाद अमरीकी कांग्रेस में सत्ताधारी दल रिपब्लिकन पार्टी और विपक्षी दल डोमोक्रेटिक पार्टी के सांसद ने तुर्की के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंधों के लिए प्रस्ताव तैयार करना शुरू कर दिया।
इस तरह से तुर्की ट्रम्प के उस जाल में फंस गया है, जिससे निकलना उसके लिए आसान नहीं होगा। इस दलदल में फंसकर तुर्की को दोहरी मार पड़ेगी।
जहां उसे बड़े पैमाने पर जानी नुक़सान होगा, वहीं पहले से डांवाडोल उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। इसके अलावा तुर्की में कुर्दों की एक बड़ी आबादी बसती है, जिसमें नाराज़गी बढ़ेगी और कुर्द एक बार फिर हथियार उठा सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस लड़ाई से तुर्कों और कुर्दों के अलावा हर किसी को फ़ायदा पहुंचेगा।
कुर्दों के ख़िलाफ़ तुर्की के सैन्य ऑप्रेशन की घोषणा के बाद ही इस देश की करंसी डॉलर के मुक़ाबले में पिछले चार महीनों के दौरान सबसे निचले स्तर पर आ गई। इससे पहले पिछले साल रूस से एस-400 वायु रक्षा प्रणाली ख़रीदने के कारण अमरीकी प्रतिबंधों ने लीरा की कमर तोड़ दी थी, जिससे अभी वह पूरी तरह से उभर नहीं पाया था।
This is outrageous. @realDonaldTrump needs to explain immediately why he betrayed the Kurds and why his buddy Erdogan is reportedly threatening our forces!
Sec. Esper, Gen. Milley, & Gen. McKenzie must come ASAP to publicly answer questions from Senatorshttps://t.co/yDWLoxFGNM
— Chuck Schumer (@SenSchumer) October 12, 2019
ईरान, सऊदी अरब, इराक़ और तुर्की मध्यपूर्व के बड़े देश हैं, जिन्हें अमरीका और पश्चिमी देश इस इलाक़े में अपने हितों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा समझते रहे हैं।
इनमें से केवल ईरान एक ऐसा देश है, जिसने अमरीका से हमेशा एक ख़ास दूरी बनाकर रखी है और वह कभी उसकी दोस्ती के झांसे में नहीं आया, इसीलिए उसने कड़े प्रतिरोध का मार्ग चुना और वह समस्त कठिनाईयों के बावजूद मज़बूत होता रहा। लेकिन जो देश अमरीका की दोस्ती के झांसे में आग गए वह आज किसी न किसी युद्ध या लड़ाई में फंसकर कमज़ोर पड़ चुके हैं