TATA कंपनी में आपातकाल, लाखों श्रमिकों का जीवन संकट में ; झारखंड के जमशेदपुर में 1100 कंपनियों में लगा ताला

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रांची : अर्थव्यवस्था में मंदी की आहट से देश में विभिन्न सेक्टरों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। इसका असर झारखंड सहित अन्य राज्यों में भी देखने को मिल रहा है। झारखंड में उद्योगों की खस्ता हालत से वहां के व्यापारियो में हड़कंप मचा हुआ है। 5 ट्रिलियन का दावा करने वाली सरकार ने भी कई मौकों पर दबे स्वर में यह मान लिया है कि अर्थव्यवस्था पटरी से उतर चुकी है। इसकी पुष्टि कई रिपोर्ट भी कर चुकी हैं। कंपनियां लगातर बंद हो रही हैं। कॉस्ट कटिंग यानी ख़र्च में कमी के नाम पर बहुत बड़ी संख्या में लोगों से उनका रोज़गार छीना जा रहा है। कंपनिया कह रही हैं कि वो भी क्या करें उनके पास कोई विकल्प नहीं है। आज सच्चाई यह है कि ऑटोमोबाईल सेक्टर ”आपातकाल” के दौर में है।

कंपनियों ने प्रोडक्शन कम कर दिया है। लोगों की क्रय शक्ति में कमी के कारण कोई गाड़ी खरीद नहीं रहा, इसलिए कंपनिया भी उत्पादन कम कर रही हैं। इस कारण लाखों की संख्या में लोगों को अपनी नौकरी जाने का ख़तरा दिख रहा है। नौकरियां जाने का डर कर्मचारियों पर इस तरह से हावी हो रहा है, कि कुछ लोगों ने इससे डरकर अपनी जान तक दे दी है। जमशेदपुर के बारीडीह से मामला सामने आया था। शुक्रवार 16 अगस्त को आशीष ने अपने घर में पंखे से फांसी का फंदा लगाया और अपनी जान दे दी। जहाँ 25 साल के नौजवान आशीष कुमार भाजपा के एक स्थानीय नेता कुमार विश्वजीत के इकलौता बेटे थे।

आशीष के पिता ने स्थानीय मीडिया को बताया कि बेटा खड़ंगाझार में जिस कंपनी में काम करता है, वो कंपनी टाटा मोटर्स के लिए मोटर पार्ट्स बनाती है। करीब हफ़्ते भर पहले बेटे ने कहा था कि पापा शायद मेरी नौकरी छूट जायेगी लेकिन पुलिस कह रही है कि कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है।

TATA कंपनी में ”आपातकाल”, लाखों श्रमिकों का जीवन संकट में

ये सिर्फ एक आशीष की बात नहीं है। इस मंदी में पूरे जमेशदपुर के टाटा नगर के लाखों श्रमिकों की कहानी है। ऑटोमोबाइल सेक्टर में छाई मंदी की मार का टाटा मोटर्स पर बुरा असर पड़ा है। एक बार फिर टाटा मोटर्स में 16 और 17 अगस्त को ब्लॉक क्लोजर की घोषणा की गई। हालांकि रविवार को अवकाश की वजह से कंपनियां सीधे 19 अगस्त को खुलीं। टाटा मोटर्स में जुलाई से लेकर अब तक कई बार ब्लॉक क्लोजर हो चुका है।

कई मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 13 से 15 हजार वाहन प्रति महीने बनाने वाली टाटा मोटर्स, आजकल तीन से चार हजार वाहन ही बना रही है। टाटा मोटर्स पर पूरी तरह निर्भर आदित्यपुर, बारीडीह सहित पूरे जमेशदपुर में हजारों छोटे और मझोले उद्योग भी बुरे दौर से गुजर रहे हैं। यह उद्योग टाटा मोटर्स के लिए पार्ट्स बनाते हैं। उत्पादन में आई कमी के बाद कंपनी को बार-बार क्लोजर लेना पड़ रहा है टाटा मोटर्स में अगस्त महीने में तीसरी बार ब्लॉक क्लोजर की गई है। टाटा मोटर्स के लिए टाटा कमिंस इंजन बनाती है। इसी वज़ह है सबसे अधिक अस्थायी मजदूरों के भविष्य पर संकट भी मंडराने लगा है।

झारखंड के औद्योगिक मज़दूर यूनियन सीटू के महासचिव विजयकांत दास ने बताया कि पूरे जमेशदपुर में तीन जिले हैं और तीनों को मिलकर लगभग 2 लाख श्रमिक जो किसी न किसी रूप में ऑटोमोबाइल उद्योग से जुड़े हैं ,उनका रोजगार प्रभावित हुआ है। इसके साथ ही करीब 1000 के लगभग उद्योग धंधे बंद हो गए है। ये अधिकतर टाटा मोटर्स को ऑटो पार्ट्स तैयार करे देते थे लेकिन अब जब टाटा मोटर्स ने अपना उत्पादन लगभग बंद कर दिया है तो ऐसे में इन्हे भी अपना उत्पादन बंद करना पड़ा है।

यहां व्यापारी मौजूदा संकट में भाजपा की रघुवर दास सरकार पर असंवेदनशील होने का आरोप लगा रहे हैं। झाविमो अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि राज्य में सैकड़ों की संख्या में छोटे-बड़े उद्योग बंद हो रहे है़ं जमशेदपुर, रांची, रामगढ़, गिरिडीह में कई कारखानों में ताला लग गया़ है। राज्य में उद्योगों में निवेश तो नहीं हुआ, उलटे पुराने उद्योग बंद हो गये़।

उन्होने कहा, भाजपा कहती है कि राज्य में डबल इंजन की सरकार है़ भाजपा को बताना चाहिए कि इस सरकार में पिछले पांच वर्षों में क्या हुआ़ उन्होंने कहा कि उद्योग धंधे बंद होने से लाखों लोग बेरोजगार हुए है़ं बेरोजगार आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो गये है़ं मजदूर सड़क पर आ गये है़ं। व्यापारियों ने राजधानी रांची में मुख्यमंत्री आवास के सामने बैन लगाकर अपनी समस्याओं की सुध लेने की अपील की है। इसके अलावा शहर के विभिन्न स्थानों पर बैनर लगाकर सरकार से व्यापारियों ने अपनी समस्याओं को सरकार के सामने रखा है। फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (FJCCI) का कहना है कि राज्य भर में 10 हजार से अधिक औद्योगिक ईकाइयां बंद हो गई हैं।

राज्य सरकार की असंवेदनशीलता के कारण पिछले कुछ महीनों में करीब 1000 छोटी व बड़ी औद्योगिक ईकाइयों पर ताला लग चुका है। दीपक मारू ने कहा कि हमने मुख्यमंत्री, मंत्री और अफसरों समेत हर जिम्मेदार व्यक्ति तक अपना पक्ष रखने का प्रयास किया है लेकिन अभी तक हमारी समस्या का कोई हल नहीं निकला है। हमें अपनी बात रखने के लिए होर्डिंग के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। इसकी शुरुआत हमने मुख्यमंत्री आवास के पास होर्डिंग लगाने से की है।

होर्डिंग पर लिखा है, व्यापारियों की मार्मिक पुकार- अब तो सुध लो सरकार। राज्य में व्यापारी बिजली की कमी, बिजनेस की क्लियरेंस के लिए सिंगल विंडो सिस्टम के पूरी तरह से फेल हो जाने, पुलिस अधिकारियों की तरफ से ट्रांसपोर्टरों को परेशान किए जाने, औद्योगिक क्षेत्रों में मूलभूत साधनों के अभाव के साथ ही लालफीताशाही, चोरी और अपराध की घटनाओं की समस्या को लगातार उठा रहे हैं। फेडरेशन का कहना है कि यदि सरकार उनकी बात नहीं सुनती है तो वह व्यापक रूप से विरोध प्रदर्शन करेंगे।

कोई भी ट्रांसपोर्टर गाडी खरीदने को तैयार नहीं है। इस मंदी में हो ऐसे रहा है कि टाटा मोटर्स तो बहुत बड़ी कंपनी है वो अपना घाटा अपनी सहायक कंपनी पर डाल देती है और सहायक कंपनी अपना सारा घाटा श्रमिकों पर डाल देती है। ऐसे में मर सिर्फ श्रमिक रहा है। अभी तक कई श्रमिकों ने अपनी जान दे दी है ,इसके अलावा श्रमिक लगातार यहाँ से पलायन कर रहे हैं। श्रमिकों का जीवन पूरी तरह से अनिश्चिता में चला गया है। केंद्र सरकार तो लगातार श्रमिक और उद्दोग के खिलाफ काम कर रही है लेकिन यहाँ की राज्य सरकार भी यहाँ के कर्मचारियों पर कोई भी ध्यान नहीं दे रही है। वो पूरी तरह से आने वाले चुनावो में व्यस्त है।

ऑटो मोबाइल सेक्टर में ये मंदी क्यों ?क्या इसमें वैश्विक आर्थिक मंदी का प्रभाव या सरकार की गलत नीतियां है जिम्मेदार !

हमने यहाँ जानने की कोशिश की कि यह मंदी इतनी गंभीर कैसे हो गई, क्योंकि पहले भी कईबार अर्थव्यवस्थ की सुस्ती का असर इस सेक्टर पर दीखता था लेकिन जानकारों के मुताबिक इस बार का संकट बहुत ही गंभीर है। कई लोग इस मंदी का कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था बता रहे हैं तो कई जानकारों का कहना है कि यह वैश्विक से ज्याद घरेलू अधिक है।

इस पूरे मसले पर हमने टाटा मोटर्स में करीब 20 वर्षों से अधिक से काम कर रहे एक कर्मचारी जो झारखंड ,बिहार ,ओडिशा सहित कई राज्यों के टाटा मोटर्स के प्रमुख भी रहे हैं से बात की। उन्होंने नाम न बताने के अनुरोध के साथ हमें बताया कि यह संकट क्यों है ?

उन्होंने बताया कि वैश्विक मंदी है लेकिन अभी इसका असर भारत में नहीं हुआ है। अगर उसका असर पड़ता है तो स्थति और भी गंभीर होगी। इसके बाद उन्होंने हमें सिलसिलेवार बताया कि इस मंदी की वजह क्या है। उन्होंने कहा की सरकार की गलत नीतियां इसके लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड में श्रमिकों के लिए सबसे बुरा समय है। सिर्फ ऑटो सेक्टर ही नहीं बल्कि अन्य उद्योगों का भी यही हाल है। स्टील प्लांट की बात करें तो झारखंड में 60 स्टील प्लांट है लेकिन सरकार की गलत नीतियों की वजह से 55 अभी बंद है। क्योंकि सरकार ने बीते दिनों में बिजली के दरों में 38% की वृद्धि की जिससे उनकी लागत बढ़ गई। इस वजह से लगातर वो घाटे में जा रही थी तो सभी ने मिलाकर प्लांट बंद करने का निर्णय किया। इससे पहले सरकार ने घरेलू बिजली में भी 98 % की वृद्धि की थी।

इसके बाद उन्होंने कहा कि इस मंदी की सबसे बड़ी वजह है सरकार का यह निर्णय कि अप्रैल 2020 से भारत में BS 4 की गाड़ियां नहीं बनेंगी। आपको बता दें कि अभी भारत में BS 4 की गाड़ियां चल रही है। यह एक अंतरष्ट्रीय स्तर पर तकनीक रूप से मानक होता है। BS 4 भारत में 2017 में आया था। लेकिन तीन साल के भीतर ही सरकार चाहती है कि ऑटो मोबाइल कंपनी अब BS 6 तकनीक की गाड़ियां बनाएं जिसके लिए अभी भारत का ऑटो मोबाइल सेक्टर तैयार नहीं है।

आगे वो कहते हैं कि अभी भारत में लगभग 10 से 15 हज़ार गाड़ियों की मांग थी। इस मंदी से पहले अभी तो इस मांग में भारी गिरावट आई है। अभी दो सबसे बड़ी कंपनी जो भारी गाड़ियों का निर्माण करती है, अशोक लेलैंड और टाटा मोटर्स अगर हम सिर्फ इनकी बात करे तो क्रमश: 30 हज़ार और 50 हज़ार गाड़ियों का स्टॉक है। इस तरह अन्य कंपनियों को मिलाकर अभी 95 हज़ार गाड़ियों का स्टॉक हैं। यही हाल अन्य टू व्हीलर और 4 व्हीलर गाड़ियों का भी है। अगर हम बात करें तो सामान्य स्थति में 6 महीने का स्टॉक हमारे पास है। जबकि मांग में लगातर भारी गिरावट आ रही है।

उन्होंने बताया कि बिहार में जहाँ 600 से 700 गाड़ियों की मांग रहती थी, वहीं बीते महीने में केवल 72 गाड़ियां बिकी हैं। बंगाल की बात करें तो जहाँ 2000 गाड़ियों की मांग थी वहां 200 गाड़िया बिकी हैं। उत्तर पूर्व की भी बात करें तो करीब 1000 गाड़ियों की मांग रहती है, वहां भी 280 गाड़ियां ही बिकी हैं। उन्होंने कहा ओडिशा को छोड़कर सभी राज्यों का कमोबेश यही हाल है। यही वजह है कि कंपनी नया उत्पादन नहीं करना चाह रही है। उन्होंने शायद यह मंदी भारत के लिए सबसे बड़ी और बुरी मंदी है। एक रपोर्ट के मुतबिक जुलाई में सभी वाहनों की बिक्री में कमी आई है

GST की दर: पहला है GST की दर बहुत ज्यादा है। उसके पंजीकरण में भी कई तरह की समस्या है। जीएसटी प्रणाली के तहत पहले से ही करीब 70 प्रतिशत वाहन कलपुर्जों पर 18 प्रतिशत की दर से कर लग रहा है, जबकि बाकी बचे 30 प्रतिशत पर 28 प्रतिशत जीएसटी है। इसके अलावा वाहनों पर 28 प्रतिशत जीएसटी के साथ उनकी लंबाई, इंजन के आकार और प्रकार के आधार पर एक से 15 प्रतिशत का उपकर भी लग रहा है।

आधारभूत ढांच क्षेत्र में मंदी: बड़ी कंपनियां दिवालियां हो रही है। आईएलएंडएफएएस जैसी बड़ी कंपनिया का बर्बाद होना। इसका भी असर ऑटोमोबाइल सेक्टर पर पड़ा है।

बाजार में पैसो की कमी : आज हकीकत है की बाजार में पैसों की कमी है। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) जो गाड़ियों के लिए खरीदार को लोन देती थी। उनमे से भी कई कंपनियां बंद हो रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण RBI का बढ़ता रेपो रेट है,हालांकि सरकार ने अभी इसमें कुछ कमी की है लेकिन वो बहुत कम है। पहले जो लोन 9 % दर पर मिलता था ,अब वह 12 % तक पहुँच गया है। FIIA द्वार भारत के शेयर मार्किट से पैसा निकला गया है। यह भी वजह है की भारत के बाजार में पैसो की कमी है।

खनन का कम होना: कई राज्यों में सरकारों द्वार खनन में लगे लोगों को उनका पैसा चुनाव के बाद से ही ठीक से नहीं दिया जा रहा है। इस वजह से खनन काम हो रहा है। यह भी वजह है की गाड़ियों की मांग में कमी आ रही है। झारखंड में ही 2014 के बाद से लोह अयस्क का खनन बंद है। सरकार द्वार पैसे न दिए जाने की वजह से ये लोग आपना लोन नहीं चुका पा रहे हैं जिससे इनकी गाड़ियां उठाई जा रही हैं।

मोटर व्हीकल एक्ट : इसने आग में घी डालने का काम किया। इसमें नयी गाड़ियों का पंजीकरण और उसके नवनीकरण के साथ ही चलन की राशि भी बहुत बढ़ा दी गई है। इस कारण भी कोई भी नयी गाड़ी नहीं ले रहे है। जानकारों के मुताबिक अगर दीवाली के आसपास स्थिति सुधरी नहीं तो और स्थिति और भी भयावह होगी। क्योंकि हर वर्ष इस समय मांग में वृद्धि देखी जाती थी। ऐसा नहीं है की यह की स्थिति सुधारी नहीं जा सकती परन्तु इसके लिए सरकार को अपने नीतियों में बदलाव करना होगा। जानकारों के मुताबिक सरकार निम्नलिखित कदम उठाए तो इस मंदी से निपटा जा सकता है।