तीन-तलाक़ बिल को लेकर फिर देशभर में चर्चा!

   

तत्काल तीन तलाक की बुराई को रोकने के लिए लोकसभा में पिछले दिनों मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक पेश किया गया। उसके बाद से यह मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में है।

कुछ लोग कह रहे हैं कि जो भी पुरुष अपनी पत्नी को छोड़ता है उसे सजा मिलनी ही चाहिए। कुछ लोग इस प्रावधान का विरोध भी कर रहे हैैं।

सवाल है कि वे लोग जो औरतों के हितों के लिए दुबले हुए जाते हैं, उन्हें मुसलमान पुरुषों को तत्काल तीन तलाक के मामले में जेल भेजने के प्रावधान पर इतनी आपत्ति क्यों है? देखा जाए तो ये लोग मूल मुद्दे से भागने का ही प्रयास कर रहे हैं।

जागरण डॉट कॉम के अनुसार, लोकसभा में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 35 साल पहले शाहबानो के मुद्दे पर कांग्रेस एक मौका गंवा चुकी है। अब फिर से एक मौका उसके सामने है, लेकिन कांग्रेस ने अपना पुराना रवैया जारी रखा है।

अधिकांश दल जो भाजपा का इस मुद्दे पर समर्थन नहीं करना चाहते, वे कह रहे हैं कि अगर पति जेल चला जाएगा तो परिवार कैसे चलेगा? क्या इस संदर्भ में इन दलों ने मुसलमान औरतों से बातें की हैं? सईदा हमीद ने बहुत पहले मुसलमान स्त्रियों से बात करके राष्ट्रीय महिला आयोग के लिए वायस ऑफ द वायसलेस नामक रिपोर्ट तैयार की थी।

यदि इन दलों ने उन्हीं से बात कर ली होती या उस रिपोर्ट को ही पढ़ लिया होता तो वे हकीकत से परिचित हो गए होते। इस रिपोर्ट में लिखा है कि तीन तलाक को गरीब, मजबूर मुसलमान औरतें बहुत अधिक झेलती हैं। पति एक बार में तीन तलाक बोलकर निकल लेते हैं और दूसरा ब्याह कर लेते हैं। बाल-बच्चों को छोड़ी हुई पत्नी के जिम्मे छोड़ जाते हैं।

बहुत से लोग कहते हैं कि मुसलमानों में बहुविवाह प्रथा या तलाक के मामले बहुत कम हैं। हालांकि सईदा हमीद की रिपोर्ट इस बात की गवाही नहीं देती, लेकिन अगर यह मान भी लें कि ऐसा बहुत कम है तो भी जो लोग ऐसा करते हैं उनके लिए कानून में कौन-सी सजा है?

ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने तत्काल तीन तलाक बिल का समर्थन करते हुए कहा है कि जो मुसलमान पुरुष ऐसा करते हैं, उन्हें तीन साल की नहीं, दस साल की सजा मिलनी चाहिए।

कायदे से तो तीन तलाक बिल का विरोध करने से पहले इन दलों को मुसलमान औरतों से बात करनी चाहिए, तब कोई निर्णय लेना चाहिए। तत्काल तीन तलाक का शिकार महिलाएं जिन परिवारों से आती हैं, जरा उनसे भी बात करके देखिए।

उनके माता-पिता, भाई अन्य नाते-रिश्तेदार तीन तलाक को झेल रही अपने-अपने घर की महिलाओं को देखकर खून के आंसू रोते हैं। कानून अगर इन महिलाओं की मदद को आगे भी आता है तो फैसलों को पलटवा दिया जाता है और बहाना बनाया जाता है कि यह हमारे धर्म में हस्तक्षेप है या कि हमारा धर्म खतरे में है।